
महिलाएं श्राद्ध कर सकती है ….
धर्म नगरी / इन्नोवेस्ट / 11 sep
पितृ पक्ष ,16 दिनों की वह अवधि है जिसमें हिन्दू धर्म के लोग अपने पितरों या पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। पितरों को प्रसन्न करने के लिए पिण्डदान करते हैं एवं जल तर्पण करते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की सद्गति के लिए कुछ खास परिस्थितियों में महिलाओं को भी विधिपूर्वक श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त है। गरूड़ पुराण में बताया गया है कि पति, पिता या कुल में कोई पुरुष सदस्य नहीं होने या उसके होने पर भी यदि वह श्राद्ध कर्म कर पाने की स्थिति में नहीं हो तो महिला श्राद्ध कर सकती है।
कर सकती है महिलाएं श्राद्ध –
पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया जारी है ,चूकिं पुरुष प्रधान समाज है लिहाजा अक्सर लोगों में भ्रम ये पैदा होता है कि परिवार में पुरुषों के न होने पर महिलाएं भी श्राद्धकर्म कर सकती हैं या नहीं । इस बारे में तमाम हिन्दू शास्त्रों में स्पस्ट उलेख्य है कि महिलाएं भी अपने परिजनों को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण कर्म करा सकती है। सनातन मान्यताओं के अनुसार इनका वर्णन धर्म सिंधु ग्रंथ के साथ ही मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में है जहाँ महिलाओं को तर्पण और पिंड दान करने का अधिकार का वर्णन है। यही नहीं वाल्मिकी रामायणके एक प्रसंग में माता सीता द्वारा राजा दशरथ के लिए पिंडदान का वर्णन हैं । श्राद्ध करने की परंपरा जीवित परिवार द्वारा अपने पितरों को न भूलें, इसलिए इस प्रकार की व्यवस्था बनाई गई है। मार्कंडेय पुराण में यहाँ तक उलेख्य है कि अगर किसी का पुत्र न हो तो पत्नी भी बिना मंत्रों के ( बिना किसी सहयोग के ) श्राद्ध कर्म कर सकती है। यही नहीं पत्नी के न होने पर कुल के किसी भी व्यक्ति द्वारा मृतकों का श्राद्ध करने का विधान है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होता हैं ।
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गरुड़ पुराण के अनुसार
गरुड़ पुराण में श्लोक संख्या 11, 12, 13 और 14 में इस बात का जिक्र किया गया है कि कौन-कौन श्राद्ध कर सकता है।
‘पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदन:। शिष्यों वा ब्राह्म्ण: सपिण्डो वा समाचरेत।। ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृ: पुत्रश्च: पौत्रके। श्राध्यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग:।।
इस श्लोक के मुताबिक ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एक मात्र पुत्री भी शामिल है। यदि पत्नी जीवित न हो तो सगा भाई या भतीजा, भांजा, नाती, पोता भी श्राद्ध कर सकते हैं। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई रिश्तेदार या फिर कुलपुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। यानी कि परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य पितरों का श्राद्ध तर्पण कर सकती है।
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क्या है इसकी कथा –
जब माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ के लिए पिंड दान किया था। रामायण में जब वनवास के दौरान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष की अवधि में पिंड दान करने गया पहुंचे। तब श्री राम, श्राद्ध के लिए कोई विशेष सामग्री ढूंढने निकल गए। उसी समय श्राद्ध का मुहूर्त निकलने लगा और श्री राम नहीं पहुंचे। इस बात से चिंतित होकर कि कहीं मुहूर्त न निकल जाए और उनके पूर्वजों को मुक्ति न मिले, माता सीता पिंड दान करने का विचार करने लगीं। उसी दौरान माता सीता को राजा दशरथ के दर्शन हुए, जो उनसे पिंड दान की कामना कर रहे थे, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि समय से पिंड दान न होने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती है। इसके बाद माता सीता ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फल्गु नदी के किनारे श्री दशरथ जी का पिंडदान कर दिया। इससे राजा दशरथ की आत्मा प्रसन्न हुई और सीताजी को आशीर्वाद दिया। तभी से ये मान्यता है कि पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्र वधू पितरों के लिए पिंड दान कर सकती है,जिससे उन्हें सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होती है।
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