धनतेरस विशेष – काशी कैसे आयी माता पार्वती , क्यों मांगा शिव ने  अन्नपूर्णा से भिक्षा

धनतेरस विशेष – काशी कैसे आयी माता पार्वती , क्यों मांगा शिव ने अन्नपूर्णा से भिक्षा

अन्नपूर्णा देवी का महत्त्व ,क्या है भगवान शंकर से सम्बन्ध
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 12 nov

 

आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्तोत्र रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे,ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती।

 

अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- ‘धान्य’ (अन्न) की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है।अन्नपूर्णा देवी हिन्दुओं द्वारा पूजित एक देवी हैं। उनका दूसरा नाम ‘अन्नदा’ है। वे शक्ति की ही एक रूप हैं। अन्नपूर्णा देवी का मंदिर बनारस हैं और इनका सम्बन्ध उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर से भी माना जाता है । बनारस में काशी विश्‍वनाथ मंदिर से सटा माता अन्‍नपूर्णा का मंदिर है। मान्यता है कि माता ने स्‍वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था।

कुछ यूँ  काशी आयी माता
कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किंतु सम्पूर्ण जगत् उनके नियंत्रण में है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में आने की कथा बडी रोचक है। भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात् उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलास पर रहने लगे, तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के बजाय अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की। महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता, और द्वापर, इन तीन युगों में काशी श्मशान रहे और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसे। इसी कारण वर्तमान समय में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ।

इन पुराणों में है वर्णन
स्कन्दपुराण के ‘काशीखण्ड’ में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ‘ब्रह्मवैव‌र्त्तपुराण’ के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। परन्तु जनमानस आज भी अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है। श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोता है। अन्नपूर्णा माता की उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। ये अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक जन्मों से चली आ रही दरिद्रता का भी निवारण हो जाता है। ये अपने भक्त को सांसारिक सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। तभी तो ऋषि-मुनि इनकी स्तुति करते हुए कहते हैं-

शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदाम्।दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥

ये है माता की मान्यता –
बाबा भोले की नगरी के रूप में विख्यात काशी दुनिया का सबसे पुराना एक मात्र ऐसा शहर है, जिसका 3500 वर्ष पुराना लिखित इतिहास मौजूद है। यहां गंगा के पश्चिमी घाट पर भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग में से एक विश्वेश्वर लिंग पर काशी विश्वनाथ जी का मंदिर है। इसी मंदिर के निकट दक्षिण दिशा में माँ अन्नपुर्णा देवी का मंदिर है  जो  भक्तों को अन्न धन प्रदान करने वाली माँ अन्नपूर्णा का दिव्य धाम है ! दीपावली के पहले पड़ने वाले धनतेरस के दिन माँ का अनमोल खजाना खोला जाता है और श्रधालुयों में इसकों साल में केवल एक दिन धनतेरस के दिन बाटा जाता है जिसके पीछे की मान्यता है की इस खजाने के पैसे को अगर अपने घर में रखा जाये तो कभी धन,सुख ,और समृद्धि में कमी नहीं होती ।    पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान् शिव ज़ब काशी आये तो लोगों का पेट भरने के लिए उन्होंने माँ अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी ! माँ ने भिक्षा के साथ साथ भगवान् शिव को यह वचन भी दिया की काशी में कभी भी कोई भूखा नही सोयेगा !काशी में आने वाले हर किसी को अन्न माँ के ही आशीर्वाद से प्राप्त होता है …भगवान शंकर खुद माँ के दरबार में कतार बद्ध होकर आते है !माता अन्नपुर्णा के मंदिर में स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन धनतेरस के दिन से चार दिनों के लिये होता है ….माता का खजाना श्रधालुयों में इसी दिन बाटा जाता है मान्यताये है की माँ के खजाने से प्राप्त धन ,पुष्प को अपने घर के पूजा घर या अपने खजाने में रखा जाये तो उसमे परिवार में धन धान और यश की वृद्धि होती है।

शारदीय नवरात्र में नवदुर्गा के आठवें स्वरूप
शारदीय नवरात्र के आठवें दिन भगवती महागौरी के दर्शन-पूजन का विधान है। भगवती का सौम्य, सुंदर, मोहक रूप महागौरी में है। महागौरी की मान्यता भगवती अन्नपूर्णा को है।। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। 4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको।    इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांये हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। ये अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं।

 

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