@बनारस  – सावन विशेष में महादेव से जुड़ीं जानकारियां

@बनारस – सावन विशेष में महादेव से जुड़ीं जानकारियां

इस अंक में – महत्त्व सोमवती अमावस्या की ,जानिये शिवपूजन और बिल्वपत्र की क्या हैं महिमा , शूलटंकेश्वर महादेव –  जहाँ से गंगा होती है उत्तरवाहिनी ,पहले सोमनाथ, फिर बाबा काशी विश्वनाथ , शिव शक्ति आराधना से दूर होगा कोरोना और काशी में कहां-कहां है द्वादश ज्योतिर्लिंग

 

हरियाली अमावस्या एवं सोमवती अमावस्या 
@बनारस  / innovest /  19 जुलाई
– विमल जैन

20 जुलाई सोमवार के दिन अमावस्या तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र का अनूठा संयोग  , स्नान-दान व श्राद्ध कृत्य कल्याणकारी, साथ ही पितृदोष का भी होगा निवारण  , पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा से होगी मनोकामना पूरी  , भगवान शिवजी, श्रीविष्णु जी तथा पीपल वृक्ष की पूजा से मिलेगी खुशहाली, कटेंगे कष्ट

भारतीय संस्कृति में हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक हर माह के तिथि पर्व का अपना विशेष महत्व है। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि ‘हरियाली अमावस्या’ के नाम से जानी जाती है। श्रावण मास की अमावस्या तिथि के दिन भगवान् श्रीविष्णु जी की पूजा-अर्चना के साथ ही दुर्गाजी एवं श्री हनुमान जी के दर्शन-पूजन एवं पीपल के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। आज के दिन शिवपूजा विशेष कल्याणकारी होती है। शिवजी का रुद्राभिषेक भी आज के दिन करवाना लाभकारी माना गया है। इस बार सोमवार के दिन अमावस्या होने से ‘सोमवती अमावस्या ‘ का भी अनुपम संयोग बना हुआ है, जो अत्यन्त शुभ फलदायी है। श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि रविवार, 19 जुलाई को अर्द्ध रात्रि 12 बजकर 10 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन सोमवार, 20 जुलाई को रात्रि 11 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। सोमवार के दिन अमावस्या तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र सम्पूर्ण दिन रहेगा। स्नान -दान-श्राद्ध की अमावस्या सोमवार, 20 जुलाई को मनाया जाएगा, जिन्हें पितृदोष हो, उन्हें आज के दिन विधि-विधानपूर्वक कर्मकाण्डी ब्राह्मïण से पितृदोष की शान्ति करवानी चाहिए।
ऐसे करें पूजा-अर्चना—
सोमवती अमावस्या पर पीपल वृक्ष की पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है। अमावस्या तिथि पर विधि-विधान पूर्वक पितरों की भी पूजा-अर्चना की जाती है। पितरों के आशीर्वाद से जीवन में भौतिक सुख-समृद्धि, खुशहाली का आगमन होता है। इस दिन पीपल के वृक्ष व भगवान् विष्णु जी की पूजा-अर्चना के साथ पीपल वृक्ष की परिक्रमा करने पर आरोग्य व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
पीपल के वृक्ष की विशेष महिमा—
पीपल वृक्ष में समस्त देवताओं का वास माना गया है। पीपल के वृक्ष को जल से ङ्क्षसचन करके विधि-विधान पूर्वक पूजा के पश्चात् 108 बार परिक्रमा करने पर सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस दिन व्रत उपवास रखकर इष्ट-देवी देवता एवं आराध्य देवी देवता की पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिए। ब्राह्मण को घर पर निमन्त्रित करके उन्हें भोजन करवाकर सफेद रंग की वस्तुओं का दान जैसे—चावल, दूध, मिश्री, चीनी, खोवे से बने सफेद मिष्ठान्न, सफेद वस्त्र, चाँदी एवं अन्य सफेद रंग की वस्तुएं दक्षिणा के साथ देकर, उनका चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिए। किसी कारणवश यदि ब्राह्मïण को भोजन न करवा सकें तो इस स्थिति में उन्हें भोजन सामग्री (सिद्धा) के साथ नकद द्रव्य देकर पुण्यलाभ प्राप्ïत करना चाहिए।समस्त धार्मिक अनुष्ठान करने पर उत्तम फल की प्राप्ति होती है। पीपल के वृक्ष की पूजा का आज विशेष महत्व है।
पीपल के वृक्ष की पूजा का मन्त्र—‘ मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्ये विष्णुरूपिणे अग्रतो शिवरूपाय पीपलाय नमो नम:।
आज के दिन व्रतकर्ता को अपनी दिनचर्या नियमित व संयमित रखते हुए यथासम्भव गरीबों, असहायों और जरूरतमन्दों की सेवा व सहायता तथा परोपकार के कृत्य अवश्य करने चाहिए। जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहे।


