– 22 अगस्त, शनिवार को
– श्रीगणेश जी के दर्शन-पूजन से मिलती है सुख-समृद्धि, खुशहाली
– चन्द्रदर्शन का होता है निषेध
भगवान् श्रीगणेशजी के जन्मोत्सव का महापर्व उमंग व उल्लास के साथ मनाने की धार्मिक मान्यता है। भारतीय संस्कृति में हिन्दू पौराणिक मान्यता के मुताबिक सर्वविघ्नविनाशक अनन्तगुण विभूषित बुद्धिप्रदायक सुखदाता मंगलमूॢत प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अनन्त है। गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि के दिन श्रीगणेश जी का प्राकट्य हुआ था। मध्याह्न के समय रहने वाली चतुर्थी तिथि के दिन जन्मोत्सव मनाया जाता है। शुक्लपक्ष के भाद्रपद की चतुथी तिथि को ” ढेला चौथ या ‘पत्थर चौथ ” के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन चन्द्रदर्शन का निषेध है। इस दिन चन्द्रदर्शन नहीं किया जाता है। यदि भूलवश चन्द्रदर्शन हो भी जाए तो आरोप-प्रत्यारोप व मिथ्या कलंक लगने की सम्भावना रहती है। ग्रन्थों के मुताबिक भगवान् श्रीकृष्ण पर स्यमन्तकमणि की चोरी का आरोप लगा था।
चन्द्रदर्शन के दोष के शमन के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध के सत्तावनवें अध्याय में वर्णित स्यमन्तकहरण के प्रसंग का कथन व श्रवण करना चाहिए। अथवा ‘ये श्रुण्वन्ति आख्यानम् स्यमन्तक मनियकम्। चन्द्रस्य चरितं सर्वं तेषां दोषो ना जायते॥ इस मन्त्र का अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी एवं सिद्ध वैनायक श्रीगणेश चतुर्थी के नाम जानी जाती है।
इस बार भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि 22 अगस्त, शनिवार को पड़ रही है। चतुर्थी तिथि 21 अगस्त, शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 03 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 22 अगस्त, शनिवार को रात्रि 7 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी तिथि का मान 22 अगस्त, शनिवार को होने से व्रत उपवास इसी दिन रखा जाएगा। श्रीगणेशजी का व्रत उपवास रखकर दर्शन-पूजन करके लाभान्वित होंगे।
पूजा का विधान— व्रतकर्ता को स्नान-दान-ध्यान आदि करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, जिनसे श्रीगणेश जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। श्रीगणेशजी का नयनाभिराम मनमोहक व अलौकिक शृंगार करके उन्हें दूर्वा एवं दूर्वा की माला, मोदक (लड्डू), अन्य मिष्ठान्न ऋतुफल आदि अॢपत करने चाहिए। विशेष तौर पर शुद्ध देशी घी एवं मेवे से बने मोदक अवश्य अर्पित किए जाने चाहिए। श्रीगणेश जी की महिमा में उनकी विशेष अनुकम्पा प्राप्ति के लिए श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश चालीसा, श्रीगणेश सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेश जी से सम्बन्धित विभिन्न मन्त्रों का जप करना लाभकारी रहता है। गणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से लाभकारी है। वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है।
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