– विमल जैन
– प्रथम दिन — धनतेरस, भगवान श्री धन्वनन्तरि जयन्ती,
– द्वितीय दिन — नरक चतुर्दशी, श्री हनुमान जयन्ती,
– तृतीय दिन — दीपावली पर्व और काली पूजा
– चतुर्थ दिन — अन्नकूट पर्व
– पंचम दिन — भैयादूज, यमद्वितीया, भगवान श्री चित्रगुप्त जयन्ती
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में ‘दीपावली पर्व सर्वाधिक लोकप्रिय होने के कारण पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व धनतेरस (धन त्रयोदशी) से प्रारम्भ होकर भैयादूज तक मनाया जाता है। इस दीपोत्सव के पर्व में प्रथम दिन—धनतेरस, भगवान श्री धन्वनन्तरि जयन्ती, द्वितीय दिन—नरक चतुर्दशी, श्रीहनुमान जयन्ती, तृतीय दिन—दीपावली पर्व, चतुर्थ दिन—अन्नकूट पर्व एवं पंचम दिन—भैयादूज, यमद्वितीया, भगवान श्रीचित्रगुप्त जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। दीपोत्सव पर्व 13 नवम्बर, शुक्रवार से 16 नवम्बर, सोमवार तक मनाया जाएगा। प्रमुख पर्व दीपावली 14 नवम्बर, शनिवार को विधि-विधानपूर्वक मनाया जाएगा।
भगवान श्री धन्वन्तरि जयन्ती/धनतेरस (13 नवम्बर, शुक्रवार)
दीपावली पर्व का शुभारम्भ धनतेरस से ही प्रारम्भ हो जाता है। इस बार 13 नवम्बर, शुक्रवार को धनतेरस का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 12 नवम्बर, गुरुवार को रात्रि 9 बजकर 30 मिनट से 13 नवम्बर, शुक्रवार को सायं 5 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता आयुर्वेद शास्त्र के जनक श्री धन्वन्तरि जी का जन्म महोत्सव भी धूम-धाम से मनाया जाता है। समुद्र मन्थन के समय धन्वन्तरि जी अमृत का कलश लेकर अवतरित हुए थे। आयुर्वेद के प्रवर्तक के रूप में तथा श्री विष्णु भगवान के अवतार के रूप में धार्मिक मान्यता है। कलश की अवधारणा को लेकर नये बर्तन खरीदना शुभकर माना जाता है। बर्तन के अतिरिक्त नवीन व एवं आभूषण, रजत व स्वर्ण के बर्तन खरीदने से अधिक लाभ एवं लक्ष्मी का स्थायी निवास मिलता है। आरोग्य सुख के लिए धनतेरस से भैया दूज तक अभ्यंग स्नान की काफी महत्ता है। इन दिनों सुबह सूर्योदय के पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में उठकर, दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर, पूरे शरीर पर तेल लगाकर स्नान करने से आरोग्य सुख मिलता है। तेल के अलावा अन्य वस्तुओं जैसे दूध, दही, देशी घी, तिल, आंवला आदि से स्नान करने पर कष्टों का निवारण होता है। आरोग्य, ऐश्वर्य, धन एवं यश-मान-प्रतिष्ठा का सुयोग बनता है।
नरक चतुर्दशी रूप चतुर्दशी, छोटी दीपावली एवं श्रीहनुमान जयन्ती (14 नवम्बर, शनिवार)
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह पर्व 14 नवम्बर, शनिवार को मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 13 नवम्बर, शुक्रवार को सायं 5 बजकर 59 मिनट से 14 नवम्बर, शनिवार को दिन में 02 बजकर 18 मिनट। आज सायंकाल सूर्यास्त के पश्चात् प्रवेश द्वार के बाहर सरसों के तेल का चौमुखा (चार बत्तियों वाला) दीपक दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जलाकर रखना चाहिए। दीपक की ज्योति दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए। कहीं-कहीं पर रीति-रिवाज के मुताबिक आटे का चौमुखा दीपक बनाकर उसे तेल से भरकर चार बत्ती लगाकर जलाने की भी परम्परा है। कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को सायंकाल मेष लग्न में श्रीहनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। आज के दिन व्रत उपवास रखकर श्रीहनुमानजी की आराधना करते हैं।
