बनारस का है ये हाल खुलेआम चल रहा बेटियों का कत्लगाह – अंतरराष्ट्रीय बालिक दिवस विशेष

बनारस का है ये हाल खुलेआम चल रहा बेटियों का कत्लगाह – अंतरराष्ट्रीय बालिक दिवस विशेष

 

अंतरराष्ट्रीय बालिक दिवस
कैसे बढ़ेगी बेटियों की संख्या जब खुलेआम चल रहा बेटी क़त्ल का व्यापार
दिवस विशेष  / इन्नोवेस्ट डेस्क  / 11 OCT

 

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में महिला लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों के मुकाबले 940 है।जबकि पांच साल से कम उम्र के बेटियों की संख्या और भी कम। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कन्या भ्रूण हत्या के मामलों को समाज के लिए बेहद शर्मनाक बताया है।बीते साल 2014 में  अंतरराष्ट्रीय बालिक दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने लिंग के आधार पर होने वाला भेदभाव समाप्त करने के लिए संकल्पबद्ध होने और लड़कियों के लिए समानता का माहौल निर्मित करने का आह्वान किया था। देश के कुछ राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या विकराल समस्या बन चुकी है, इन राज्यों में जनसंख्या में लड़कियों का अनुपात काफी कम हो गया है।लेकिन इसका असर नारों में ही सिमट कर रह गया।

 

प्रधानमंत्री के बनारस में बेटी को जन्म लेने का अधिकार नहीं  ….
भारत के प्रधानमंत्री ने  2014 में ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ का नारा देकर देश को बेटियों के जन्म और सम्मान की उल्लेखनीय योजना को परवान चढ़ाने का प्रयास किया लेकिन परिमाण आशा के अनुरूप नहीं रहा। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार भी अन्य महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की । भारत में भी 24 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है लेकिन ये रस्म अदायगी सरीखा ही हैं। मोदी सरकार की इस घोषणा के साथ ढेरों संस्थाये ” बेटी बेटी का खेल ”  शुरू किया लेकिन लगभग सभी आज कागजों पर ही है। हाँ एक दो संस्थाओं को छोड़ शहर की सभी संस्थाएं अब इस मुद्दे पर मूर्छित से हैं। सरकार के योजनाओं को स्थानीय प्रशासन भी कम पलीता नहीं लगाया है। PCPNDT कमेटी  डाक्टरों से धनउगाही में व्यस्त है तो अल्ट्रासॉउन्ड सेण्टर 5000 रुपये या फिर अधिक रुपये में पेट में पल रही बेटी का पहचान बताने में  और कुछ हॉस्पिटल ,जिसे CMO ऑफिस ने एबॉर्शन करने का खुला लाइसेंस रूपी छूट मिला है ,नियमों की माँ बहन करते हुए बेटियों की संख्या कम करने जुटे है । प्रशासन को फुर्सत नहीं की चर्चित सेंटरों पर छापा की कार्यवाही करें और बेटियों को जीवन दान दिलाये।

आज है अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 19 दिसंबर 2011 को एक प्रस्ताव पारित कर विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का निर्णय दिया था  जिसके बाद समूचे विश्व में  11 अक्टूबर 2012 को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया।। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की प्रेरणा कनाडियाई संस्था प्लान इंटरनेशनल के ‘बिकॉज आई एम गर्ल’ अभियान से मिली। इस अभियान के तहत वैश्विक स्तर पर लड़कियों के पोषण के लिए जागरूकता फैलाई जाती थी।  हर जगह अपना योगदान करने वाली और चुनौतियों का सामना कर रही लड़कियों के अधिकारों के प्रति लिए जागरूकता फैलाने, उनके सहयोग के लिए दुनिया को जागरूक करने के लिए इस दिवस का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का मकसद है बालिकाओं के मुद्दे पर विचार करके इनकी भलाई की ओर सक्रिय कदम बढ़ाना। गरीबी, संघर्ष, शोषण और भेदभाव का शिकार होती लड़कियों की शिक्षा और उनके सपनों को पूरा करने के लिए कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है।

आज भी लड़कियों पर जारी हैं अत्याचार
वर्षो बीत जाने के बाद अब भी बालिकाएं, बेटियां हमसे अपने हक के लिए लड़ रही हैं। चांद तक पहुंच चुकी दुनिया में, बालिकाओं की खिलखिलाहट आज भी उपेक्षित है। अपनी खिलखिलाहट से सभी को खुशी देने वाली लड़कियां आज भी खुद अपनी ही खुशी से महरूम हैं। आज भी वह उपेक्षा और अभावों का सामना कर रही हैं। गरीबी और रूढ़ियों के चलते लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता। लाख प्रतिभाशाली होने के बावजूद वह प्राथमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाती। कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती है या शादी करने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है।  संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में बहुत-सी लड़कियां गरीबी के बोझ तले जी रही हैं लड़कियों को शिक्षा मुहैया नहीं हो पाती। दुनिया में हर तीन में से एक लड़की शिक्षा से वंचित है। लड़कियां आज लड़कों से एक कदम आगे हैं, लेकिन आज भी वह भेदभाव की शिकार हैं।

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