30 oct की रात क्यों है खास , इस रात लक्ष्मी की कृपा संग हो सकते है निरोग

30 oct की रात क्यों है खास , इस रात लक्ष्मी की कृपा संग हो सकते है निरोग

जिस रात बरसता है चन्दमा से अमृत
तिथि विशेष / इन्नोवेस्ट / 28 oct

सनातन धर्म में आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का प्रमुख पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाने की धार्मिक व पौराणिक परम्परा है। शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा , कोजागरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित है।

कब है पूर्णिमा 
आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 30 अक्टूबर, शुक्रवार की सायं 5 बजकर 46 मिनट पर लग रही है, जो कि 31 अक्टूबर, शनिवार को रात्रि 8 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार पूर्णिमा तिथि का मान 31 अक्टूबर, शनिवार को रहेगा जिसके फलस्वरूप स्नान -दान-व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन सम्पन्न होंगे।

 

 

श्रीलक्ष्मीजी के आठ स्वरूप
धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्यलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, कमलालक्ष्मी एवं विजयलक्ष्मी। श्रीलक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना आदि निशा बेला में की जाती है। इस बार 30 अक्टूबर, शुक्रवार को रात्रि में लक्ष्मीजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा का आयोजन किया जाएगा। कार्तिक स्नान के यम, व्रत व नियम तथा दीपदान 31 अक्टूबर, शनिवार से प्रारम्भ हो जाएगा।

चंद दर्शन के महत्त्व 
इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट रहता है । इस दिन देवी लक्ष्मी और इंद्रदेवता का पूजन किया जाता है । इस कारण लक्ष्मीजी की कृपा से सुखसमृद्धि प्राप्त होती है । रात्रि को दूध में चंद्रमा का दर्शन करने से चंद्रमा की किरणों के माध्यम से अमृतप्राप्ति होती है ।‘अश्‍विन पूर्णिमा’ को चंद्रमा अश्‍विनी नक्षत्र में होता है । अश्‍विनी नक्षत्र के देवता ‘अश्‍विनीकुमार’ हैं ।  अश्‍विनीकुमार सर्व देवताओ के चिकित्सक हैं । अश्‍विनीकुमार की आराधना करने से असाध्य रोग ठीक होते हैं । इसलिए वर्ष की अन्य पूर्णिमाओं की तुलना में अश्‍विन पूर्णिमा को चंद्रमा के दर्शन से कष्ट नहीं होता ।

ज्योतिषविद् विमल जैन ज्योतिष गणना के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन ही चन्द्रमा षोडश कलाओं से युक्त होता है। षोडश कलायुक्त चन्द्रमा से निकली किरणें समस्त रोग व शोक हरने वाली बतलाई गई है। इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट रहता है। इस रात्रि को दिखाई देने वाला चन्द्रमा अपेक्षाकृत अधिक बड़ा दिखलाई पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि भू-लोक पर शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मीजी घर-घर विचरण करती हैं, जो जागृत रहता है उसपर अपनी विशेष कृपा-वर्षा करती हैं।

 

 

ज्योतिषशास्त्र में चन्दमा 
चंद्रमा ग्रह को मन का कारक माना गया है । इसलिए हमारी मानसिक भावनाएं, निराशा और उत्साह चंद्रमा से संबंधित हैं । जिनकी जन्मकुंडली में चंद्रमा बल न्यून होता है, उन्हें पूर्णिमा के आसपास मानसिक कष्ट होने की मात्रा बढती है । जिनकी जन्मकुंडली में चंद्रमा का बल अच्छा है, उनकी प्रतिभा पूर्णिमा के चंद्रमा, चांदनी के वातावरण में जागृत होती है । उन्हें काव्य सूझता है ।  चंद्रमा मातृकारक ग्रह है, अर्थात कुंडली के चंद्रमा से माता के सुख का अध्ययन करते हैं । अश्‍विन पूर्णिमा को चंद्रमा की साक्षी से माता कृतज्ञताभाव से अपनी ज्येष्ठ संतान की आरती उतारती है; क्योंकि प्रथम संतान के जन्म के उपरांत स्त्री को मातृत्व का आनंद प्राप्त होता है ।’

पूजा का विधान
प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा के पश्चात् शरद पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। श्रीलक्ष्मीजी व श्रीविष्णुजी का विधि-विधानपूर्वक पूजन-अर्चन करना चाहिए। उन्हें वस्त्र, पुष्प, धूप-दीप, गन्ध, अक्षत, ताम्बूल, सुपारी, ऋतुफल एवं विविध प्रकार के मिष्ठान्नादि अॢपत किए जाते हैं। गौ दूध से बनी खीर जिसमें दूध, चावल, मिश्री, मेवा, शुद्ध देशी घी मिश्रित हो, उसका नैवेद्य भी लगाया जाता है। रात्रि व्यापिनी शरद पूर्णिमा तिथि पर भगवती श्रीलक्ष्मीजी की आराधना करने से मनोभिलाषित कामनाएँ पूर्ण होती हैं। लक्ष्मीजी के समक्ष शुद्ध देशी घी का दीपक प्रज्वलित करके उनकी महिमा में श्रीसूक्त, श्रीकनकधारास्तोत्र, श्रीलक्ष्मीस्तुति, श्रीलक्ष्मी चालीसा का पाठ करना एवं श्रीलक्ष्मीजी का प्रिय मन्त्र ” ॐ  श्रीं नम:” जप करना अत्यन्त फलदायी माना गया है।

खीर का महत्त्व
आरोग्य-लाभ के लिए शरद पूॢणमा के चन्द्रकिरणों में औषधीय गुण विद्यमान रहते हैं। शरद पूॢणमा की रात्रि में दूध से बनी खीर को चाँदनी की रोशनी में अति महीन श्वेत व स्वच्छ वस्त्र से ढँककर रखी जाती है, जिससे खीर पर चन्द्रमा के प्रकाश की किरणें पड़ती रहे। इस खीर को भक्तिभाव से प्रसाद के तौर पर भक्तों में वितरण करके स्वयं भी ग्रहण करते हैं, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है तथा जीवन में सुख-सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है।

शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास
पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ने आश्विन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन यमुना तट पर मुरली वादन करके गोपियों के संग महारास रचाया था। जिसके फलस्वरूप वैष्णवजन इस दिन व्रत उपवास रखते हुए इस उत्सव को मनाते हैं। इस दिन वैष्णवजन खुशियों के साथ हर्ष, उमंग, उल्लास के संग रात्रि जागरण भी करते हैं। इस पूर्णिमा को ” कोजागरी पूर्णिमा ” भी कहा जाता है।

आकाशदीप 
शरद पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि तक आकाश दीप जलाकर दीपदान करने की महिमा है। दीपदान करने से घर के समस्त दु:ख-दारिद्र्य दूर होता है तथा सुख-समृद्धि का आगमन होता है। आकाशदीप प्रज्वलित करने से अकालमृत्यु का भय समाप्त होता है। बनारस के दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति दौरा साथ ही तमाम घाटों पर संस्थाओं द्वारा आकाशदीप जलाये जाते है। श्रद्धालु अपने घरों के छतों पर भी दीप जलाते हैं।

 

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