श्राद्ध में क्या करें और क्या न करें

श्राद्ध में क्या करें और क्या न करें

श्राद्धकृत्य में क्या न करें – 
धर्म नगरी / इन्नोवेस्ट डेस्क / 6 sep

पितृ विसर्जन का पक्ष श्रद्धा से पितरों को याद करने का पक्ष है। जो अतृप्त है  वह  प्रेत और जो तृप्त है वह पितृ है। अपने पितरों को तृप्त करना पितृ ऋण, पितृ दोषों से मुक्ति दिलाता है। इस पक्ष में एक निश्चित विधि विधान है लेकिन वह इतनी गूढ़ है कि उसे सामान्य तौर पर आसानी से न समझा जा सकता है और न तो कर पाना संभव। श्राद्ध तर्पण में क्या करें और क्या न करें की जानकारी दे रहे हैं।

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पितृपूजन का विधान – 
अमावस्या तिथि के दिन परिवार के सभी पितरों के श्राद्ध करने का विधान है। श्राद्ध सम्बन्धित कृत्य मध्याह्नकाल में करना उत्तम रहता है। सूर्यास्त के पश्चात् श्राद्ध सम्बन्धित कोई भी कृत्य नहीं करना चाहिए। श्राद्ध में होने वाले मुख्यरूप से कार्य—पिंडदान, तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन। श्राद्ध में योग्य ब्राह्मणों को घर पर निमन्त्रित करके भोजन करवाया जाता है। ब्राह्मण को कराये गए भोजन से पितृगणों को प्रसन्नता होती है। 1, 3 या 5 ब्राह्मणों को भोजन करवाने की मान्यता है। ब्राह्मणों को भोजन करवाने के पश्चात् उनको अन्य वस्तुएँ जैसे—अन्न, वस्त्र, घी, गुड़, तिल, चाँदी तथा नमक आदि का दान किया जाता है।  ब्राह्मण को यथाशक्ति दक्षिणा देकर उनको प्रसन्न करके उनकी विदाई करनी चाहिए। इसके साथ ही गौ एवं कौओं पर पितृगण प्रसन्न रहते हैं। इनसे हमें आर्शीवाद मिलता है।

सावधानी रखने वाली बातें –
पितृपक्ष में सायंकाल अपने घर के मुख्यद्वार के बाहर दीप प्रज्वलित करके श्रद्धापूर्वक पितृविसर्जन करने का विधान है। शुद्ध, सात्विक एवं शाकाहारी भोजन बनाया जाता है। भोजन में लहसुन प्याज का सेवन करना वर्जित है। भोजन में मिष्ठान्न का होना अति आवश्यक है। ब्राह्मण भोजन करवाने के पूर्व गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी व देवता के निमित्त पत्ते पर भोजन निकाल कर देना चाहिए, जिसे पंचबलि कर्म कहते हैं। यदि समय पर ब्राह्मण को भोजन न करा सकें तो ब्राह्मण को भोजन की सामग्री, नकद दक्षिणा के साथ दे देनी चाहिए। यदि यह भी न कर सकें तो पितरों को याद करके गाय को चारा खिला देना चाहिए। श्राद्धकृत्य में लोहे का बर्तन इस्तेमाल करना वर्जित है। भोजन के अन्तर्गत अरहर, मसूर, कद्दू (गोल लौकी), बैंगन, गाजर, शलजम,सिंघाड़ा, जामुन, अलसी, चना आदि का प्रयोग नहीं किया जाता है। श्राद्धवाले दिन सत्कृत्यों की ओर मनोवृत्ति होनी चाहिए। ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए। सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। श्राद्धपक्ष में कोई भी नया कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। श्राद्धपक्ष में अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन आदि कुछ भी ग्रहण करना चाहिए।

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पितरो के नाराज होने पर ये होती है परेशानियाँ –
दिवंगत व्यक्ति का विधिवत् श्राद्ध न होने पर व्यक्ति को अपने जीवन में नाना प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ता है। परिवार में कोई न कोई सदस्य अस्वस्थ या परेशान रहता है। मनोकामना की पूर्ति में बाधा आती है। संतान सम्बन्धित कष्ट रहते हैं। वंशवृद्धि नहीं होती। दुर्घटना एवं असामयिक मौत व अन्य कठिनाइयाँ बराबर बनी रहती है। श्राद्धकृत्य विधि-विधान से करने पर समस्त दोषों का निवारण होता है, साथ ही सुख शान्ति, सफलता का योग बना रहता है।

  श्राद्ध के  प्रकार
श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं—(1) नित्य, (2) नैमित्तिक, (3) काम्य, (4) वृद्धि, (5) सपिण्डन, (6) पार्वण, (7) पार्वण, (8) शुद्ध्यर्थ, (9) कमांग, (10) दैविक, (11) औपचारिक,(12) सांवत्सरिक श्राद्ध  ।

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