जानिए, क्या ख़ास होगा तीन दिवसीय “काशी उत्सव” में

जानिए, क्या ख़ास होगा तीन दिवसीय “काशी उत्सव” में



– ‘कुमार विश्वास’ द्वारा “मैं हूँ काशी” तथा ‘मनोज तिवारी’ तथा प्रख्यात लोकगायक द्वारा “तुलसी की काशी” की होगी प्रस्तुति
– कला की धरोहर व लोकभाषा का सम्बल लिये सुश्री मैथिली ठाकुर तथा पद्मश्री भारती बन्धु की भी होगा सांस्कृतिक प्रस्तुति
– फ्री प्रवेश ‘पास’ हेतु रुद्राक्ष अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और कन्वेंशन सेंटर, सिगरा में कराए पंजीयन
– आजादी का अमृत महोत्सव पर्व के अन्तर्गत संस्कृति मन्त्रालय के तत्त्वावधान में उत्तर प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित

वाराणसी। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली द्वारा तीन दिवसीय “काशी उत्सव” 16 से 18 नवम्बर, 2021 तक सिगरा स्थित रुद्राक्ष अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और कन्वेंशन सेंटर में शाम 7:00 बजे से रात्रि 9:00 बजे तक आयोजित किया जा रहा हैं। यह उत्सव आजादी का अमृत महोत्सव पर्व के अन्तर्गत संस्कृति मन्त्रालय के तत्त्वावधान में उत्तर प्रदेश सरकार और वाराणसी प्रशासन के सहयोग से आयोजित है। जिसमें डॉ. कुमार विश्वास द्वारा “मैं हूँ काशी” तथा गायक मनोज तिवारी द्वारा “तुलसी की काशी” की प्रस्तुति की जायेगी। इस कार्यक्रम के “पास” हेतु रुद्राक्ष अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और कन्वेंशन सेंटर, सिगरा में पंजीयन करके प्राप्त किये जा सकते हैं।
“काशी उत्सव” कार्यक्रम जनसहभागिता से आयोजित किया जा रहा है। जिसमे आम जनमानस का प्रवेश पूरी तरह निःशुल्क हैं। इस उत्सव में काशी नगरी के विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक उत्कृष्ट विभूतियों के जीवन, दर्शन एवं कृतियों को परिचर्चा, प्रदर्शनी, लघु-चलचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जायेगा।

काशी दिव्य नगरी
भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी काशी नगरी इसलिये सांस्कृतिक राजधानी है क्योंकि यहीं पर विश्व नियन्ता भगवान् सदाशिव आनन्दकानन के रूप में, अविमुक्त क्षेत्र के रूप में, पूर्णरूपा प्रकाशित काशी के रूप में, तीन नदियों के त्रिकोण से ऊपर पंचगंगा क्षेत्र के रूप में और यहाँ के हर चित्त में बसे बनारस के रूप में सदा सर्वदा के लिये अपना आसन जमाये भगवान् विश्वनाथ के रूप में विराजमान हैं, तभी तो काशी में मृत्यु भी आनन्ददायिनी है और जन्म तो है ही। भगवती अन्नपूर्णा और माँ विशालाक्षी की दिव्यदृष्टि काशी को यहाँ आने वाले के सामने कुछ इस तरह से उद्घाटित करती है कि वह काशी में रम जाता है और खोजता है रमने का कारण।

काशी में ही अपने राष्ट्र के उन सपूतों का स्मरण, उनकी तपस्या के फल के रूप में प्राप्त आजादी की गौरव गाथा का यदि अमृत महोत्सव मनाना है तो उसे काशी उत्सव के रूप में ही मनाया जा सकता है। यह उत्सव काशी की उस प्राचीन विरासत की प्रस्तुति का सार्थक माध्यम तो है ही साथ ही उस विरासत में नित्य नवीन अलंकरण कैसे जुड़ते गये उसके वर्णन भी है। एक ओर काशी उत्सव में भक्ति की सभी निर्गुण एवं सगुण परम्पराओं को, सन्त रैदास, महात्मा कबीरदास जी तथा गोस्वामी तुलसीदास जी की त्रिवेणी के साथ प्रवाहित होगी वहीं साथ-साथ 19वीं सदी के महान् नायक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, कामायनी के प्रेणता जयशंकर प्रसाद एवं भारतीय जीवनशैली को जिन्होंने अपनी लेखनी से उकेरा है, ऐसे महनीय साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक गौरव गाथा का भी यह उत्सव स्मरण करायेगा।
इस उत्सव में विभिन्न परिचर्चाओं के माध्यम से इन महनीय आचार्यों के कर्तृत्व के साथ-साथ समाज की जुबानी में उनकी अलौकिक छवि का प्रस्तुतीकरण भी किया जायेगा। इसी के साथ यह उत्सव विभिन्न चलचित्रों के माध्यम से काशी की अलौकिक प्रतिभाओं को, इसके व्यापक भूगोल तथा विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जो चलते-फिरते संग्रहालय हैं ऐसे काशी के घाटों को, यहाँ की कला को, जो मूर्त और अमूर्त रूप में प्रतिष्ठित है और सबसे बड़ी बात जो इस उत्सव के चलचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जायेगा वह यह कि भगवती गंगे, कैसे इस मुक्तिधाम को समेटे हुये हैं। लोक कलाकार के रूप में प्रतिष्ठित प्राध्यापक के रूप में और जो तात्कालिक स्पन्दित बुद्धि के प्रयोक्ता के रूप जाने जाते हैं, ऐसे महनीय प्राध्यापक डॉ. कुमार विश्वास इस उत्सव में ‘मैं हूँ काशी की प्रस्तुति द्वारा काशी को हम सबके सामने कविवाणी से दृश्यमान् करने का अद्भुत प्रयास करेंगे। इस उत्सव का महत्त्वपूर्ण पक्ष है कला का वह पक्ष जहाँ से कलायें करवटें बदलती हुयी अपनी त्यौरी चढ़ाये हुये, सबकुछ सहेज लेती हैं, पुनः उसे सर्वस्व प्रकट करते हुये आनन्द की वह अनुभूति प्रदान करती हैं जिस प्रकार कोई योगी आत्मानन्द के रूप में अनुभव करता है। कला की धरोहर का यह पक्ष लोकभाषा का सम्बल लिये हुये सुश्री मैथिली ठाकुर तथा पद्मश्री भारती बन्धु जैसे महनीय कलाकारों के पुण्डरीक आकाश में विराजमान रहता है।


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