
– धर्म नगरी
पापमोचनी एकादशी – ग्रहों की प्रतिकूलता संग जीवन के समस्त पापों से मुक्ति का दिन
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 6 अप्रैल
हिन्दू सनातन धर्म में व्रत त्यौहार की परम्परा काफी पुरातन है। भारतीय सनातन धर्म में पापमोचनी एकादशी तिथि अपने आप में शुभ फलदायी मानी गई है। विशेष तिथियों पर पूजा-अर्चना करके सर्वमनोकामना पूरी की जाती है, इसी क्रम में चैत्र कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि की विशेष महत्ता है। पुराणों के अनुसार पापमोचनी एकादशी को व्रत रखना बेहद फलदायी माना गया है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन के अनुसार चैत्र कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि पापमोचनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार चैत्र कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 6 अप्रैल, मंगलवार को अर्धरात्रि के पश्चात् 2 बजकर 10 मिनट पर लगेगी जो कि 7 अप्रैल, बुधवार को अर्धरात्रि के पश्चात् 2 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। सम्पूर्ण दिन एकादशी तिथि मिलने से 7 अप्रैल, बुधवार को यह व्रत रखा जाएगा। एकादशी तिथि भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। पापमोचनी एकादशी की खास महिमा है, जैसा कि तिथि के नाम से विदित है कि तिथि विशेष के दिन सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखने से चन्द्रमा एवं अन्य ग्रहों की प्रतिकूलता से बचा जा सकता है, साथ ही जीवन के समस्त पापों से मुक्ति भी मिलती है। निर्जल एवं निराहार रहकर भगवान श्रीहरि विष्णु जी की भक्तिभाव एवं हर्षोल्लास के साथ पूजा-अर्चना करना विशेष लाभकारी बतलाया गया है।
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ऐसे रखें व्रत
व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् पापमोचनी एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है। भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र ‘ॐ नमो नारायण ‘ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अर्जित करके लाभ उठाना चाहिए। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से नियमित संयमित रहते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है।
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