नवरात्र के सातवें दिन भगवती कालरात्रि की पूजा-अर्चना  

नवरात्र के सातवें दिन भगवती कालरात्रि की पूजा-अर्चना  

भय नाशिनी है भगवती कालरात्रि
नवरात्र विशेष / इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 22 oct

शारदीय नवरात्र के सातवें दिन भगवती कालरात्रि की पूजा-अर्चना शास्त्र विदित है। मां दुर्गा की सातवीं शक्ति मां कालरात्रि का रंग रूप अत्यन्त विकराल है।काली कांति वाली भगवती के सिर के बाल बिखरे हुए हैं और वह त्रिनेत्र धारिणी हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। बाई तरफ नीचे वाली भुजा में खड्ग तथा ऊपर वाली भुजा में लोहे का कांटा है। दाहिनी तरफ नीचे वाली भुजा अभय मुद्रा और ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में है। देवी के नथुनों से अग्नि की ज्वाला फूटती रहती है। मां का वाहन गर्दभ है। रूप अत्यन्त दिव्य किन्तु सदैव शुभफल प्रदान करती हैं।
सातवें दिन की पूजा में साधक का मन ‘सहस्रवार चक्र’ में स्थित रहता है और मां की कृपा से ब्रम्हांड  की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। काल जो सबको काल कलवित करता है, भगवती उसका भी विनाश करने वाली है। यदि कोई साधक या भक्त अकाल मृत्यु के भय से ग्रसित होता है तो मां उसे भयमुक्त करती हैं। असुर, भूत-प्रेत आदि मां के स्मरण मात्र से पलायन कर जाते हैं। व्यापार, सर्विस और रोजगार में आने वाली बाधा मां की कृपा से दूर हो जाती है। अग्नि भय, शत्रु भय एवं अन्याय भय का मां शमन करती हैं। इनका मंदिर कालिका गली, दशाश्मवेध में है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।

 

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