
तीसरे दिन होता है माता चंद्रघंटा का दर्शन
innovest desk / 18 oct
शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति भगवती चंद्रघंटा की उपासना व आराधना की मान्यता है। इन्हें चित्रघण्टा देवी भी कहते हैं। मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक एवं कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण मां को चन्द्रघंटा भी कहा जाता है। स्वर्ण की कांतिवाली मां की 10 भुजाएं हैं। खड्ग, बाण, गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र- शस्त्र से सुसज्जित मां सिंह पर सवार युद्ध में जाने को उद्यत दिखती हैं। तीसरे दिन की पूजा-साधना में साधक का मन-मणिपुर चक्र में प्रवष्टि होता है और तब मां की कृपा से उसे अलौकिक दर्शन होते हैं। साधक के समस्त पापादी एवं बाधाएं भवानी की कृपा से स्वत: ही दूर हो जाती हैं। प्रेत बाधा आदि से भी मां मुक्ति देती हैं।
कहाँ विराजती है
बनारस में चंद्रघंटा देवी का मंदिर चौक स्थित चंद्रघंटा गली में है। शारदीय नवरात्र की तृतीया तिथि को देवी के चंद्रघण्टा स्वरूप की पूजा की जाएगी। ‘चंद्र:घण्टयां यस्सा: सा अह्लादकारी’ चंद्रमा जिसके घण्टे में स्थित हों, उस देवी का नाम चंद्रघण्टा है। भगवती का बीज मंत्र ‘हृी’ है। अर्द्धचंद्र से अलंकृत जो देवी का बीज है, वह सब मनोरथ पूर्ण करने वाला है। इस प्रकार एकाक्षर ब्रह्म का ऐसे यति ध्यान करते हैं, जिनका मन, हृदय शुद्ध है, जो नियति का मान्यपूर्ण और ज्ञान के सागर हैं।
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चंद्र: घंटायां मंत्र का अर्थ
जिनके घण्टे की घोर ध्वनि के द्वारा दसों दिशाएं कंपायमान हो उठी था । असुर के हृदय विदीर्ण हो र हे थे। माता अपनी घण्ट ध्वनि के द्वारा असुरों का हृदय क्षीण कर रही थीं। देवी के इस स्वरूप के स्तवन मात्र से ही ‘भयादमुच्यते नर:’ अर्थात मनुष्य भय से मुक्ति प्राप्त कर शक्ति प्राप्त करता है। इस स्वरूप का पूजन सभी संकट से मुक्त करता है। मान्यता है कि जब असुरों के बढ़ते प्रभाव से देवता त्रस्त हो गए तब देवी चंद्रघण्टा रूप में अवतरित हुई। असुरों का संहार कर देवी ने देवताओं को संकट से मुक्त करा दिया। देवी के इस स्वरूप की आराधना में निम्न मंत्र के जप का विशेष महत्व है-
‘ऐं कारी सृष्टि रूपाया हृीं कारी प्रति पालिका।क्लींकारी काम रूपण्ये बीजरूपे नमोस्तुते।’
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नवरात्र विशेष / innovest desk / 18 oct
नवरात्रि में 9 दिन 9 अलग-अलग देवियों की आराधना होती हैं। शीघ्र सिद्धि के लिए नियत जप-पूजन इत्यादि आवश्यक है। इससे भी अधिक आवश्यक है श्रद्धा व विश्वास।नवरात्रि में प्रत्येक दिन की अलग-अलग अधिष्ठात्री देवियां हैं जिनकी साधना से कामना-पूर्ति होती है, जो निम्न प्रकार से की जा सकती है –
1. माता शैलपुत्री :
पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता दुर्गा का प्रथम रूप है। इनकी आराधना से कई सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
प्रतिपदा को मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्ये नम:’
की माला दुर्गा जी के चित्र के सामने यशाशक्ति जप कर घृत से हवन करें।
2. माता ब्रह्मचारिणी :
माता दुर्गा का दूसरा स्वरूप पार्वतीजी का तप करते हुए है। इनकी साधना से सदाचार-संयम तथा सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन पर इनकी साधना की जाती है।
द्वितिया को मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’,
की माला दुर्गा जी के चित्र के सामने यशाशक्ति जप कर घृत से हवन करें।
3. माता चन्द्रघंटा :
माता दुर्गा का यह तृतीय रूप है। समस्त कष्टों से मुक्ति हेतु इनकी साधना की जाती है।
तृतीया को मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:’
की 1 माला जप कर घृत से हवन करें।
4. माता कूष्मांडा :
यह मां दुर्गा का चतुर्थ रूप है। चतुर्थी इनकी तिथि है। आयु वृद्धि, यश-बल को बढ़ाने के लिए इनकी साधना की जाती है।
चतुर्थी को मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नम:’
की 1 माला जप कर घृत से हवन करें।
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5. माता स्कंदमाता :
दुर्गा जी के पांचवे रूप की साधना पंचमी को की जाती है। सुख-शांति एवं मोक्ष को देने वाली हैं।
पांचवें दिन मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:’
की 1 माला जप कर घृत से हवन करें।
6. मां कात्यायनी :
मां दुर्गा के छठे रूप की साधना षष्ठी तिथि को की जाती है। रोग, शोक, संताप दूर कर अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को भी देती हैं।
छठे दिन मंत्र- ‘ॐ क्रीं कात्यायनी क्रीं नम:’
की 1 माला जप कर घृत से हवन करें।
7. माता कालरात्रि :
सप्तमी को पूजित मां दुर्गा जी का सातवां रूप है। वे दूसरों के द्वारा किए गए प्रयोगों को नष्ट करती हैं।
सातवें दिन मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:’
की 1 माला जप कर घृत से हवन करें।
8. माता महागौरी :
मां दुर्गा के आठवें रूप की पूजा अष्टमी को की जाती है। समस्त कष्टों को दूर कर असंभव कार्य सिद्ध करती हैं।
आठवें दिन मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’
की 1 माला जप कर घृत या खीर से हवन करें।
9. माता सिद्धिदात्री :
मां दुर्गा के इस रूप की अर्चना नवमी को की जाती है। अगम्य को सुगम बनाना इनका कार्य है।
नौवें दिन मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:’
की 1 माला जप कर जौ, तिल और घृत से हवन करें।
माता दुर्गा के किसी भी चित्र की स्थापना कर यथाशक्ति पूजन कर, नियत तिथि को मंत्र जपें तथा गौघृत द्वारा यथाशक्ति हवन करें। तंत्र का नियम आदि किसी विद्वान व्यक्ति द्वारा समझकर करें।
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