@बनारस – क्या है 10 sep को शहर की खबरें

कोरोना के कहर ने माताओं को किया पूजन अर्चन से वंचित
@बनारस / इन्नोवेस्ट डेस्क / 10 oct

शायद ही कोई ऐसी व्रती महिला हो जो जियुत्पुत्रिका व्रत में ये हालत से रूबरू हुयी हो जिस व्रत में लक्सा सहित घाट और शहर के अन्य हिस्सों में भीड़ और मेला सा दृश्य हुआ करता था आज सन्नाटा सा रहा। पुत्र की रक्षा व लम्बी आयु के लिए अनेक व्रत-उपासना का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इसी व्रतो में से व्रत आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का उल्लेख है। ये व्रत दो दिवसीय होता है। अष्टमी तिथि को निराजल व्रत रखने के बाद नवमी तिथि (कल) को पारण (समाप्ति)किया जाता है।विवाहिता अपने संतान के सलामती के लिए माता जीवित्पुत्रिका का पवित्र सरोवर या गंगा तट पर कथा सुनती है पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित बिहार और झारखण्ड प्रदेश में आज त्यौहार सा दृश्य रहा करता है।

बात शास्त्रों की करे तो इसमे वर्णन है कि इस व्रत के प्रभाव से पुत्र शोक नहीं होता। व्रत में स्त्रियां अपने पुत्रों के लम्बी आयु , आरोग्य व बल-बुद्धि वर्धन के लिए प्रार्थना करती हैं। नदी या सरोवर के तट पर भगवान सूर्य व भगवती जगदंबिका की अनेक प्रकार से पूजन कर राजा जीमुतवाहन की कथा सुनती है। पूजन के उपरांत दीपक लेकर पुत्र के कल्याण की कामना के साथ व्रती महिलाये घर जाती हैं। यह व्रत लोकाचारों में खर-जिउतिया नाम से प्रचलित है। इसका आशय यह है कि अखंड निर्जला व्रत रहते हुए दूसरे दिन पारण किया जाए। व्रती स्त्रियां आज बनारस के गंगा घाटों के अलावा लक्ष्मीकुंड, लोलार्क कुंड, ईश्वरगंगी तालाब आदि स्थानों पर एकत्र होकर पूजन करती हैं। लेकिन सबसे ज्यादा श्रद्धालु  लक्सा स्थित लक्ष्मीकुंड पर होते थे लेकिन कोरोना काल के कारण  इस क्षेत्र में लगभग नाम मात्र का भीड़ रहा ।

इन्हें भी पढ़िए –

सड़क पर तैश में सपा , स्वर में तल्खी

जानिए किसने ताली थाली बजाकर किया सरकार का विरोध

बनारस की खबरों संग देश प्रदेश की जानकारियां

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!