जानिये शिवपूजन और बिल्वपत्र की क्या हैं महिमा 

@बनारस  / innovest /  19 जुलाई
– चन्दन महाराज

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।
अर्थात्–तीन दल वाला, सत्त्व, रज एवं तम:स्वरूप, सूर्य-चन्द्र-अग्नि–त्रिनेत्ररूप और आयुधत्रय स्वरूप तथा तीनों जन्मों के पापों को नष्ट करने वाला बिल्वपत्र मैं भगवान शिव को समर्पित करता हूँ।बिल्वपत्र (बेलपत्र) से ही शिवपूजन की पूर्णता । मनुष्य जन्म दुर्लभ है, जिसका मुख्य लक्ष्य है मोक्ष की प्राप्ति। इसका मुख्य साधन है ज्ञान जो भगवान शिव की उपासना से प्राप्त होता है। शिवजी की आराधना केवल जल व पत्र-पुष्प से ही हो जाती है। इनमें प्रमुख है बिल्वपत्र।समुद्र-मंथन से उत्पन्न हलाहल-विष की ज्वाला से दग्ध त्रिलोकी की रक्षा के लिए भूतभावन भगवान शिव ने स्वयं ही उस महागरल का हथेली पर रखकर आचमन कर लिया और नीलकण्ठ कहलाए। उस विष की अग्नि को शांत करने के लिए भगवान शिव पर ठंडी वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं; जैसे–जल, गंगाजल, दूध, बेलपत्र गुलाबजल, आदि। इससे भगवान शिव का मस्तक शीतल रहता है। शिवपुराण में कहा गया है कि यदि पूजन में अन्य कोई वस्तु उपलब्ध न हो तो बिल्वपत्र ही समर्पित कर देने चाहिए। शिवजी को बिल्वपत्र अर्पित करने से ही पूजा सफल और सम्पूर्णता को प्राप्त होती है।भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए बिल्वपत्र के तीनों दलों पर लाल चंदन से या कुंकुम से ‘राम’ लिखकर या ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर अर्पण करना चाहिए। शिवपूजन में संख्या का बहुत महत्व होता है। अत: विशेष अवसरों पर जैसे शिवरात्रि, श्रावण के सोमवार, प्रदोष आदि को ११, २१, ३१, १०८ या १००८ बिल्वपत्र शिवलिंग पर अर्पित किए जा सकते हैं।

काशी विश्वनाथ का दर्शन 

 

मनोकामनापूर्ति, संकटनाश व सुख-सम्पत्ति के लिए इस मन्त्र के साथ चढ़ाएं बेलपत्र,,,,
भालचन्द्र मद भरे चक्ष, शिव कैलास निवास,भूतनाथ जय उमापति पूरी मो अभिलाष।शिव समान दाता नहीं, विपति विदारन हार,लज्जा मेरी राखियो सुख सम्पत्ति दातार।।

भगवान शिव को बिल्वपत्र कई प्रकार के मन्त्र बोलते हुए अर्पित किया जा सकता है–
नमो बिल्मिने च कवचिने च नर्मो वर्मिणे च वरूथिने च ।नम: श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय च।।श्रीसाम्बशिवाय नम:। बिल्वपत्राणि समर्पयामि।यात्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।या
ॐ नम: शिवाय इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बिल्वपत्र समर्पित किए जा सकते हैं। मन्त्र बोलने में असमर्थ हैं तो केवल ‘शिव’ ‘शिव’ कहकर भी बेलपत्र अर्पित कर सकते हैं।

