धर्म नगरी / इन्नोवेस्ट डेस्क / 29 अगस्त
प्रदोष व्रत
30 अगस्त, रविवार सुबह 8 बजकर 22 मिनट से सोमवार को सुबह 8 बजकर 49 मिनट तक
करें शिव आराधना होंगे सारे कष्टों से छुटकारा
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान् शिवजी को ही 33 कोटि (प्रकार ) देवी-देवताओं में देवाधिदेव महादेव की उपमा प्राप्त है। भगवान शिवजी महिमा अपरम्पार है। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख मिलता है, जिसमें प्रदोष एवं शिवरात्रि व्रत प्रमुख रूप से हैं। प्रदोष व्रत से दु:ख-दारिद्र्य का नाश होता है। जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आती है, साथ ही जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है। प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि जो प्रदोष बेला में मिलती हो, उसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की मान्यता है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है। प्रदोष व्रत के उपास्य देव भगवान् शिवजी हैं। कलियुग में हर आस्थावान व धर्मावलम्बी अपने संकटों का निवारण व मनोरथ की पूरा करने के लिए प्रदोष व्रत रखते हैं। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार 30 अगस्त, रविवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 30 अगस्त, रविवार को प्रात:काल 8 बजकर 22 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 31 अगस्त, सोमवार को प्रात:काल 8 बजकर 49 मिनट तक रहेगी। प्रदोष बेला में 30 अगस्त, रविवार को त्रयोदशी तिथि मिल रही है, जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोष बेला कहते हैं। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए।
वार के अनुसार प्रदोष व्रत का फल —
ज्योतिषविद् के अनुसार प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत बतलाए गए हैं, जैसे—रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूॢत, गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूॢत, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति।
प्रदोष व्रत का विधान —
व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान, ध्यान करके अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुन: स्नान कर स्वच्छ व धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि जो भी सुलभ हो, अर्पित करके शृंगार करना चाहिए। तत्पश्चात् धूप-दीप प्रज्वलित करके आरती करनी चाहिए। परम्परा के अनुसार भगवान शिवजी के साथ ही जगतजननी पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना की जाती है। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करने की मान्यता है। शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है। भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वॢणत प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए साथ ही व्रत से सम्बन्धित कथाएँ सुननी चाहिए। महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से प्रदोष व्रत फलदायी बतलाया गया है। व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए। अपनी जीवनचर्या में शुचिता बरतते हुए व्रत को विधि-विधानपूर्वक करना शीघ्र फलदायी रहता है। अपनी सामथ्र्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता अवश्य करनी चाहिए, जिससे जीवन में भगवान शिवजी की कृपा हमेशा बनी रहे।
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