
सौभाग्य, आरोग्य व सर्वसुख प्रदाता छठ व्रत
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 17 nov
* व्रत का प्रथम नियम-संयम 18 नवम्बर, बुधवार को
* व्रत का द्वितीय संयम 19 नवम्बर, गुरुवार को
* अस्ताचल सूर्यदेव को प्रथम अर्ध्य 20 नवम्बर, शुक्रवार को सायंकाल
* उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अर्ध्य 21 नवम्बर, शनिवार को
प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्यदेव की आराधना से जीवन में हर्ष, उमंग, उल्लास व ऊर्जा का संचार होता है। सूर्यदेव की महिमा में रखने वाला डालाछठ, जिन्हें छठपर्व भी कहते हैं, कार्तिक शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारम्भ होगा, जिसका समापन कार्तिक शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि के दिन होता है। इस बार भगवान सूर्यदेव की आराधना का चार दिवसीय महापर्व 18 नवम्बर, बुधवार से प्रारम्भ होकर 21 नवम्बर, शनिवार तक चलेगा। सुख-समृद्धि, खुशहाली के लिए सृष्टि के नियंता भगवान सूर्यदेव की महिमा अपरम्पार है। धार्मिक पौराणिक मान्यता-सूर्य पष्ठी के व्रत से पाण्डवों को अपना खोया हुआ राजपाट एवं वैभव प्राप्त हुआ था । एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक शुक्ल पष्ठी के सूर्यास्त तथा सप्तमी तिथि के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ था । ऐसी भी पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल घष्ठी तिथि के दिन उपवास रखकर प्रत्यक्ष भगवान सूर्यदेव की आराधना कर तथा सप्तमी तिथि के दिन व्रत पूर्ण किया था। इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया था। फलस्वरूप सूर्यदेव की आराधना का छठपर्व मनाया जाता है।
चार दिन का विवरण , कब और क्या
इस चार दिवसीय पर्व में भगवान सूर्य की ही आराधना का विधान है । सूर्य की आराधना का चार दिवसीय महापर्व 18 नवम्बर, बुधवार से प्रारम्भ होकर 21 नवम्बर, शनिवार तक चलेगा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (17 नवम्बर, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 1 बजकर 18 मिनट पर लगेगी) 18 नवम्बर, बुधवार को व्रत का प्रथम नियम-संयम कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि (18 नवम्बर, बुधवार को रात्रि 11 बजकर 11 मिनट पर लगेगी )
19 नवम्बर, गुरुवार को द्वितीय संयम (एक समय खरना) कार्तिक शुक्ल पक्ष की पष्ठी तिथि (19 नवम्बर, गुरुवार को रात्रि 10 बजकर 00 मिनट पर लगेगी) 20 नवम्बर, शुक्रवार को व्रत के तृतीय संयम के अन्र्तगत सायंकाल अस्ताचल ( अस्त होते हुए) सूर्यदेव को प्रथम अर्ध्य दिया जाएगा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (20 नवम्बर, शुक्रवार को रात्रि 9 बजकर 30 मिनट पर लगेगी) 21 नवम्बर, शनिवार को चतुर्थ एवं अन्तिम संयम के अन्तर्गत प्रातःकाल उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अर्ध्य देकर छठ व्रत का पारण किया जाएगा।
जानिये , व्रत का विधि और परंपरा
इस चार दिवसीय महापर्व पर सूर्यदेव की पूजा के साथ माता यष्टी देवी की भी पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस पर्व पर नवीन वस्त्र, नवीन आभूषण पहनने की परम्परा है। यह व्रत किसी कारणवश जो स्वयं न कर सकें, वे अन्य व्रती को अपनी ओर से समस्त पूजन सामग्री व नकद धन देकर अपने व्रत को सम्पन्न करवाते हैं। प्रथम संयम 18 नवम्बर, बुधवार चतुर्थी तिथि के दिन सात्विक भोजन जिसमें कद्दू या लौकी की सब्जी, चने की दाल तथा हाथ की चक्की से पीसे हुए गेहूँ के आटे की पूड़ियाँ ग्रहण की जाती हैं, जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। अगले दिन 19 नवम्बर, गुरुवार पंचमी तिथि को सायंकाल स्नान- ध्यान के पश्चात् प्रसाद ग्रहण करते हैं। जो कि धातु या मिट्टी के नवीन बर्तनों में बनाया जाता है । प्रसाद के रूप में (नये चावल से बने गुड़ की खीर) ग्रहण किया जाता है, जिसे अन्य भक्तों में भी वितरित करते हैं, इसे खरना के नाम से भी जाना जाता है । तत्पश्चात् व्रत रखकर 20 नवम्बर, शुक्रवार पष्ठी तिथि के दिन सायंकाल अस्ताचल (अस्त होते हुए) सूर्यदेव को पूर्ण श्रद्धाभाव से अर्ध्य देकर उनकी पूजा की जाएगी। पूजा के अन्तर्गत भगवान सूर्यदेव को एक बड़े सूप या डलिया में पूजन सामग्री सजाकर साथ ही विविध प्रकार के ऋतुफल, व्यंजन, पकवान जिसमें शुद्ध देशी घी का गेहूँ के आटे तथा गुड़ से बना हुआ ठोकवा प्रमुख होता है, भगवान सूर्यदेव को अर्पित किया जाता है।
भगवान सूर्यदेव की आराधना के साथ ही पष्ठी देवी की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा में गंगाघाट, नदी या सरोवर तट पर लोकगीत का गायन करते हैं, जो रात्रिपर्यन्त चलता रहता है । रात्रि जागरण से जीवन में नवीन ऊर्जा के साथ अलौकिक शान्ति भी मिलती है। अन्तिम दिन 21 नवम्बर, शनिवार सप्तमी तिथि के दिन प्रातःकाल उगते हुए सूर्यदेव को धार्मिक विधि- विधान से अर्ध्य देकर छठव्रत का पारण किया जाएगा। यह व्रत मुख्यत: महिलाएँ ही करती हैं। महिलाएँ अधिक से अधिक लोगों में शुभ मंगल कल्याण की भावना अपने मन में रखते हुए भक्तों में प्रसाद वितरण करती हैं, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि सौभाग्य बना रहे। इस महापर्व पर स्वच्छता व पूर्ण सादगी तथा नियम-संयम अति आवश्यक है। इस पर्व पर पूजा में परिवार के समस्त सदस्य पूर्ण श्रद्धा, आस्था व भक्ति के साथ अपनी सहभागिता निभाते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य एवं वैभव का मार्ग प्रशस्त होता है।
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