शिवपूजा में बिल्वपत्र चढ़ाते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए–
–बेलपत्र छिद्ररहित होना चाहिए।–तीन पत्ते वाले, कोमल, अखण्ड बिल्वपत्रों से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।–बिल्वपत्र में चक्र व वज्र नहीं होने चाहिए। बिल्वपत्रों में जो सफेद लगा रहता है उसे चक्र कहते हैं और डण्ठल में जो गांठ होती है उसे वज्र कहते है।–बेलपत्र धोकर मिट्टी आदि साफ कर शिवजी पर अर्पित करने चाहिए।–जिन तिथियों में बेलपत्र तोड़ने की मनाही है, उस समय बासी व सूखे बेलपत्र भगवान शिव को अर्पित कर सकते हैं।–बिल्वपत्र सदैव अधोमुख (उल्टा) चढ़ाना चाहिए। इसका चिकना भाग नीचे की तरफ रहना चाहिए।

 

शूलटंकेश्वर महादेव –  जहाँ से गंगा होती है उत्तरवाहिनी
@बनारस  / innovest /  19 जुलाई
– डॉ सुभाष पांडेय

काशी के कण-कण में शिव है और यहां की महिमा भी अनंत है काशी को मंदिरों का शहर कहा जाता है और यहां गलियों से सड़क तक कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी पौराणिकता और महत्त्व पुराणों में मौजूद है।इनमें से ही एक मंदिर है काशी से लगभग 15 किलोमीटर दूर माधवपुर में स्थित शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर । इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग दूर दराज से आने वाले भक्तों के सभी कष्टों का निवारण करता है लेकिन काशी के दक्षिण में बसा यह इलाका इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि काशी में उत्तरवाहिनी होकर बहने वाली गंगा इसी शूलटंकेश्वर मंदिर के पास घाटों से उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश कर रही ऐसा क्यों और क्या वजह है जो गंगा काशी में हुई उत्तरवाहिनी उसी से जुड़ी है इस मंदिर की पूरी कहानी।शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में जिस स्थान से गंगा उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती हैं वहां है शूलटंकेश्वर का मंदिर। मंदिर के पुजारी बताते हैं इस मंदिर का नाम पहले माधव ऋषि के नामपर माधवेश्वर महादेव था। शिव की आराधना के लिए उन्होंने ही इस लिंग की स्थापना की थी। यह बात गंगावतरण से पूर्व की है। गंगा अवतरण के समय भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से गंगा को रोक  कर यह वचन लिया था कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी।साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस खींचा। तब यहां तपस्या करने वाले ऋषियों-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रखा।इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां गंगा का कष्ट दूर हुआ उसी प्रकार अन्य भक्तों का कष्ट दूर हो। यही वजह है कि पूरे वर्ष तो यहां भक्त दर्शन को आते ही है लेकिन जिन भक्तों की यहां दर्शन से पूरी होने वाली मनोकामनाओं के बारे में पता है वो सावन के महीने में दूर दराज से आते है।

शूलटंकेश्वर महादेव –  जहाँ से गंगा होती है उत्तरवाहिनी

 

पहले सोमनाथ, फिर बाबा काशी विश्वनाथ
@बनारस  / innovest /  19 जुलाई
-डॉ विनय पांडेय

काशी के कंकड़-कंकड़ से नमामि शंकर का स्वर प्रस्फुटित होता है। गंगा किनारे से लेकर  मंदिर तक और मठ की चौखट से लेकर भक्तों के जमघट तक, हर तरफ बाबा भोलेदानी की कृपा बरसती है। यूं तो काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है, लेकिन यहां भी उनसे पहले सोमेश्वर महादेव के दर्शन की शास्त्र सम्मत मान्यता साकार है। कहा जाता है कि पहले सोमनाथ, फिर बाबा काशी विश्वनाथ। काशी खण्डोक्त सोमेश्वर महादेव का अतिप्राचीन मंदिर मानमंदिर में स्थापित है। यह मंदिर पांच सौ साल से ज्यादा पुराना है। यहां सोमेश्वर महादेव स्वयंभू हैं। यानि बाबा का ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ था। द्वादशज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम इन्हीं की पूजा-अर्चना का विधान है। सोमेश्वर महादेव को जल चढ़ाने के बाद ही शिवभक्त बाबा काशी विश्वनाथ जी की पूजन-परिक्रमा आरंभ करते हैं। सामेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से भगत-जगत की मनचाही मुराद पूरी हो जाती है। कई महिला श्रद्धालुओं को संतान की प्राप्ति हुई तो कइयों को कोर्ट-कचहरी और वाद-विवाद में विजय मिली है। यह सब सोमेश्वर महादेव की कृपा से संभव हुआ है। ज्योतिर्लिंग की विधि-विधान से पूजा-अर्चन करने से आसन्न संकट और विपत्ति भी टल जाती है। इसके अलावा मंदिर में नवग्रह शांति के लिए पूजन-अर्चन करा श्रेष्ठकर है। यूं तो बाबा का दर्शन बारहोमास किया जाता है, लेकिन सावन और सोमवार को दर्शन करने का विशेष फलदायी माना गया है। चूंकि सोमवार बाबा का प्रिय दिन है। इसके अलावा सावन शुक्ल पक्ष की द्वितीया, प्रदोष व्रत और पूर्णिमा तिथि भी दर्शन के लिए अतिशुभ मानी गयी है। बाबा के दर्शन से कुण्डली में चंद्र ग्रह का दोष दूर करना होता है। मंदिर में छप्पन विनायक में शामिल शूलदंत विनायक का विग्रह भी है।

