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– सूर्य षष्ठी (लोलार्क छठ) 12 सितम्बर, रविवार को
– सूर्य षष्ठी व्रत से पुत्र की कामना के साथ ही मिलती है त्वचा रोगों से मुक्ति
– भगवान् सूर्यदेव की पूजा-अर्चना से सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि
हिन्दू धर्म में अपनी परम्परा के अनुसार पूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव से मनाने का पर्व है सूर्यषष्ठी (लोलार्क छठ)। भाद्रपद शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान् सूर्यदेव का व्रत उपवास रखकर उनकी पूजा-आराधना करते हैं। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में हरितालिका तीज, श्रीगणेश चतुर्थी एवं ऋषि पंचमी के बाद सूर्यषष्ठी (लोलार्क छठ) का पर्व मनाया जाता है। सूर्यषष्ठी पर्व पर भगवान् सूर्य की कृपा प्राप्ति के लिए भक्तजन अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार भगवान् सूर्य देव की आराधना करते हैं।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि 11 सितम्बर, शनिवार की सायं 7 बजकर 38 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 12 सितम्बर, रविवार को सायं 5 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। 12 सितम्बर, रविवार को सूर्य षष्ठी यानि लोलार्क छठ का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन भगवान सूर्य की विधि विधान से की गई पूजा शीघ्र पुण्य फलदायी होती है।
व्रत का विधान
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल अपने समस्त दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसके पश्चात पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर सूर्यषष्ठी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। साथ ही व्रत के दिन सूर्य भगवान् से सम्बन्धित सूर्यमन्त्र का जप, श्रीआदित्यहृदय स्तोत्र, श्रीआदित्यकवच, श्रीसूर्यसहस्रनाम आदि का पाठ करके पुण्यलाभ अर्जित करना चाहिए। इस व्रत से सूर्यग्रह की अनुकूलता मिलती है। नि:सन्तान को सन्तान की प्राप्ति होती है, इसके साथ ही त्वचा सम्बन्धी विकारों या रोगों से मुक्ति भी मिलती है।
लोलार्क कुण्ड स्नान
काशी में सूर्यषष्ठी को लोलार्क छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भदैनी स्थित लोलार्क कुण्ड में स्नान करके लोलार्केश्वर महादेव का विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन नि:सन्तान दम्पति सन्तान प्राप्ति के निमित्त धार्मिक नियमानुसार विधि-विधानपूर्वक संकल्प लेकर लोलार्क कुण्ड में स्नान करते हैं। अनुष्ठान के अन्तर्गत किसी एक प्रिय वस्तु का त्याग करने का संकल्प लिया जाता है। जिस वस्तु विशेष का त्याग किया जाता है, उसे लोलार्क कुण्ड में छोड़ दिया जाता है। त्याग की हुई वस्तु को मनोकामना पूर्ति के पश्चात् ही ग्रहण करते हैं या उस वस्तु का आजीवन त्याग कर देते हैं। लोलार्क कुण्ड में स्नान करने के पश्चात् धारण किए हुए वस्त्र को कुण्ड पर ही छोड़ दिया जाता है। तत्पश्चात् नवीन वस्त्र धारण करके ही भगवान् सूर्यदेव की आराधना की जाती है। आज के दिन ब्राह्मण को यथाशक्ति अन्न द्रव्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। व्रतकर्ता को जीवनचर्या में शुचिता का पूरा ध्यान रखकर भगवान सूर्यदेव के आशीर्वाद से सुख-समृद्धि व खुशहाली प्राप्त करनी चाहिए।
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