जहाँ  परिक्रमा करने से मिलता हैं मोक्ष

जहाँ परिक्रमा करने से मिलता हैं मोक्ष

ओंकारेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग

ओंकारेश्वर धाम मध्य प्रदेश की मोक्ष दायिनी कही जाने वाली नर्मदा नदी के तट पर बसा हैं। यहां विराजित ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु नर्मदा पर बने पुल के माध्यम से उस पार जाना पड़ता हैं। नर्मदा नदी के बीच मन्धाता व शिवपुर नामक द्वीप पर ओंकारेश्वर पवित्र धाम बना हुआ हैं। बताया जाता हैं कि जब भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान हुआ था तब नर्मदा नदी यहां स्वतः ही प्रकट हुई थी। आस्था हैं कि भगवान शिव के पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु पहले नर्मदा में स्नान कर पवित्र डूबकी लगाना पड़ती हैं। जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की कामना पूरी करते हैं। राजा मान्धाता की तपस्या से यहां प्रसन्न हुए थे भगवान शिव-ओंकारेश्वर पवित्र धाम को लेकर कई प्रकार की कथाएं प्रचलित हैं। बताया जाता हैं कि ओंकारेश्वर धाम मन्धाता द्वपि पर स्थित हैं। मन्धाता द्वीप के राजा मान्धाता ने यहां पर्वत पर घोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न हुए भगवान शिव से राजा ने वरदान स्वरूप यही निवास करने का वरदान मांगा। जिसके बाद भगवान ने राजा के वचन अनुसार यहां पवित्र ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव विराजमान हुए एवं राजा के राज्य में रहने वाली हर जनता की सुरक्षा एवं रक्षा भगवान शिव स्वयं करते रहें। प्राचीन कथाओं के अनुसार ओंकारेश्वर को तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के नाम से भी प्राचीन समय में जाना जाता था।

इतिहास
शास्त्रों के अनुसार ५५०० वर्षों पुराना ओंकारेश्वर कई कालों से एक जाना माना तीर्थ स्थल है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार १०-१३ वी. शताब्दी में ओंकारेश्वर पर परमार शासकों का राज था जिसके पश्चात चौहान राजपूत शासकों ने यहाँ राज किया था। यहाँ तक कि मुगलों के सम्पूर्ण शासन की अवधि में भी ओंकारेश्वर का शासन प्रबंध चौहान वंश के हाथों में था। १८ वीं. शताब्दी में मराठाओं ने इस पर अधिपत्य किया। इसी काल में यहाँ कई नवीन मंदिर बने तथा कई प्राचीन मंदिरों का पुनरुद्धार हुआ। अंततः अंग्रेजों ने इस पर अधिपत्य जमाया। १९४७ में देश के अन्य भागों का साथ ओंकारेश्वर भी स्वतन्त्र हुआ।

इसलिए इस तीर्थ का नाम हैं ओंकारेश्वर-
राजा मान्धाता ने अपनी प्रजा के हित तथा मोक्ष के लिए तपस्या कर भगवान शिव से यही विराजमान होने का वरदान मांगा था। जिसके बाद से यहां पहाड़ी पर ओंकारेश्वर तीर्थ ॐ के आकार में बना हुआ हैं। ॐ शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ तथा वेद का पाठ उच्चारण किए बिना नही होता हैं। इसलिए इस तीर्थ का नाम ओंकारेश्वर हैं। आस्था हैं कि ॐ आकार से बने तीर्थ की परिक्रमा करने पर अत्यंत लाभदायक फल तथा मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

ओमकारेश्वर मंदिर

इस टापू पर लगभग 67 मंदिर स्थापित है, माना जाता है कि यहाँ 33 करोड़ देवी देवता निवास करते हैं | इस मंदिर से जुडी मान्यता है कि तीनों लोकों में भ्रमण करने के पश्चात भगवान् शंकर रात्री में इसी जगह पर आकर विश्राम करते हैं | इस मंदिर की देखरेख व संचालन का कार्य श्री ओमकारेश्वर मंदिर ट्रस्ट द्वारा देखा जाता है |

मंदिर परिसर –

ओमकालेश्वर मंदिर एक पांच मंजिला इमारत में स्थित है जिसमे पहली मंजिल पर महाकालेश्वर महादेव, दूसरी मंजिल पर ओमकारेश्वर महादेव, तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव, चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और आखिरी पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव स्थापित हैं | इसके अलावा ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की परिक्रमा के मार्ग पर कई मंदिर व आश्रम स्थापित हैं | नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर अम्लेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है | ओमकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर पूरे भारत का एक मात्र ऐसा मंदिर हैं जहाँ भगवान् शंकर माता पार्वती के साथ रात्री में विश्राम करते हैं | भगवान के लिए रात में चौंसर पासा खेलने की व्यवस्था भी की जाती है को सुबह उलट पुलट मिलती है जिससे भगवान् के यहाँ होने का प्रमाण मिलता है | पुजारियों द्वारा यहाँ महादेव की संध्या आरती और एक गुप्त आरती भी की जाती है |