 

शिव शक्ति आराधना से दूर होगा कोरोना 
@बनारस  / innovest /  19 जुलाई
-पं0 चक्रपाणि भट्ट

इस वर्ष श्रावण माह का शुभ आगमन उत्तराषाढ नक्षत्र, सोमवार तथा वैधृति योग में दिनांक- 6 जुलाई से हो रहा है। इस श्रावण का विशेष महत्व इसलिए भी है कि श्रावण के प्रथम दिन भी सोमवार है और अन्तिम दिन रक्षा-बन्धन वाले दिन भी सोमवार है। इस प्रकार इस वर्ष सावन में पाँच सोमवार का अति शुभ योग है।सावन भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है। अतः सावन भर शिव-पूजा-आराधना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। शिव-शाक्त में शिव के साथ शक्ति की पूजा करने से प्राप्त फल के विषय में इस प्रकार उल्लिखित है- “शिवेन सह पूजयते शक्ति:सर्व काम फलप्रदा।।”साथ ही सावन में शिव-शक्ति पूजा की फलश्रुति में स्पष्ट उल्लिखित है-
 “यम यम चिन्तयते कामम तम तम प्रापनोति निश्चितम।। परम ऐश्वर्यम अतुलम प्राप्यससे भूतले पुमान।।”
अर्थात् इस भूतल पर समस्त प्रकार के रोग व्याधि, पीड़ा एवं अभावों से मुक्ति दिलाने के लिए ही श्रावण माह में भगवान शिव अपने कल्याणकारी रूप में धरती पर अवतरित होते हैं। अतः विधि-विधान के साथ भगवान शिव का पंचोपचार पूजन करना अति फलदायक होगा। इस क्रम में सर्व प्रथम शिव जी को पंचामृत स्नान कराकर गंगा-जल अथवा शुद्ध कूप (पाताल) जल में कुश, दूध, हल्दी एवं अदरक का रस मिलाकर रूद्राभिषेक करने से वर्तमान में व्याप्त वैश्विक महामारी ‘ कोरोना’ का अन्त सम्भव है।साथ ही व्यक्ति वर्षपर्यंत धन-धान्य से पूर्ण रहते हुए निरोग रहेगा।
अभिषेक के बाद अथवा नित्य शिव जी को कम से कम बारह बेलपत्र चढ़ावे सभी बेलपत्र पर देशी घी से “राम-राम” लिख कर” ॐ नम: शिवाय शिवाय नम:”। इस मन्त्र से एक-एक कर शिव जी को अर्पित करे। बेलपत्र बारह ही नहीं अपितु यथा शक्ति एक सौ आठ, ग्यारह सौ भी चढ़ा सकते हैं। बेलपत्र अर्पित करने के बाद “ॐ हौम ॐ जूँ स:” इस मन्त्र का जाप करने से आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। शिव-पुराण के अनुसार श्रावण मास में शिव शक्ति अर्थात् देवी के साथ भू-लोक में निवास करते हैं। अतः शिव के साथ भगवती की भी पूजा करनी चाहिए। श्रावण मास में भगवान शिव की जलहरि या अर्घे में भगवती पार्वती का निवास होता है। शिवजी को भस्म अवश्य लगाना चाहिए। ”भस्म” मौलिक-तत्व का प्रतीक है और वृषभ (बैल) जगत धर्म-प्रतीक शक्ति का प्रतिनिधि है। अपने समस्त कार्य-सिद्ध हेतु शिव के उन सिद्ध मन्त्रों का पाठ करना चाहिए, जिनसे शक्ति दुर्गा की भी स्तुति हो।
 शिव-शक्ति मन्त्र-
“ॐ उत्तप्तहेमरूचिराम रविचन्द्र वह्निम, नेत्राम धनुश्श्रयतंकुश पाशशूलम। रम्यैर्भुजै:च दधतीम शिवशक्तिरूपम।कामेश्वरीम ह्रिदि भजामि धृतेंदुलेखाम।।अथवा रुद्रो नर उमा नारी रुद्रो ब्रह्मा उमा वाणी। शिवकाली काल रूपा तस्मै तस्यायै नमो नम:।।
एक मन्त्र और-
“ पापोहं पाप कर्माहं पापात्मा पाप सम्भव। त्राहिमाम पार्वतीनाथ सर्व रोग हरो भव।।” इन मन्त्रों से स्तुति करने से शिव शक्ति निरन्तर कल्याण करते रहते हैं। विशेष रूप से “कोरोना” महामारी पर विजय प्राप्त करने के लिए शिवजी के साथ महादुर्गा (शक्ति) की भी स्तुति करने से पूजा से प्राप्त होने वाले दुगुने फल की प्राप्ति होती है।
महामारी के साथ-साथ समस्त कष्टों से मुक्ति का मार्ग प्राप्त हो जाता है, मन्त्र इस प्रकार है —
“महाकाल्या महाकाले महामारी स्वरुपया। सैवकाले महामारी सैवसृष्टि भवत्यजा।।” श्री भगवते साम्ब सदा शिवाय नम: ।।

