जहाँ कहा जाता है  पिता को वसु, दादा को रुद्र देवता तथा परदादा को आदित्य देवता

जहाँ कहा जाता है पिता को वसु, दादा को रुद्र देवता तथा परदादा को आदित्य देवता

खास बातें – पितृ पक्ष का अमावस्या तिथि की 

सर्वपितृविसर्जन  ( सर्वपैत्री अमावस्या  ) गुरुवार, 17 सितम्बर को
सर्वपितरों के विसर्जन से मिलेगी पितृऋण से मुक्ति
सर्वपितरों की प्रसन्नता से होगी सुख-समृद्धि, सौभाग्य में अभिवृद्धि 

पूर्वजों की आत्मशान्ति के लिए आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तिथि तक श्रद्धा के साथ विधि-विधानपूर्वक श्राद्ध करने की परम्परा है। आश्विन मास की अमावस्या तिथि के दिन सर्वपितृविसर्जन करने का विधान है। इस दिन किए गए श्राद्ध से पितृगण प्रसन्न होकर जीवन में सुख-सौभाग्य व खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं। सनातन धर्म में हिन्दू मान्यता के अनुसार प्रत्येक शुभ व मांगलिक आयोजन पर भी पितरों को निमंत्रित कर पूजा करने की धार्मिक मान्यता है।  विमल जैन के अनुसार गुरुवार, 17 सितम्बर को सर्वपितृविसर्जनी अमावस्या है। आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि बुधवार, 16 सितम्बर को रात्रि 7 बजकर 57 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन गुरुवार, 17 सितम्बर को सायं 4 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। महालया की समाप्ति गुरुवार, 17 सितम्बर को हो जाएगी। आज अमावस्या के दिन अज्ञात तिथि (जिन परिजनों की मृत्यु तिथि मालूम न हो या जिन्होंने किसी कारणवश अपने पितरों का श्राद्ध न कर पाए हों) वालों का श्राद्ध आज गुरुवार, 17 सितम्बर को विधि-विधानपूर्वक किया जाएगा। पितृपक्ष में किसी कारणवश माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य परिजनों का श्राद्ध न कर पाए हों, उन्हें आज के दिन अमावस्या तिथि पर श्राद्ध करके पितृऋण से मुक्ति पानी चाहिए। आज अमावस्या तिथि के दिन श्राद्ध करने से अपने कुल व परिवार के सभी पितरों का श्राद्ध मान लिया जाता है।

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त्रिपिण्डी में तीन पूर्वज –
आज के दिन त्रिपिण्डी श्राद्ध करने का भी विशेष महत्व है। त्रिपिण्डी में तीन पूर्वज—पिता, दादा एवं परदादा को तीन देवताओं का स्वरूप माना गया है। पिता को वसु, दादा को रुद्र देवता तथा परदादा को आदित्य देवता के रूप में माना जाता है। श्राद्ध के समय यही तीन स्वरूप अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने गए हैं। अमावस्या तिथि पर ब्राह्मण को निमन्त्रित करके उन्हें भोजन करवाने की धाॢमक मान्यता है। ब्राह्मण को भोजन करवाने के पूर्व देवता, गाय, कुत्ता, कौआ व चींटी के लिए श्राद्ध के बने भोजन को पत्ते पर निकाल देना चाहिए, जिसे पंचबलि कर्म कहते हैं। पंचबलि कर्म में कौए के लिए निकाला गया भोजन कौओं को, कुत्तों के लिए निकाला गया भोजन कुत्तों को तथा शेष निकाला गया भोजन गाय को खिलाना चाहिए। तत्पश्चात् निमंत्रित ब्राह्मण को भोजन करवाने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध अपने ही घर पर अथवा नदी या गंगा तट पर करना चाहिए, दूसरों के घर पर किया गया श्राद्ध फलदायी नहीं होता।

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ऐसे करें श्राद्धकृत्य—
श्राद्धकृत्य में 1, 3, 5 या 16 योग्य ब्राह्मणों को निमंत्रित करके उन्हें भोजन करवाने का विधान है। जिसमें दूध व चावल से बने खीर अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त दिवंगत परिजनों, जिनका हम श्राद्ध करते हैं, उनके पसन्द का सात्विक भोजन ब्राह्मïïण को करवाना चाहिए। श्राद्धकृत्य में लोहे का बर्तन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। साथ ही भोजन की वस्तुओं में अरहर, उड़द, मसूर, कद्दू (गोल लौकी), बैंगन, गाजर, शलजम, ङ्क्षसघाड़ा, जामुन, अलसी, चना, काला नमक, हींग आदि का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। लहसुन, प्याज रहित शुद्ध, सात्विक एवं शाकाहारी भोजन बनाया जाता है। भोजन में मिष्ठान्न का होना अति आवश्यक है। ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात् उन्हें यथासामथ्र्य अन्न, व , नवीन पात्र, गुड़, नमक, देशी घी, सोना, चाँदी, तिल व नकद द्रव्य आदि दक्षिणा के साथ देकर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। जो किसी कारणवश श्राद्ध न करा पाएं, तो ब्राह्मïïण को भोजन के प्रयोग में आने वाली समस्त सामग्री जैसे आटा, दाल, चावल, शुद्ध देशी घी, चीनी, गुड़, नमक, हरी सब्जी, फल, मिष्ठान आदि अन्य उपयोगी वस्तुओं के साथ वस्त्र  व नकद द्रव्य देकर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए, जिससे पितरों को सन्तुष्टिï मिलती है। जो भी व्यक्ति पितरों के नाम से ब्राह्मïण भोजन करवाते हैं, पितर उन्हें सूक्ष्मरूप से ग्रहण कर लेते हैं।

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सायंकाल मुख्य द्वार पर भोज्य सामग्री रखकर दीपक जलाया जाता है, जिससे पितृगण तृप्त व प्रसन्न रहें और उन्हें जाते समय प्रकाश मिले। श्राद्ध अपने द्वारा उपाॢजत धन से किया जाना फलदायी होता है। जो व्यक्ति विधि-विधानपूर्वक श्राद्ध करने में असमर्थ हों, उन्हें चाहिए कि प्रात:काल स्नानादि के पश्चात् काले तिलयुक्त जल से दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तिलांजलि देकर अपने पितरों को याद करके उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करनी चाहिए तथा अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर सूर्यादि दिक्पालों से यह कहकर कि मेरे पास धन, शक्ति एवं अन्य वस्तुओं का अभाव है, जिसके फलस्वरूप मैं श्राद्धकृत्य नहीं कर पा रहा हूँ। हाथ जोड़कर श्रद्धा के साथ पितृगणों को प्रणाम करना भी पितरों को सन्तुष्ट करना माना गया है।

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