जब पत्थर ने तोड़ी इंदिरा गाँधी की नाक

जब पत्थर ने तोड़ी इंदिरा गाँधी की नाक

 

चुनावी रैली में चोट कोई नयी बात नहीं, जब इंदिरा की नाक पर लगी चोट
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 5 nov

उस दिनों उड़ीसा स्वतंत्र पार्टी का गढ़ हुआ करता था. जैसे ही इंदिरा ने एक चुनाव सभा में बोलना शुरू किया, उनके ऊपर वहाँ मौजूद भीड़ ने पत्थरों की बरसात शुरू कर दी,
स्थानीय नेताओं ने उनसे अपना भाषण तुरंत समाप्त करने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने बोलना जारी रखा।
अभी वो भीड़ से कह ही रही थीं, “क्या इसी तरह आप देश को बनाएंगे? क्या आप इसी तरह के लोगों को वोट देंगे.” तभी एक पत्थर उनकी नाक पर आ लगा. उसमें से खून बहने लगा,
उन्होंने अपने दोनों हाथों से बहते खून को पोंछा, उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी, लेकिन ये इंदिरा गांधी को विचलित करने के लिए काफ़ी नहीं था।
अगले कई दिनों तक उन्होंने चेहरे पर प्लास्टर लगाए हुए पूरे देश में चुनाव प्रचार किया. हमेशा अपनी नाक के लिए संवेदनशील रहने वाली इंदिरा गांधी ने बाद में मज़ाक भी किया कि उनकी शक्ल बिल्कुल ‘बैटमैन’ जैसी हो गई है.
हाल में ‘इंदिरा: इंडियाज़ मोस्ट पॉवरफ़ुल प्राइम मिनिस्टर’ किताब लिखने वाली सागरिका घोष कहती हैं, “इससे पता चलता है कि उनके अंदर कितना जोश और लड़ने की कितनी क्षमता थी, काफ़ी ख़ून बह जाने के बावजूद वो घबराईं नहीं और चुनाव प्रचार जारी रखा।

निक्सन को जवाब
1971 के युद्ध से पहले जब इंदिरा गांधी अमरीका गईं, तो वहाँ के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उनसे बहुत धृष्टता से पेश आए,
अमरीकी राजनयिक गैरी बास अपनी किताब ‘द ब्लड टेलिग्राम’ में लिखते हैं, ‘निक्सन ने बदतमीज़ी की सभी हदें पार कर दी, जब उन्होंने इंदिरा गांधी को मिलने के लिए 45 मिनटों तक इंतज़ार कराया’,
बाद में इसी बैठक का ज़िक्र करते हुए पूर्व अमरीकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने अपनी आत्मकथा ‘द व्हाइट हाउज़ इयर्स’ में लिखा, ‘जब इंदिरा गांधी निक्सन से मिलीं, तो उन्होंने निक्सन से कुछ इस तरह बरताव किया जैसा कि एक प्रोफ़ेसर किसी पढ़ाई में कमज़ोर छात्र के साथ करता है’, कई वर्षों बाद जब उन दिनों के टेप डीक्लासिफ़ाई हुए तो पता चला कि निक्सन उन दिनों इंदिरा गांधी के लिए ‘चुड़ैल’ और ‘कुतिया’ जैसे अपशब्दों का प्रयोग करते थे,
एक बार उन्होंने किसिंजर से यहाँ तक कहा था, ‘वो बांग्लादेशी शरणार्थियों को अपने यहाँ आने क्यों दे रही हैं? वो उन्हें गोली क्यों नहीं मरवा देतीं?’
घोष बताती हैं कि इंदिरा गांधी ने निक्सन से इस अपमान का बदला उनके द्वारा इंदिरा के सम्मान में दिए भोज में लिया, भोज के दौरान मेज़ पर वो निक्सन की बगल में बैठी हुई थीं,पूरे भोज के दौरान उन्होंने अपनी आँखें बंद रखी और निक्सन से कोई बातचीत नहीं की,औपचारिक भोज में सारे मेहमानों की निगाहें इंदिरा गाँधी पर लगी हुई थी,लेकिन वो इस दौरान बुत की तरह आँखें मूंदे बैठी रहीं और एक शब्द भी नहीं बोलीं,
बाद में इंदिरा गांधी की टीम के एक सदस्य मोनी मल्होत्रा ने उनसे पूछा भी कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? तो उनका जवाब था, “मेरे सिर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा था,
असल में ये इंदिरा का निक्सन के अपमान का जवाब देने का अपना ख़ास तरीका था।

 

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