जानिए , श्रीगणेश प्राकट्य की कथा और चंदमा को अर्घ देने की वजह ,  क्या है ” ढेला चौथ या पत्थर चौथ “

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– श्रीगणेश जी का प्राकट्य की कथा और चंदमा को अर्घ देने की वजह

ब्रह्मपुराण के अनुसार माता पार्वती जी ने अपने देह के मैल से भगवान श्रीगणेशजी का सृजन कर उन्हें द्वार पर पहरा देने के लिए बिठाकर स्नान करने चली गईं थी। तभी वहाँ भगवान शिवजी आ गए। भगवान श्रीगणेशजी ने माता की आज्ञा पर शिवजी को अन्दर प्रवेश नहीं करने दिया। इस पर भगवान शिवजी ने क्रोधित होकर श्री गणेश जी का सिर विच्छेद कर दिया। जो चन्द्रमण्डल पर जाकर टिक गया। बाद में शिवजी को वास्तविकता मालूम होने पर श्री गणेश जी को हाथी के नवजात शिशु का सिर लगा दिया। सिर विच्छेदन के पश्चात् श्रीगणेशजी का मुख चन्द्रमण्डल पर सुशोभित हो गया, जिसके फलस्वरूप चन्द्रमा को अर्घ देने की परम्परा प्रारम्भ हो गई।

क्या है ” ढेला चौथ या पत्थर चौथ “
शुक्ल पक्ष के भाद्रपद की चतुथी तिथि को ‘ढेला चौथ या ‘पत्थर चौथ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन चन्द्रदर्शन का निषेध है। इस दिन चंद्र दर्शन नहीं किया जाता है। यदि भूलवश चन्द्र दर्शन हो भी जाए तो आरोप-प्रत्यारोप व मिथ्या कलंक लगने की सम्भावना रहती है। ग्रन्थों के मुताबिक भगवान् श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि की चोरी का आरोप लगा था। चन्द्र दर्शन के दोष के शमन के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध के सत्तावनवें अध्याय में वर्णित स्यमन्तक हरण के प्रसंग का कथन व श्रवण करना चाहिए। अथवा ‘ये श्रुण्वन्ति आख्यानम् स्यमन्तक मनियकम्। चन्द्रस्य चरितं सर्वं तेषां दोषो ना जायते॥ इस मन्त्र का अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए।


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