मन,वाणी और कर्म से हुए जाने और अनजाने हुए पापों के शमन का अनुष्ठान
विशेष / इन्नोवेस्ट / 3 जुलाई
आमतौर पर सावन के पूर्णिमा तिथि में जब बहनें भाइयो के कलाइयों पर रक्षा सूत्र बाँधती है और एक दूसरे को आशीष और प्यार प्रदान करते है उसी दिन सुबह सबेरे विप्र समाज (ब्राम्हण) किसी जल धारा में श्रावणी पर्व मानते है। इस पर्व में ब्राम्हण समाज पवित्र सरोवर में स्नान कर पूजा करते है शास्त्रों की बात करे तो इसके पीछे का उदेश्य जाने और अनजाने हुए पापों का शमन से होता है। मुख्यतः श्रावणी उपाकर्म, वेद तथा शाखा से संबंधित ब्राह्मण करते हैं लेकिन इसे कोई भी सनातनी परंपरा में विश्वास करने वाला समाजजन कर सकता है। इसमें चारों वेद-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद तथा इनकी शाखाओं से जुड़े ब्राह्मणों का अलग-अलग तिथि व नक्षत्रों पर उपाकर्म होता है। यह अधिकतर श्रावण तथा भादौ में किया जाता है। इसका कारण यह भी है कि श्रावण में नक्षत्र का चक्र परिवर्तन तथा भादौ में तिथि विशेष का परिवर्तन होते हैं जिनसे प्रकृति के द्वारा दी गई विशिष्ट ऊर्जा प्रभावित होती है।
ये है दसविधि स्नान
पितृ-तर्पण और ऋषि-पूजन या ऋषि तर्पण से जीवन के हर संकट समाप्त करने के बाद श्रावणी उपाकर्म उत्सव में वैदिक विधि से हेमादिप्राक्त, प्रायश्चित संकल्प, सूर्याराधन, दसविधि स्नान, तर्पण, सूर्योपस्थान, यज्ञोपवीत धारण, प्राणायाम, अग्निहोत्र व ऋषि पूजन किया जाता है। पवित्र सरोवर पर सूर्योदय के साथ ब्राम्हणों का दल श्रावण उपाकर्म के लिए पहुंचते हैं। ,अनुष्ठान की शुरुआत प्राश्चित महासंकल्प से होता है जिसके बाद दस विध स्नान , सप्तऋषि की पूजा और अंत में यज्ञोपवीत का पूजन किया जाता है आज के दिन पूजे गये जनेऊ को ब्राम्हण पूरे साल बदल बदल कर पहनता है।सरोवर या गंगा की घाटों पर वैदिक मंत्रो की गूंज के बीच विद्वानों द्वारा ब्राम्हण पंच गव्य ग्रहण कर भस्म , मिटटी ,गाय का गोवर ,गोमूत्र ,दही , दूध ,घी ,हल्दी ,कुश व शहद का शरीर में बारी बारी लेपन कर गंगा में डुबकी लगाते है।
अनुष्ठान के तीन पक्ष
विद्वानो के अनुसार श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष है- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। सर्वप्रथम होता है- प्रायश्चित रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन तथा नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं। यज्ञोपवीत या जनेऊ आत्म संयम का संस्कार है। आज के दिन जिनका यज्ञोपवित संस्कार हो चुका होता है, वह पुराना यज्ञोपवित उतारकर नया धारण करते हैं । इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।
प्रायश्चित्त संकल्प इसमें हेमाद्रि स्नान संकल्प। गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गोदुग्ध, दही, घृत, गोबर और गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त कर जीवन को सकारात्मकता दिशा देते हैं। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन करने के विधान है।
संस्कार उपरोक्त कार्य के बाद नवीन यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करना अर्थात आत्म संयम का संस्कार होना माना जाता है। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।
स्वाध्याय उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है। इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घृत की आहुति से होती है। जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है। इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है।
वर्ण व्यवस्था के अनुसार महापर्व
मान्यताओ के अनुशार वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राम्हणों का श्रावणी , श्रत्रिय का विजयादशमी ,वैश्यों का दीपावली और शुद्र का होली महा त्यौहार माना जाता है।