
जयंती विशेष
जानिये शहनाई के जादूगर भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां’को
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 21 मार्च
शहनाई के जादूगर ,भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की 105 वीं जयंती है। दरगाह फातमान स्थित उनके मकबरे पर उनके कद्रदानों ने अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे । फातिया भी पढ़ी जाएगी तो वेद मन्त्रों की आवाज भी गूंजेगी । ये मां गंगा के सानिध्य में जवान होने के साथ शहनाई को जमीं से आशमा की ऊँचाई प्रदान कराया। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि खां साहब की मां कभी नहीं चाहती थीं कि उनका बेटा शहनाई का तान छेड़े ।
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जन्म से जादूगर तक की यात्रा
उस्ताद का जन्म पैगंबर खां और मिट्ठन बाई के यहां बिहार के डुमरांव स्थित ठठेरी बाजार में एक किराए के मकान में 21 मार्च 1916 ई. को हुआ था। उनके बचपन का नाम कमरुद्दीन था। वे अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे। उनके पैदा होने पर दादा रसूल बख्श ने ‘बिस्मिल्लाह’ कहा, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘शुरू करता हूं अल्लाह के नाम से’। इसलिए बाद में घर वालों ने उनका यही नाम रख दिया, और आगे चलकर वे ‘बिस्मिल्लाह खां’ के नाम से मशहूर हुए। उनके खानदान के लोग दरबारी राग बजाने में माहिर थे। उनके पिता बिहार की डुमरांव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में शहनाई बजाया करते थे। छह साल की उम्र में बिस्मिल्लाह खां अपने पिता के साथ बनारस आ गए। यहां उन्होंने अपने चाचा अली बख्श ‘विलायती’ से शहनाई बजाना सीखा। उनके उस्ताद चाचा ‘विलायती’ विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां शिया मुसलमान थे फिर भी हिन्दू धार्मिक रीति रिवाजों के पक्षधर थे।
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कुछ तत्य
– इंडिया गेट पर शहनाई बजाने की इच्छा रखने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की ये हसरत अधूरी ही रह गई।
– 21 अगस्त 2006 को अंतिम सांस ली और उनकी शहनाई की धुन खामोश हो गई।
– 1947 में आजादी की पूर्व संध्या पर जब लाल किले पर उनकी शहनाई बजी थी।
– प्रति वर्ष 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई बजने की प्रथा रही।
– इनकी शहनाई अपनी धुन विदेशों में भी बिखेरीं
– बिस्मिल्लाह खां ने कन्नड़ फिल्म ‘सन्नादी अपन्ना’, हिंदी फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ और सत्यजीत रे की फिल्म ‘जलसाघर’ के लिए शहनाई बजायी थी।
– आखिरी फिल्म आशुतोष गोवारिकर की हिंदी फिल्म ‘स्वदेश’ के गीत ‘ये जो देश है तेरा’ के लिए शहनाई की तान छेड़ी थी।
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