 

काशी में भी है द्वादश ज्योतिर्लिंग, सावन माह मे दर्शन के लिए उमड़ती है भीड़
@बनारस  / innovest /  19 जुलाई
– राजीव मिश्रा

काशी में भी द्वादश ज्योतिर्लिंग विराजमान है। सावन मास में इनके दर्शन पूजन करने का महत्व है। बहुत से भोले भक्त चाह कर भी बारहों ज्योतिर्लिंग के दर्शन नहीं कर पाते हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों में छटवें विशेवश्वर हैं जो कि बाबा विश्वनाथ के नाम से विश्वनाथ गली में स्थित है। काशी के अलग- अलग क्षेत्रों में द्वादश ज्योतिर्लिंग विराजमान है जिसका दर्शन पूजन कर शिव भक्त अपना जीवन सार्थक और पुण्य अर्जित कर सकते हैं। सावन में शिव की पूजन विशेष फलदायी होती हैं। कृष्ण पक्ष के तेरस पर काशी में विराजते द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा करते हैं। यात्रा की शुरूआत मध्यमेश्वर ज्योतिर्लिंग से होती है।

काशी में कहां-कहां है द्वादश ज्योतिर्लिंग
1- सोमनाथ , यह मन्दिर (मकान न., डी16/34 मान मन्दिर घाट पर स्थित है)2- मल्लिकार्जुन, यह मन्दिर (मकान न., सी59/65 सिगरा पर स्थित है)3- महाकालेश्वर – यह मन्दिर (मकान न., 52/3 दारानगर में स्थित है)4- केदारेश्वर- यह मन्दिर (केदार घाट पर स्थित है)5- भीमा शंकर- यह मन्दिर ( मकान न., सीके 32/12 नेपाली खपड़ा चौक पर स्थित है)
6- विशेश्वर- यह मन्दिर (रेड जोन विश्वनाथ गली में स्थित है)7- त्रयम्बकेश्वर- यह मन्दिर (बांस फाटक (हौज कटोरा) स्थित है)8- बैधनाथ धाम- यह मन्दिर ( मकान न., 37/1 बैजनत्था में स्थित है)9- नागेश्वर- यह मन्दिर ( पठानी टोला में स्थित है)10- रामेश्वरम्- यह मन्दिर (रामकुण्ड के तट पर स्थित है)11- घुश्मेश्वर- यह मन्दिर (मकान न., बी31/126 कामख्या देवी मन्दिर में कमच्छा स्थित है)12- ओमकारेश्वर – यह मन्दिर ( मकान न., सीके 1/21 पठानी टोला में स्थित है)

 

देखिये महादेव से जुड़ीं इन वीडियो को ….

 

भगवान शिव की तीन बेटियां  …..

 

बैजनथ्था स्थित ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ महादेव की आरती 

 

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