महागौरी – पाप, ताप और शोक की  निवारिणी देवी

महागौरी – पाप, ताप और शोक की निवारिणी देवी

शारदीय लनवरात्र
तिथि – अष्टमी (आठवां दिन )
दिनांक – 13 अक्टूबर , बुधवार
देवी दर्शन – महागौरी देवी , अन्नपूर्णा मन्दिर ​

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शारदीय नवरात्र में नवदुर्गा के आठवें स्वरूप में भगवती महागौरी के दर्शन-पूजन का विधान है। भगवती का सौम्य, सुंदर, मोहक रूप महागौरी में है। महागौरी की मान्यता भगवती अन्नपूर्णा को है।
नाम से स्पस्ट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है।
4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांये हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। ये अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
उपासक और विशेष रूप से वे साधक जो सात दिनों की साधना में मूलाधार से “सहस्रर चक्र” तक सफल हो गये होते हैं। उनकी कुंडलिनी जागृत हो चुकी होती है, परन्तु आठवें दिन मां महागौरी की आराधना उनकी शक्ति को और प्रबल करती है। वे पाप, ताप और दुख निवारिणी हैं। मां सर्वाधिक कल्याणकारी है। कुंवारी कन्याओं की उपासना से वे शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मनपसंद जीवनसाथी प्राप्त करने का वरदान देती हैं। विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो मां की भक्ति करें, मनोरथ शीघ्र पूर्ण होगा। विधानपूर्वक मां की साधना कर कोई भी अपना मनोरथ पूर्ण कर सकता है। इनका स्थान काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित अन्नपूर्णा मंदिर में है।

पौराणिक मान्यताएँ
पौराणिक मान्याताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए गर्मी, सर्दी और बरसात का बिना परवाह किए कठोर तप किया था जिसके कारण उनका रंग काला हो गया था। उसके बाद शिव जी उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और गंगा के पवित्र जल से स्नान कराया जिसके बाद देवी का रंग गोरा हो गया। तब से उन्हें महागौरी कहा जाने लगा।

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