स्कन्द माता – पाँचवी शक्ति की स्वरूप ,दाम्पत्य जीवन के आंगन में वात्सल्य की प्राप्ति

स्कन्द माता – पाँचवी शक्ति की स्वरूप ,दाम्पत्य जीवन के आंगन में वात्सल्य की प्राप्ति

नवरात्र की पांचवीं शक्ति स्कंद माता 
नवरात्र विशेष  / इन्नोवेस्ट न्यूज़  / 20 oct

सम्पूर्ण जगत की भलाई व देवताओं के कल्याण हेतु माँ दुर्गा भगवती नव रात्रि में नव रूपों अर्थात् प्रतिमाओं में प्रकट हुई। जिसमें स्कन्दमाता की प्रतिमा की उत्पत्ति नवरात्रि के ठीक पांचवे दिन भक्त जनों के हित के लिए होती है। वेद पुराणों में देवी देवताओं को न केवल माता-पिता की संज्ञा प्राप्त है, बल्कि वह भक्त वत्सल भी कहलाते है। इन्हीं को बागेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है।

माता का स्वरूप 
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

ये है फल प्राप्ति 
माँ स्कंदमाता की उपासना से समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक से अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्नता मिलता है। भक्त के साथ एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है। स्कन्द माता की पूजा करने से भक्तों को अभीष्ट फल तो प्राप्त होता ही है। साथ ही माता के इस विग्रह की अर्चना से दाम्पत्य जीवन के आंगन में वात्सल्य की प्राप्ति होती है।  भक्त की बुद्धि निर्मल व चित्त प्रसन्न होता है। साथ ही घर पारिवार की जिम्मेदारियों को निभाने की शक्ति प्राप्त होती है।

देवी को ये है प्रिय 
पूजा के क्रम में अड़हुल के फूल की माला, नारियल, विभिन्न फल व मिष्ठान सहित आज के दिन कमल का फूल, दूध व मेवा आदि चढ़ाने से मनोकामना पूर्ण होती है। यहाँ विराजती है मां माता का अति प्राचीन मंदिर जैतपुरा में स्थित है जिसे वागेश्वरी मंदिर से भी जाना जाता है।

देवी का ध्यान मंत्र  ” सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।। ”

 

 

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नवरात्र विशेष  / इन्नोवेस्ट न्यूज़  / 20 oct

नव रात्र से नौ रात्रियों का प्रयोजन नहीं है । नव- शक्तियों से युक्त होने से “नव-रात्र ” कहा जाता है  ” नव-शक्तिभिः सन्युक्तम नवरात्रम तदुच्यते ” ,इस प्रकार नव रात्र मे साधक ज्ञान- कर्म- भक्ति द्वारा नव-शक्तियों से युक्त होते है । नव-रात्र वर्ष मे चार बार आते है –
1- चैत्र में  2- आश्विन में  3- आषाण में  और 4- माघ में

देवी भागवत के अनुसार ‘शयन ‘ और ‘शोधन’ दो प्रकार के नव रात्र होते है । शयन चैत्र मे तथा बोधन आश्विन मे । चारो ही नव – रात्रो मे दुर्गा जी की उपासना का माहात्म्य है । आश्विन के नव रात्र की विशेष महिमा है । ‘मार्कन्डेय पुराण ‘ मे लिखा है .. ” शरत- काले महा- पूजा , क्रियते या च वार्षिकी ”

आश्विन, चैत्र, आषाण और माघ इन चारो मासो की शुक्ला प्रतिपदा से नवमी तक नव रात्र के पूजन का विधान शास्त्रों मे दिया है । आश्विन और चैत्र के नव रात्र का विशेष प्रचार इसलिए हो गया है कि इस समय ग्रीष्म तथा शीत काल के आने से विशेष ज्वर की उत्पत्ति का कोप होता रहता है । अतः उसकी शान्ति के निमित्त इन दोनों ऋतुओ मे नव रात्र को लोग विशेष रूप से मानते है । शरद व बसंत इन ऋतुओ मे विशेष ‘नव रात्रर्चन इसलिए भी है कि ये दोनों ऋतुए सर्व प्राणियों के लिए ‘यम द्रष्टा ‘ (काल के गाल मे भेजने वाली बीमारी का घर ) कही गयी है। इस लोक मे शरत और बसंत ऋतुए प्राणियों के लिए वास्तव मे बड़ी परेशानी पैदा कर देती है । अतः जिन्हे अपने कल्याण की आकांक्षा हो , उन्हे बड़े यत्न के साथ इन ऋतुओ मे ‘नव- रात्र ‘ का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए ।

 

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