तिथि विशेष – क्या है संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी या अंगारकी संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत , करें कष्टों का निवारण

तिथि विशेष – क्या है संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी या अंगारकी संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत , करें कष्टों का निवारण

 

 

 

 तिथि विशेष – क्या है संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी या अंगारकी संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत , करें कष्टों का निवारण  
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 2 मार्च

 

श्रीगणेश-अर्चना से मिलेगी सुख-समृद्धि, खुशहाली
अंगारकी संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी : 2 मार्च, मंगलवार को
चन्द्रोदय होगा रात्रि 9 बजकर 15 मिनट पर  

समस्त शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम मंगलमूॢत श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। सनातन हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। संकट निवारण एवं सुख-समृद्धि के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धार्मिक परम्परा है। चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन किए जाने वाला व्रत संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी इस बार मंगलवार, 2 मार्च को पड़ रही है।  ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि सोमवार, 1 मार्च को अर्ध रात्रि  के पश्चात 5 बजकर 47 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन मंगलवार, 2 मार्च को अर्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 00 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत मंगलवार, 2 मार्च  को रखा जाएगा। मंगलवार के दिन पडऩे वाली चतुर्थी अंगारकी श्रीगणेश चतुर्थी के नाम से भी जानी जाती है। चन्द्रोदय रात्रि 9 बजकर 15 मिनट पर होगा। श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात् चन्द्रमा को अर्घ देकर किया जाएगा।

 

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ऐसे होते हैं श्रीगणेशजी प्रसन्नसंकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होना चाहिए। तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुन: स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, इसलिए दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अॢपत करने चाहिए।
ऐसे होगी मनोकामना पूरीश्रीगणेशजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी महिमा में यशगान के रूप में श्रीगणेश स्तुति, संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित अन्य स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेशजी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना विशेष लाभकारी रहता है। ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रात:काल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोरथ की पूर्ति के साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

 

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जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार ग्रहजनित दोष हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। वर्तमान समय में जिन्हें अपने जीवन में संकटों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन श्रीगणेश जी का दर्शन-पूजन करके व्रत रखना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष, विद्याथियों  एवं अन्य जनों के लिए समानरूप से फलदायी है। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए श्रीगणेशजी की अर्चना से सर्वसंकटों का निवारण तो होता ही है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।

 

 

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