धर्म नगरी – कार्तिक मास महत्त्व और दीप की परंपरा

धर्म नगरी – कार्तिक मास महत्त्व और दीप की परंपरा

 

कार्तिक मास लक्ष्मी प्रदाता, सद्बुद्धिदायक एवं आरोग्यप्रदायक ,आकाशदीप से प्रसन्न होते है यम
धरम नगरी / इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 30 oct

31 अक्टूबर, शनिवार से प्रारम्भ
कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा 30 नवम्बर, सोमवार तक

शरद पूर्णिमा से ही भगवती श्रीलक्ष्मीजी की महिमा में उनकी आराधना के साथ दीपदान एवं धार्मिक अनुष्ठान प्रारम्भ हो जाते हैं। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि कार्तिक मास के समान कोई दूसरा मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। स्कन्दपुराण के अनुसार यह मास लक्ष्मी प्रदाता, सद्बुद्धिदायक एवं आरोग्यप्रदायक माना गया है। वर्ष के द्वादश मास में कार्तिक मास को ही धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। कार्तिक मास भगवान श्रीविष्णुजी व श्रीलक्ष्मीजी को समर्पित है। कार्तिक मास में तुलसीजी व पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। इस मास में यमदेव को प्रसन्न करने के लिए आकाशदीप प्रज्वलित किए जाते हैं। कार्तिक मास में एक माह तक आंवले के वृक्ष का ङ्क्षसचन व पूजन करना फलदायी माना गया है। मासपर्यन्त भगवान विष्णुजी को आंवला अॢपत करके उनका पूजन करने पर लक्ष्मीजी की प्राप्ति बतलाई गई है। काला तिल व आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करने से समस्त पापों का शमन होता है। इस मास में नियमपूर्वक संकल्प के साथ व्रत रखकर गंगा-स्नान करके दान करने से तीर्थयात्रा के समान फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में स्नान-दान व पुण्य करने की काफी महिमा है। इस मास में सूर्य के दक्षिणायन होने से असुरिकाल माना जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस मास में स्नान-ध्यान करके, व्रत रखकर भगवान विष्णुजी का पूजन करना विशेष पुण्य फलदायी रहता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक श्रीकृष्ण-राधा का पूजन-अर्चन करने से प्रभु की असीम कृपा मिलती है तथा जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है।

कार्तिक में दीप-दान का महत्व
कार्तिक मास में व्रत, त्यौहार पूजा पाठ आदि के साथ दीप दान का भी विशेष महत्व है। चार महीने बाद जब भगवान विष्णु जागते है तो मांगलिक कार्यकर्मो की शुरुआत होती है। कार्तिक मास की समाप्ति पर कार्तिक पूर्णिमा होती है।जो व्यक्ति कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त हो जाता है।कार्तिक माह में पहले पंद्रह दिन की रातें वर्ष की अंधेरी रातों में से होती हैं। लक्ष्मी पति विष्णु के जागने के ठीक पूर्व के इन दिनों में दीप जलाने से जीवन का अंधकार छंटता है। कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त होकर विष्णुलोक में विहार करता है।जो लोग कार्तिक मास में श्रीहरि के मन्दिर में दूसरों के द्वारा रखे गये दीपों को प्रज्वलित करते हैं, उन्हें नर्क नहीं भोगना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि एक चूहे ने कार्तिक एकादशी में दूसरों के द्वारा रखे दीप को प्रज्वलित करके दुर्लभ मनुष्य जन्म लाभ लिया था।समुद्र सहित पृथ्वी दान और बछड़ों सहित दुग्धवती करोड़ों गायों के दान का फल विष्णु मंदिर के ऊपर शिखर दीपदान करने के सोलहवें अंश के एक अंश के बराबर भी नहीं है। शिखर या हरि मन्दिर में दीपदान करने से शत-कुल का उद्धार होता है। जो व्यक्ति भक्ति सहित कार्तिक मास में केवल मात्र ज्योति -दीप्ति विष्णु मन्दिर के दर्शन करते हैं, उनके कुल में कोई नारकी नहीं होता। देवगण भी विष्णु के गृह में दीपदान करने वाले मनुष्य के संग की कामना करते हैं। कार्तिक-मास में, खेल खेल में ही सही विष्णु के मन्दिर को दीपों से आलोकित करने पर उसे धन, यश, कीर्ति लाभ होती है और सात कुल पवित्र हो जाते हैं। मिट्टी के दीपक में घी / तिल तेल डालकर कार्तिक पूर्णिमा तक दीप प्रज्वलित करें, इससे अवश्य लाभ होगा।

कार्तिक मास में क्या करें
कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए। भूमि पर शयन करें। ब्रह्ममुहूर्त में (सूर्योदय से पूर्व) उठकर स्नान व ध्यान करें। गंगाजी में कमर तक जल में खड़े होकर पूर्ण स्नान करें। सात्विक भोजन करें। भगवान विष्णुजी की आराधना करें। पीपल वृक्ष व तुलसी जी के पौधे की भी धूप-दीप से पूजा करें।

कार्तिक मास में क्या न करें ग्रहण
इस मास में व्रतकर्ता व साधक को अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र किसी दूसरे का कुछ भी (अन्न) ग्रहण न करना चाहिए। चना, मटर, उड़द, मूंग, मसूर, राई, लौकी, गाजर, बैंगन, बासी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। साथ ही लहसुन, प्याज और तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। शरीर में तेल नहीं लगाना चाहिए। इस मास की द्वितीया, सप्तमी, नवमी, दशमी, त्रयोदशी व अमावस्या तिथि के दिन तिल व आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वालों को केवल काॢतक कृष्ण (नरक) चतुर्दशी के दिन ही तेल लगाना चाहिए। मास के अन्य दिनों में तेल नहीं लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु की महिमा में व्रत रखने पर ग्रहजनित दोषों से मुक्ति मिलती है तथा संकटों का निवारण होता है। फटे या गन्दे वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए, स्वच्छ वस्त्र ही धारण करना चाहिए।

  • ज्योतिषविद विमल जैन 

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