दीपावली – छोटी दीपावली का सम्पूर्ण जानकारी

दीपावली – छोटी दीपावली का सम्पूर्ण जानकारी

नरक चतुर्दशी
छोटी दीपावली पर श्रीकृष्ण के साथ पूजे जाएंगे यमराज व भक्त हनुमान
इन्नोवेस्ट धर्मनगरी / 13 nov

– संदीप त्रिपाठी

– भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16 हज़ार कन्याओं को दिलाई थी मुक्ति
– यमराज ने राजा रन्तिदेव को नरक के कोप से परित्राण कर दिया था जीवन दान
– घर के मुख्य आंगन में दीपक जलाकर की जाती है कुटुम्बजनों के बेहतर स्वास्थ्य की कामना
– रूप चौदस पर विशेष स्नान-पूजन से बीमारी होती है दूर
– काले जादू का असर होता है खत्म, कर्ज़ से मिलती है मुक्ति
– व्यवसायिक परेशानियां और नर्क से मुक्ति मिलती है – व्यक्ति लंबे समय तक जवान व खूबसूरत रहता है व उसे हर क्षेत्र में जीत हासिल होती है
– माता अंजनी के पुत्र रामभक्त हनुमान प्रभु की जयंती भी मनाई जाएगी

पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व की शुरूआत 12 नवंबर धनतेरस से शुरू हो चुकी है। धनतेरस के दूसरे दिन दीपावली के पहले नरक चतुर्दशी का भी विशेष महत्व बताया गया है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर छोटी दीपावली, काली चौदस, नरक चतुर्दशी व रूप चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज, महाकाली, श्रीकृष्ण व हनुमान जी के पूजन का विधान है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध करके उसके बंदी ग्रह से कन्याओं को छुड़ावाया था। इसी दिन यमराज ने महापराक्रमी व राजा रन्तिदेव की गलती सुधारने के लिए उन्हे जीवनदान देकर नर्क के कोप से मुक्ति दिलाई थी। मान्यतानुसार देवऋषि नारद ने राजा हिरण्यगर्भ को कीड़े पड़ चुके हुए उसके शरीर पर से मुक्ति का मार्ग बताया था जिससे हिरण्यगर्भ को सौन्दर्य व स्वास्थ्य प्राप्त हुआ। इसी कारण इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में शरीर पर चंदन का लेप लगाकर तिल मिले जल से स्नान करने का महत्व है। इस दिन आद्या काली का उद्गम पर्व काली चौदस के रूप में मनाया जाता है तथा इसी दिन हनुमान जी का विजय पर्व भी उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यमराज, श्रीकृष्ण, महाकाली हनुमान जी का विशेष पूजन किया जाता है। रात्रि के समय घर की दहलीज पर दीप लगाए जाते हैं। रूप चौदस के विशेष स्नान पूजन व उपायों से लंबे समय से चल रही बीमारी दूर होती है। काले जादू का असर खत्म होता है, कर्ज़ से मुक्ति मिलती है, व्यवसायिक परेशानियां दूर होती हैं, नर्क से मुक्ति मिलती है तथा व्यक्ति लंबे समय तक जवान व खूबसूरत रहता है व उसे हर क्षेत्र में जीत हासिल होती है। ऐसी भी मान्‍यता है कि राम भक्‍त हनुमान ने माता अंजना के गर्भ से इसी दिन जन्‍म लिया था। इस दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है।

नरक चतुर्दशी तिथि और स्‍नान का शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 13 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 59 मिनट से
चतुर्दशी तिथि समाप्‍त: 14 नवंबर 2020 को दोहपर 02 बजकर 17 मिनट तक.
अभ्‍यंग स्‍नान का मुहूर्त: 14 नवंबर 2020 को सुबह 05 बजकर 23 मिनट से सुबह 06 बजकर 43 मिनट तक.
कुल अवधि: 01 घंटे 20 मिनट.

रूप चौदस पर होती है यम की पूजा

वहीं इस दिन सिर्फ कृष्ण की ही नहीं बल्कि यम देवता की पूजा का भी विधान है। यही कारण है कि इस दिन घर के मुख्य आंगन में या बीचों बीच दीपक जलाकर परिवार के सदस्यों के बेहतर स्वास्थ्य की कामना की जाती है। इस दिन दीप दान का काफी महत्व होता है।

क्यों होती है भगवान कृष्ण की पूजा

पं. शास्त्री के अनुसार नरकासुर एक राक्षस था जिसका वध भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से किया था, जिस दिन उन्होंने नरकासुर का संहार किया उस दिन नरक चतुर्दशी ही थी, इसीलिए इस दिन कई जगहों पर भगवान कृष्ण की विशेष आराधना की जाती है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंधक बनाकर रखा था और उन्हें ही आज़ाद कराने के लिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा की मदद ली और नरकासुर का संहार कर दिया। लेकिन बाद में उन कन्याओं के माता पिता ने उन्हें अस्वीकार कर दिया तो नंदलाला ने उन सभी सोलह हजार कन्याओं के साथ विवाह किया और उन्हें समाज में सम्मान दिलवाया। इसीलिए भगवान कृष्ण की 16 हजार पत्नियां व 8 मुख्य पटरानियां हैं।

नरक चतुर्दशी पूजा विधि

मान्यता है इस दिन यम की पूजा की जाए तो अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है, इसीलिए इस दिन घर के मुख्य द्वार के बांई ओर अनाज की ढेरी रखें, इस पर सरसों के तेल का एक मुखी दीपक जलाना चाहिए लेकिन दीपक की लौ दक्षिण दिशा की ओर कर दें।

 

 

इसलिये मुख्य द्वार पर लगाते हैं दीपक

एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने 16,000 महिलाओं को बंदी बना रखा था जिन्हें कृष्ण ने उसका वध करके मुक्त किया था। इसलिए दिवाली के त्योहार में एक दिन इस विजय के रूप में मनाया जाता है और दीप जलाकर खुशी मनाई जाती है।

कथा के अनुसार ये है मान्यता

प्राचीन कथा के अनुसार एक धर्मात्मा राजा रतिदेव थे। राजा रतिदेव ने अपने जीवनकाल में कभी कोई पाप नहीं किया था। लेकिन उसके बावजूद जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्हें नरक प्राप्त हुआ। नरक लोक पहुंचते ही राजा यमदूत से बोले कि मैंने अपने जीवन में कोई पाप नहीं किया इसके बाद भी मुझे नरक क्यों मिला। तब यमदूत नें उन्हें नें उन्हें उत्तर देते हुए कहा- हे वत्स एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा पेट लौट गया था, यह आपके उसी कर्म का फल है। यह बात सुनते ही राजा ने यमराज से एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों के पास अपनी इस समस्या को लेकर पहुंचे तब ऋषियों ने उन्हें कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनसे माफी मांगने को कहा। एक साल बाद यमदूत राजा को फिर लेने आए, इस बार उन्हें नरक के बजाय स्वर्ग लोक ले गए तब ही से कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष को दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई। ताकि भूल से हुए पाप को भी क्षमादान मिल सके।

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