नवरात्र के दूसरे दिन माँ बह्मचारिणी

नवरात्र के दूसरे दिन माँ बह्मचारिणी

नवरात्र की नव देवियाँ
वासंतिक नवरात्र के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की करे आराधना  
नवरात्र विशेष  / इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 17 oct

नवरात्रि के #दूसरे_दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।  मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है। इनके अन्य नाम तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा भी हैं। माता की पूजा करने से व्यक्ति के सभी काम पूरे होते हैं, कार्यों में  आ रही रुकावटें, बाधाएं दूर हो जाती हैं और विजय की प्राप्ति होती है। इसके अलावा माता के आशीर्वाद से हर तरह की परेशानियां भी खत्म होती हैं। देवी ब्रह्मचारिणी के भक्तों में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।

यहाँ विराजती है
#वासंतिक_नवरात्र के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी के दर्शन होते है। नवरात्र में माँ  दुर्गा के #नौरूपों का दर्शन-पूजन होता है। वाराणसी में माँ दुर्गा के गौरी रूप के  नौवो अलग-अलग मंदिरों के दर्शन का महत्त्व है। दूसरे दिन माँ दुर्गा के द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी का दर्शन का महात्म है।काशी में गंगा के किनारे बालाजी घाट पर स्थित माँ ब्र्हम्चारिणी का अतिप्राचीन मंदिर है।यह मंदिर सैकड़ो वर्षो से यहाँ विद्यमान है। नवरात्र के द्वितीय दिन इस मंदिर में लाखो की संख्या में श्रद्धालु माँ दर्शनों के लिए आते है। कहा जाता है की माँ ब्रह्मचारिणी के दर्शनों से संतान की प्राप्ति होती है।साथ ही साथ माँ धन-धन्य से परिपूर्ण करती है। काशी के उत्तर दिशा में स्थित इस मंदिर में नवरात्र के द्वितीय दिन दर्शन का मान्यता है,पुरनियों के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी ब्रह्मा जी की बेटी है। ब्रहम का अर्थ है तपस्या तथा तथा तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।

इसलिए कही गयी ब्रह्मचारिणी
माँ दुर्गा ने पर्वतराज के घर उनकी पुत्री यानि माता पार्वती के रूप में जन्म लिया था और महर्षि नारद के कहने पर शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की थी। इस कठोर तपस्या के दौरान उन्होंने कई वर्षों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किये हुए बिताया था, जिसके चलते उनका नाम तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी पड़ा। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली। इसीलिए ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।

ये है माँ का स्वरूप 
#देवी_ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं, जो पूरी तरह से ज्योतिर्मय है। मां ब्रह्मचारिणी हमेशा शांत और संसार के दुःख-सुख से विरक्त होकर तपस्या में लीन रहती हैं। कठोर तपस्या के कारण इनके चेहरे पर अद्भुत तेज और आभामंडल विद्यमान है। मां के एक हाथ में माला, तो दूसरे हाथ में कमंडल होता है। इन्हें साक्षात ब्रह्म का स्वरूप माना गया है और ये तपस्या की प्रतिमूर्ति भी हैं। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से सिद्धि प्राप्त होती है।

 

शारदीय से जुड़ीं हुई जानकारियाँ –

प्रथम दिन शैलपुत्री – देवी पर्व नवरात्र की सारी जानकारियॉं

इस बार देवी का वाहन घोड़ा होने से देश में हो सकती है राजनीतिक उथल-पुथल

60 दिनों का हिंदी महीना आज अंतिम दिन

नवरात्र विशेष – जरूर पढ़िए ,देवी आराधना शुरू करने से पहले

शासन का दिशानिर्देश – पूजा और त्यौहार के मद्देनजर

 

काशी के दुर्गाघाट स्थित माता ब्रम्ह्चारिणी का करिये live दर्शन  …..

 

नौ दिनों तक चलने वाले महापर्व की ख़ास बातें
नवरात्र विशेष  / इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 17 oct

भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है। जानिये तारीखे के अनुसार

17 अक्टूबर, 2020 –
इस दिन घटस्थापना शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 27 मिनट से लेकर 10 बजकर 13 मिनट तक का है। प्रथम नवरात्र को देवी के शैलपुत्री रूप का पूजन किया जाता है।
18 अक्टूबर, 2020
नवरात्र की द्वितीया तिथि को देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
19 अक्टूबर, 2020
तृतीया तिथि को देवी दुर्गा के चन्द्रघंटा रूप की आराधना की जाती है।
20 अक्टूबर, 2020
नवरात्र पर्व की चतुर्थी तिथि को मां भगवती के देवी कूष्मांडा स्वरूप की उपासना की जाती है।
21 अक्टूबर, 2020
पंचमी तिथि को भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
22 अक्टूबर, 2020
नारदपुराण के अनुसार आश्विन शुक्ल षष्ठी को मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए।
23 अक्टूबर, 2020
नवरात्र पर्व की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का विधान है।
24 अक्टूबर, 2020
अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं।
25 अक्टूबर, 2020
नवरात्र पर्व की नवमी तिथि को देवी सिद्धदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है। सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है।
26 अक्टूबर 2020
बंगाल, कोलकाता आदि जगहों पर जहां काली पूजा या दुर्गा पूजा की जाती है वहां दसवें दिन दुर्गा जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

– यदि श्रद्धालु नवरात्र में प्रतिदिन पूजा ना कर सके तो अष्टमी के दिन विशेष पूजा कर वह सभी फल प्राप्त कर सकता है।
– अगर श्रद्धालु पूरे नवरात्र में उपवास ना कर सके तो तीन दिन उपवास करने पर भी वह सभी फल प्राप्त कर लेता है।
– कई लोग नवरात्र के प्रथम दिन और अष्टमी एवम नवमी का व्रत करते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह भी मान्य है।
– नवरात्र व्रत देवी पूजन, हवन, कुमारी पूजन और ब्राह्मण भोजन से ही पूरा होता है।

ये हैं विशेष बातें
नवरात्र के नौ दिन प्रात,मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए। हवन और कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। नारदपुराण के अनुसार हवन और कन्या पूजन के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। साथ ही नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा के लिए लाल रंग के फूलों व रंग का अत्यधिक प्रयोग करना चाहिए। नवरात्र में “श्री दुर्गा सप्तशती” का पाठ करने का प्रयास करना चाहिए।

 

in news विशेष में पढ़िए –

कागज पर जारी है सरकार का गरीबी हटाओ अभियान

हिन्दुओं का कब्रिस्तान , कहाँ और आखिर क्यूँ …

कूड़ा से खाना ढूंढता इंसान , भूख की इम्तिहान

” कलम अतिथि की ” हाल डाक सेवा के खस्ताहाली का

बनारस का है ये हाल खुलेआम चल रहा बेटियों का कत्लगाह – अंतरराष्ट्रीय बालिक दिवस विशेष

हाथ के धोने के ये है फायदे.…

जानिए- स्वाहा बोलना क्यों है जरूरी

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!