श्रीगणेश-लक्ष्मी एवं दीपपूजन (14 नवम्बर, शनिवार)
दीपावली के दिन हर्षोल्लास के साथ 14 नवम्बर, शनिवार को मनाया जाएगा। शुभ मुहूर्त में की गई पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि-वैभव एवं ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। पूजन के लिए प्रदोषकाल, स्थिरलग्न एवं निशीथ काल विशेष लाभकारी रहता है। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि शनिवार, 14 नवम्बर को दिन में 02 बजकर 18 मिनट से रविवार, 15 नवम्बर को प्रात: 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगी। रविवार, 15 नवम्बर को रात्रि में अमावस्या तिथि न मिलने के फलस्वरूप शनिवार, 14 नवम्बर को ही दीपावली का पर्व मनाया जाएगा। दीपावली के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रदोषकाल सायं 5 बजकर 12 मिनट से रात्रि 7 बजकर 22 मिनट तक है। प्रदोष बेला व स्थिर वृषभ लग्न का संयुक्त सर्वोत्तम योग सायं 5 बजकर 12 मिनट से रात्रि 7 बजकर 05 मिनट तक है।
यह समय दीपावली की पूजा-अर्चना प्रारम्भ करने के लिए काफी उत्तम है। स्थिर लग्न सिंह रात्रि 11 बजकर 40 मिनट से अर्धरात्रि के पश्चात 01 बजकर 54 मिनट तक ही है। यह मुहूर्त सिंह लग्न में पूजा करनेवालों के लिए शुभ फलदायी है। निशीथ काल रात्रि 11 बजकर 16 मिनट से रात्रि 12 बजकर 08 मिनट तक है। सिंह लग्न एवं निशीथ काल का संयुक्त समय रात्रि 11 बजकर 40 मिनट से रात्रि 12 बजकर 08 मिनट तक रहेगा। सामान्यत: श्रीलक्ष्मी-श्रीगणेश व दीपक के साथ समस्त देवी-देवताओं श्रीमहाकाली, श्रीमहासरस्वती, श्रीमहालक्ष्मी व कुबेरजी का पूजन सायंकाल से ही शुरू होकर रात्रिपर्यन्त चलता है।
अन्नकूट महोत्सव (15 नवम्बर, रविवार)
दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को देवालयों में अन्नकूट महोत्सव मनाने की परम्परा है। प्रतिपदा तिथि रविवार, 15 नवम्बर को प्रात: 10 बजकर 37 मिनट से सोमवार, 16 नवम्बर को प्रात: 7 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। आज देवालयों को आकर्षक व मनमोहक ढंग से सजाकर विविध प्रकार के मिष्ठान्न नैवेद्य के तौर पर अर्पित किया जाता है।
भैयादूज/यम द्वितीया/भगवान चित्रगुप्त जयन्ती (16 नवम्बर, सोमवार)
भाई-बहन के स्नेह का पर्व भैयादूज कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सोमवार, 16 नवम्बर को प्रात: 7 बजकर 07 मिनट से अर्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। भैया दूज के दिन भाई अपनी बहन के घर जाकर उसके हाथ से बना भोजन ग्रहण करता है, जिसके फलस्वरूप उसे भगवती लक्ष्मीजी की कृपा से सुख-समृद्धि, खुशहाली प्राप्त होती है। भाई भी बहन को उपहार प्रदान करते हैं। इस दिन बहनें अपने रीति-रिवाज के मुताबिक अपने भाइयों को टीका लगाकर उनके दीर्घायु व शुभ मंगल की कामना करती हैं। आज के दिन भगवान चित्रगुप्तजी एवं कलम-दवात की भी पूजा-अर्चना की जाती है।
विशेष—पंचदिवसीय महापर्व अपने पारिवारिक परम्परा व रीति-रिवाज के अनुसार ही मनाना शुभ फलदायी रहता है।
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