धार्मिक मान्यता –

हिन्दू धार्मिक पुराणों के अनुसार समस्त तीर्थो का जल लाकर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर अर्पित करने से ही उन तीर्थों का पुण्य लाभ मिलता है | यहाँ से निकलने वाली नर्मदा नदी का भी हिन्दू धर्म में विशेष महात्व है, पुराणों के अनुसार जमुना जी में 15 दिन और गंगा जी में 7 दिन स्नान करके मिलने वाला पुण्य लाभ नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है | इस द्वीप पर दो ज्योति स्वरूप शिवलिंगों के साथ 108 प्रभावशाली शिवलिंग स्थापित हैं

|विराजित हैं 33 कोटि देवता , नर्मदा नदी का दर्शन देता हैं मनचाहा फल
ओंकारेश्वर को लेकर कई मान्यता हैं जो इस तीर्थ के प्रति एक नई आस्था को हर रोज मनुष्य में उत्प्न्न करती हैं। कहा जाता हैं कि यहां पर 33 कोटि देवी देवताओं का वास हैं तथा नर्मदा नदी मोक्ष दायनी हैं। 12 ज्योतिर्लिंग में चौथे स्थान पर ओंकारेश्वर का पवित्र ज्योतिर्लिंग भी शामिल हैं। शास्त्रों में मान्यता हैं कि जब तक तीर्थ यात्री ओंकारेश्वर के दर्शन कर यहां नर्मदा सहित अन्य नदी का जल नही चढ़ाते हैं तब तक उनकी यात्रा पूर्ण नही मानी जाती हैं। तथा यहां पर नर्मदा नदी में लगातार 7 दिवस तक सूर्य उदय से समय स्नान कर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से रोग, कष्ट दूर होकर मनचाहा फल एवं मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

मंदिर से जुडी कथा –

पहली कथा –

मान्यतानुसार इस ओमकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिवलिंग की स्थापना धन के देवता कुबेर ने भगवान् शिव की तपस्या करते समय की थी | तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर से कुबेर को धन का देवता बनाया और कुबेर को स्नान करने के लिए अपने बालों से यहाँ कावेरी नदी को उत्पन्न किया जो ओंकार पर्वत की परिक्रमा करके नर्मदा नदी में मिलकर कावेरी नर्मदा संगम बानाती है | यहाँ दीपावली के धनतेरस की पूजा पर गेहूं की बाल चड़ने का विशेष महत्त्व है |

दूसरी कथा –

भगवान् शंकर के अनन्य भक्त राजा मान्धाता ने इसी जगह पर महादेव की तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान् प्रकट हुए और राजा मान्धाता से वरदान मांगने को कहा तब राजा ने कहा की आप जन कल्याण के लिए यहाँ पर स्थाई रूप से निवास करें | माना जाता है तभी से महादेव यहाँ साक्षात् रूप से माता पार्वती के साथ रात्री विश्राम करते हैं |

तीसरी कथा –

एक बार नारयण भक्त देव मुनि नारद जी घुमते घुमते पर्वतों के राजा विंध्यांचल पर्वत के पास पहुंचे तो पर्वतों के राजा ने देव मुनि का आदर सत्कार के साथ स्वागत किया और अहंकार वश वोला की मई सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पास सब कुछ है | इस पर अहंकार नाशक देवमुनी ने विंध्याचल पर्वत का अहंकार का नाश करने के लिए कहा की आप थोडा नीचे रह गए हो और मेरु पर्वत की चोटियाँ देवलोक तक पहुँच गई हैं | आप शायद वहां तक कभी भी नहीं पहुँच पायेंगे | तब विंध्याचल पर्वत को अपने ऊपर पछतावा हुआ और महादेव की तपस्या करने का मन बनाकर एक मिटटी से बनी शिवलिंग स्थापित करके तपस्या शुरू कर दी |

तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा तब गिरिराज विंध्याचल ने कहा की मेरे कार्य की सिद्धि के लिए मुझे बुद्धि प्रदान करें तब शिवजी वरदान देकर जाने लगे | उसी समय देवतागण और ऋषि मुनि वहां पहुँच जाते हैं और शिवजी से यहीं साक्षात् रूप से निवास करने की विनती करते हैं | शिवजी के तथास्तु कहते ही वहां स्थित शिवलिंग दू भागो में विभक्त हो गया एक प्रणव शिवलिंग ओमकारेश्वर और दुसरा पार्थिव शिवलिंग माम्लेश्वर के नाम से विख्यात हुआ | माना जाता है तभी से देवो के देव महादेव भगवान शंकर साक्षात् रूप से यहाँ निवास करते हैं |

 

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