
शहनाई के धुन से निकला ” वंदे मातरम ” किया राष्ट्र का नमन
@banaras / innovest desk / 7 sep
” वंदे मातरम ” ये वो लाइनें हैं जिसे सुन कर आज़ादी के दीवानों की नसों में जोश का काम किया करता था और आज भी इसे सुनकर सभी में देश भक्ति की भावना जागृत हो जाती है …! बंकिम चन्द्र चटोपाध्याय द्वारा लिखी लाइनों ये लाइनें 7 सितम्बर 1905 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्र गीत घोषित किया गया था। ऐसी ऐतिहासिक दिन की याद में भारत के स्वतंत्रता स्वाधीनता एवं जन जन में राष्ट्र भावना को प्रवल बनाने के उदेश्य थे बनारस स्थित भारत माता मंदिर पर शहनाई वादक महेंद्र प्रसना ने राष्ट्रगान की धुन प्रस्तुत करने के बाद और देश भक्ति गीतों की प्रस्तुति किया। इस अवसर पर भारत माता मंदिर को फूलों से आकर्षक ठंग से सजाया गया था।
लगातार 18 वर्षो से देश की सेवा
वाराणसी के सिगरा स्थित भारत माता मंदिर प्रांगण में आज देश की राष्ट्र गीत के वर्षगांठ पर शहनाई के धुन पर शहनाई वादको ने अपनी धुन बजाकर राष्ट्र भावना का संचार किया। पहली बार संसद में राष्ट्र गीत वन्दे मातरम गुंजा था , इस दिन को यादगार बनाते हुए प्रति वर्ष भारत माता मंदिर में शहनाई की धुन पर महेंद्र गीत को गाकर नमन करते हैं ….भारत एकलौता भारत माता मंदिर में आज का दिन हर दिन से अलगरहता है , आम तौर पर शहनाई की धुन मंगलअवसरों के गीतों के लिए होते है लेकिन आज के दिन देश की आन शान और बान के लिए बजा ये वाद्य यन्त्र राष्ट्र भावना का संचार कर जाता है।
जानिए वन्दे मातरम् को –
– 7 नवम्वर 1876 बंगाल के कांतल पाडा गांव में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने ‘वंदे मातरम’ की रचना की। – 1882 वंदे मातरम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंद मठ’ में सम्मिलित। – मूलरूप से ‘वंदे मातरम’ के प्रारंभिक दो पद संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत बांग्ला भाषा में है। – वंदे मातरम् का अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले अरविंद घोष ने किया। – दिसम्बर 1905 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया, बंग भंग आंदोलन में ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय नारा बना। – 1906 में ‘वंदे मातरम’ देव नागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया, कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया। – 1923 में कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे। – पं॰ नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम अजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति ने 28 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में इस राष्ट्रगीत के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा था कि इस गीत के शुरुआती दो पैरे ही प्रासंगिक है, इस समिति का मार्गदर्शन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किया। – 14 अगस्त 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ ‘वंदे मातरम’ के साथ और समापन ‘जन गण मन..’ के साथ..। – 1950 ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत और ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान बना। – वर्ष 2002 बी.बी.सी. के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है।
इनकी थी उपस्थिति
कलाकार महेंद्र प्रसन्ना संग संगम ,कृष्णा ,सत्यनारायण ,गुलाब चंद्र और मो कलीम के उत्साहवर्धन के लिए डॉ अजय पांडेय, वृजेश चंद पाठक,डॉ अनिल सिंह,अजय विशाल,आनंद शर्मा,रवि सिंह सोमवती ,शिव नारायण सिंह और बबलू सिंह मुक्तेश्वर आदि मौजूद रहे।