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जानें, क्यों मनाई जाती है होली ….
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 25 मार्च
होली का त्योहार भारतवर्ष में अति प्राचीनकाल से मनाया जाता आ रहा है। इतिहास की दृष्टि से देखें तो यह वैदिक काल से मनाया जाता आ रहा है। हिन्दू मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत की शुरुआत होती है। चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था। इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है। नरसिंह रूप में भगवान इसी दिन प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप नामक महासुर का वध कर भक्त प्रहलाद को दर्शन दिए थे। होली मनाने की मुख्य रूप से तीन वजह बताई जाती है।
पहली वजह – कामदेव हुआ भस्म
शिव पुराण के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तप कर रही थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव जी की तपस्या भंग करने भेजा परन्तु शिव ने क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर दिया। शिव जी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
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दूसरा वजह – पूतना का वध
कंस को जब आकाशवाणी द्वारा पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसका विनाशक होगा तो कंस ने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया। कारागार में जन्मे देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने मार दिया। सातवें पुत्र शेष नाग के अवतार बलराम थे जिनके अंश को जन्म से पूर्व ही वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया था। आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। वसुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए। कंस उस कन्या को मार नहीं सका और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने तो गोकुल में जन्म ले लिया है। तब कंस ने उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा। वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था। अत: बुराई के अंत की खुशी में होली मनाई जाने लगी।
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तीसरी वजह – हिरण्यकश्यप वध
होली की पूर्व संध्या में होलिका दहन किया जाता है। इसके पीछे एक प्राचीन कथा है कि दीति का पुत्र हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था। इसने अपनी शक्ति के घमंड में आकर स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया और घोषणा कर दी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी। उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दी और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रहलाद विष्णु की भक्ति करता रहा। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की, परंतु भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी कि जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को प्रहलाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई जिससे प्रहलाद की जान बच गई और होलिका जल गई। होलिका दहन के दिन होली जलाकर ‘होलिका’ नामक दुर्भावना का अंत और भगवान द्वारा भक्त की रक्षा का जश्न मनाया जाता है।
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