कूड़ा से खाना ढूंढता इंसान , भूख की इम्तिहान

कूड़ा से खाना ढूंढता इंसान , भूख की इम्तिहान

 

 

विश्व खाद्य दिवस विशेष
कूड़े के डिब्बे में ” जिंदगी ” की तलाश
दिवस विशेष / इन्नोवेस्ट डेस्क / 14 OCT

– अजय तिवारी

मान्यताएं यह है कि शिव की नगरी काशी में कोई भूखा नहीं सोता और ये सच भी है लेकिन आप इस सच को कैसे पचा सकते है कि जब कोई भूखा व्यक्ति शहर के गंदगी को समेटने वाला कूड़ादान से अपने पेट में लगे आग को शांत करने के लिए निवाला ठुंठे , अजीब और सभी हद को चीर देने वाला तस्वीर दिल को तार तार करने के साथ ही दिमाग के नसों के चाल को भी हलकान कर जाती हैं।

” कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए.
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए ”

दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियाँ तीनों लोकों से न्यारी काशी पर चरितार्थ हो रही हैं। भूख की जठराग्नि से जलता युवक इक्कीसवीं सदी के सच के स्याह को फलक पर ला दिया। रात्रि को नौ बजे भूख से तड़पता युवक भेलूपुर से कमच्छा के बीच रखे तीन डस्टबीन को खंगाल दिया । तीनों डस्टबीन से कूड़े में लिपटी सड़ांध को निहारता जा रहा था। कुत्तों के बीच रोटी की जंग लड़ रहा था। व्यक्ति की लाचारगी पर कुत्ते दुरी बनाकर भूख का तमाशा देख रहे थे। युवक को तीनों डस्टबीन में कूड़ा ही चाटने को मिला जो मानवता को शर्मशार करने वाला था।

कहाँ है सबका विकास का वादा
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में जब भूख से बेहाल व्यक्ति डस्टबीन खंगाल रहा है तो शेष का अनुमान लगाया जा सकता है। भूख से तड़पना यह सभ्य समाज की निशानी नहीं है, बल्कि इसे इस रूप में देखा जाना चाहिए कि एक वर्ग ब्रेड पर जी रहा है जिसे दूसरे की रोटी का एहसास भी नहीं है। समाज के दोनों वर्गों में इतनी अधिक दुरी हो चुकी है कि मानवीय संवेदना भी शिथिल हो चुकी है।

भूखे की आंसू पोछ पाएंगी योजनाएं ?
कोरोना महामारी के दौरान गरीब. दलित के तमाम योजनाएं संचालित हैं। राशन. खाद्यान्न वितरित किया जा रहा है। फिर भी सड़क पर डस्टबीन खगालने की मज़बूरी दिखे तो योजनाओं पर सवाल जायज है।

 

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पहुंच से दूर हो चुकी हैं स्वयंसेवी संस्थाएं
” चना चबैना गंग जल जो पुरवै करतार.. काशी कबहुँ न छाड़िये विश्वनाथ दरबार।” बाबा भोले नाथ की नगरी में माना जाता है कि यहाँ कोई भूखा नहीं सोता। काशी में मारवाड़ी सेवा संघ. विश्वनाथ मंदिर का अन्नक्षेत्र. गुरुद्वारा का लंगर. रोटी बैंक का सचल भोजन सहित दस से अधिक ऐसी जगहें हैं जहाँ भूखों को भोजन मिलता है। ऐसे में काशी में जब कोई भूख की तड़प सड़कों पर दिखती है तो सारा सामाजिक सरोकार अधूरा नजर आता है।

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