
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत
आश्विन कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि
5 सितम्बर, शनिवार 4 बजकर 39 मिनट से 6 सितम्बर, रविवार को सायं 7 बजकर 07 मिनट तक
चन्द्रोदय रात्रि 08 बजकर 15 मिनट
भारतीय संस्कृति में समस्त देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना एवं व्रत की काफी महिमा है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में पंचदेवों में प्रथम पूज्य देव भगवान श्रीगणेशजी को सर्वोपरि माना जाता है। हर शुभ आयोजन एवं धाॢमक व मांगलिक कार्यों के प्रारम्भ में श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। जीवन में खुशहाली एवं संकट निवारण के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार यह व्रत 5 सितम्बर, शनिवार को रखा जाएगा। शुद्ध आश्विन कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि 5 सितम्बर, शनिवार को दिन में 4 बजकर 39 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 6 सितम्बर, रविवार को सायं 7 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय रात्रि 08 बजकर 15 मिनट पर होगा। चन्द्र उदय होने के पश्चात् विधि-विधान पूर्वक चन्द्रमा को अघ्र्य देकर उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी।
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कैसे करें पूजा—
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होना चाहिए। तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुन: स्नान करके श्रीगणेश जी की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, अतएव दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अॢपत करने चाहिए।
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किस पाठ से होगी मनोकामना की पूर्ति –
श्रीगणेशजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश चालीसा एवं संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए तथा श्रीगणेश जी से सम्बन्धित विविध मंत्रों का जप भी करना चाहिए। जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार केतु ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल न मिल रहा हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। जिन्हें अपने जीवन में संकटों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन श्रीगणेश जी का दर्शन-पूजन करके व्रत रखना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्याॢथयों के लिए समानरूप से फलदायी है। श्रद्धा, आस्था, भक्तिभाव से की गई आराधना से जीवन में खुशहाली मिलती है, साथ ही समस्त संकटों का निवारण भी होता है।
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श्राद्धकृत्य में विशेष—
जो व्यक्ति आज श्राद्धकृत्य करेंगे, उन्हें चाहिए कि पितृपक्ष में श्राद्धकृत्य करने के पश्चात् अपने हिस्से के भोज्य पदार्थ जो कि श्राद्ध के निमित्त बने हो, उन्हें सूँघकर गो माता को खिला देना चाहिए। श्राद्धपक्ष में अपने पारिवारिक रीति-रिवाज व परम्परा एवं मान्यता का पालन करते हुए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत उपवास रखना चाहिए। संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से सर्व संकटों का निवारण होता है साथ ही सुख-समृद्धि में अभिवृद्धि होती है।