शत्रु विनाशक और भय से मुक्ति दिलाती हैं माता 

  शत्रु विनाशक और भय से मुक्ति दिलाती हैं माता 

कन्या के शादी के बाधा को दूर करती है माता 
नवरात्र विशेष / इन्नोवेस्ट न्यूज़ / २१ अक्टूबर

नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी के दर्शन- पूजन की मान्यता है।आराधक, उपासक एवं साधक माता को नमन करते हुए अपना मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित करते हैं। योग साधना में आज्ञा चक्र का महत्व है। जिन कन्याओं के विवाह समय से नहीं हो रहे हैं या विवाह में अनेक अड़चनें आ रही हैं उन्हें देवी के इसी स्वरूप का दर्शन करना चाहिए।
भगवती की इस साधना के पीछे कथा है कि कत नामक प्रसिद्ध ऋषि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन प्रकट हुए। इनकी कठोर तपस्या से उनकी इच्छानुसार भगवती उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई। आश्विन कृष्ण चतुर्थी को प्रकट भई भगवती ने शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तक ऋषि कात्यायन की पूजा ग्रहण की, दशमी के दिन महिषासुर का वध किया।
इनका स्वरूप भव्य एवं दिव्य है। भगवती चार भुजाओं वाली हैं। एक हाथ वर दूसरा अभय मुद्रा में है। सिंहारूढ़ माता के तीसरे हाथ में कमल और चौथे हाथ में खड्ग सुशोभित है। जो साधक मन, वचन एवं कर्म से मां की उपासना करते हैं उन्हें वे धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष का फल प्रदान करती हैं, शत्रु का विनाश कर भय से मुक्ति दिलाती हैं।

स्थित – इनका मंदिर आत्मविरेश्वर मंदिर प्रांगण में स्थित है। यह अतिप्राचीन मंदिर, संकठा मंदिर के ठीक पीछे है।

उपासना मंत्र –  ‘चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शादरूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्यात्देवी दानवघातिनी।।’
माता को प्रिय पुष्प – लाल रंग के पुष्प विशेषकर गुलाब।
मां को भोग –  शहद का भोग चढ़ाएं व दान करें।
धारण वस्त्र रंग –
लाल व सफेद।
व्रत में आहार – हरी सब्जी।
कन्याओं को उपहार – कन्याओं को खेल के साजो-सामान दें।

विशेष उपाय  
-जिन युवक-युवतियों के विवाह में बाधा उत्पन्न हो रही हो वे कात्यायनी देवी का व्रत कर 11 हजार मंत्र का जाप करें।
-जन्म कुंडली में शुक्र प्रतिकूल हो तो मां कात्यायनी देवी के मंत्र का जाप करें।
-वृष व तुला राशि वाले मां कात्यायनी की आराधना करें। समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।

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नवरात्र विशेष / इन्नोवेस्ट न्यूज़ / २१ अक्टूबर

आइये बताते है माता दुर्गा की उन नव स्वरूपों को जिसे हम नवरात्र के पवित्र दिन में उनको पूजते है आमतौर पर ये रूप पूरी तरह से एक नारी का है जो जन्म से लेकर अंत तक अपने अलग अलग रूपों में हम सब के बीच विद्यमान रहती लेकिन या तो हम अनजान बनते है या फिर समझकर नासमझ खैर….माता को जानते है।

1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या ” शैलपुत्री “ स्वरूप है।
2. कौमार्य अवस्था तक ” ब्रह्मचारिणी ” का रूप है।
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह ” चंद्रघंटा “ समान है।
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह ” कूष्मांडा “ स्वरूप है।
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री ” स्कन्दमाता “ हो जाती है।
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री ” कात्यायनी “ रूप है।
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह ” कालरात्रि “ जैसी है।
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से ” महागौरी “ हो जाती है।
9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि (समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली ” सिद्धिदात्री “ हो जाती है।

 

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