
महागौरी – पाप, ताप और शोक की निवारिणी देवी
नवरात्र विशेष / इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 23 oct
शारदीय नवरात्र में नवदुर्गा के आठवें स्वरूप में भगवती महागौरी के दर्शन-पूजन का विधान है। भगवती का सौम्य, सुंदर, मोहक रूप महागौरी में है। महागौरी की मान्यता भगवती अन्नपूर्णा को है।। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। 4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांये हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। ये अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
उपासक और विशेष रूप से वे साधक जो सात दिनों की साधना में मूलाधार से “सहस्रर चक्र” तक सफल हो गये होते हैं। उनकी कुंडलिनी जागृत हो चुकी होती है, परन्तु आठवें दिन मां महागौरी की आराधना उनकी शक्ति को और प्रबल करती है। वे पाप, ताप और दुख निवारिणी हैं। मां सर्वाधिक कल्याणकारी है। कुंवारी कन्याओं की उपासना से वे शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मनपसंद जीवनसाथी प्राप्त करने का वरदान देती हैं। विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो मां की भक्ति करें, मनोरथ शीघ्र पूर्ण होगा। विधानपूर्वक मां की साधना कर कोई भी अपना मनोरथ पूर्ण कर सकता है। इनका स्थान काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित अन्नपूर्णा मंदिर में है।
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