आजादी के 73 साल के बाद भी मौजूद है गरीबी का दाग अलबत्ता गरीबों की आयी सामत
दिवस विशेष /इन्नोवेस्ट डेस्क / 17 oct
1971 के चुनाव में इंदिरा गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था l
राजीव गाँधी ने पांचवी पंचवर्षीय योजना में गरीबी हटाओ को आगे बढ़ाया l
गरीब और गरीबी l एक व्यक्ति की आर्थिक स्थितियों के अनुसार जीवन स्तर है तो दूसरा व्यक्ति का विशेषण हैl भारतीय समाज गरीबी के अभिषप्त विशेषण के साथ जीने के लिए बाध्य है l भारतीय आजादी के समय देश में 30 करोड़ आबादी में से 40 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे थेl 73 सालों के बाद भी यह आकड़ा नीचे नहीं आयाl गरीबों के जीवन स्तर को देखते हुए वैश्विक और भारत दोनों स्तर पर प्रयास हुआ लेकिन गरीबों के साथ ईमानदारी से प्रयास नहीं होने के कारण गरीब और गरीबी दोनों बढ़ती रही l और गरीबी उन्मूलन मात्र योजना बन कर रह गया l
हटानी थी गरीबी लेकिन हटाए गरीब
योजनाओं के लागू करने और उद्देश्यों तक नहीं पहुंचने पर गरीबों के साथ हमेशा छल हुआl गरीबों के जीवन स्तर में सुधार किये बिना आंकड़ों में सुधार कर लिया गया l गरीबों के जीवन स्तर में सुधार का तात्पर्य उसकी आय से हैl व्यक्ति को जब रोजगार मिलेगा तो आय बढ़ेगीl आय से जीवन स्तर में सुधार आएगाl शिक्षा. स्वास्थ्य का मानक समाज में कायम होगा l गरीबी मिटती जाएगी l वैश्विक और भारतीय स्तर पर गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रम ठीक से लागू नहीं हुएl गरीबी के नियतांक मानक को नीचे कर गरीबों की संख्या को कम दिखाने का प्रयास किया गयाl गरीब तो बढ़ते रहे लेकिन सरकारी आंकड़े हमेशा चमकते रहे l
आखिर किसे माना जाय गरीब
रोटी. कपड़ा और मकान आजादी के दौरान बुनियादी जरुरत थी लेकिन वर्तमान समाज शिक्षा. स्वास्थ्य के साथ आर्थिक सुरक्षा भी चाहता हैl शिक्षा. स्वास्थ्य से वंचित समाज आर्थिक असुरक्षा में जीवन जीने को बाध्य हैl कांग्रेस सरकार के दौरान 32रूपये नियमित आय वाले को गरीब मानने से इनकार कर दिया थाl काफ़ी विरोध भी हुआ थाl कहने का तात्पर्य है गरीबी की परिभाषा बदल कर गरीबी रेखा से बाहर कर देना हैl
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
ज्ञात होगा कि इंदिरा गाँधी द्वारा गरीबी हटाओ नारा दिया गया थाl गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाया गया l इस कार्यक्रम की विफलता का असर यह रहा की गरीबी उन्मूलन के साथ गरीबों की संख्या बढ़ती रहीl गरीबी उन्मूलन की योजनाएं गरीबों का उद्धार नहीं कर सकीं l
क्या है गरीबी की वजह
व्यक्ति की आर्थिक. सामाजिक स्थितियों के लिए शिक्षा जिम्मेदार हैl देश में दी जा रही शिक्षा का दायित्व है कि योग्यता के अनुसार अवसर. रोजगार देl अवसर और रोजगार देने में असफल शिक्षा गरीबी नहीं हटा सकती हैl गरीब के पास अवसर नहीं होते हैंl शिक्षा पाने के रास्ते में धर्म. जाति भी आड़े आते हैं l रोजगार देने के नाम पर सरकारें अवसरों को कम करती जा रही हैंl उचित सहायता नहीं मिलने की स्थिति में स्व रोजगार में लगा व्यक्ति असफल हो जाता है l
गरीबों के नाम पर राजनीति बनाम मज़ाक
सत्ता में आने के लिए और आने के बाद प्रत्येक राजनीतिक दल गरीबों के नाम पर वोट मांगता हैl वोट लेने के बाद गरीबों की गरीबी से मज़ाक शुरू कर देता हैl इसका सबसे ताज़ा उदाहरण कोरोना के दौरान मजदूरों के साथ हुई अमानवीयता हैl गरीब मेहनतकश मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल चलने के लिए बाध्य हो गये l रोजगार छिन जाने के बाद भी सरकारें उनका आंसू नहीं पोंछ पाईl प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद भी छोटे बड़े संस्थानों ने वेतन में भी कटौती किया और बाहर का रास्ता भी दिखा दियाl मजदूरों. गरीबों के हक़ की सुरक्षा तो नहीं हो सकी बल्कि श्रम क़ानून में परिवर्तन कर कंपनी मालिकों को और आजादी दे दी गईl
साथियो गरीबों. मजदूरों के साथ यदि न्याय करना है तो उनके हाथों को रोजगार और भूखे पेट को रोटी देना होगाl गरीबी उन्मूलन के लिए व्यक्ति को योग्यता और रोजगार से जोड़ना होगाl आय की बढ़ोतरी के साथ ही गरीबी का आंकड़ा नीचे आने लगेगा l
अजय तिवारी – लेखक कई सम्मानित पत्र पत्रिकाओं में अपनी सेवा दे चुके है।
जुड़ीं हुई जानकारियाँ –
इस बार देवी का वाहन घोड़ा होने से देश में हो सकती है राजनीतिक उथल-पुथल
60 दिनों का हिंदी महीना आज अंतिम दिन
in news विशेष में पढ़िए –
हिन्दुओं का कब्रिस्तान , कहाँ और आखिर क्यूँ …
कूड़ा से खाना ढूंढता इंसान , भूख की इम्तिहान
” कलम अतिथि की ” हाल डाक सेवा के खस्ताहाली का
बनारस का है ये हाल खुलेआम चल रहा बेटियों का कत्लगाह – अंतरराष्ट्रीय बालिक दिवस विशेष