
इन्नोवेस्ट धर्मनगरी / 20 nov
छठ पूजा बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड बंगाल और नेपाल में मनाया जाने वाला महापर्व है। चार दिवसीय ये पूजा और व्रत सूर्य देव और षष्टी देवी को समर्पित है। छठ पूजा दुनिया का एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमे डूबते सूरज की पूजा की जाती है।इस महापर्व में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं।
छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?
यह पर्व चार दिनों का होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रती दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। चौथे और अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
ये है कथा
छठ व्रत की कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे जिनकी पत्नी का नाम मालिनी थी। राजा की कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से राजा और रानी दोनों ही बहुत दुखी रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गयी लेकिन 9 महीने के पश्चात् रानी को मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ। जब यह खबर राजा तक पहुंची तो वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने आत्महत्या का मन बना लिया।जैसे ही राजा आत्महत्या के लिए आगे बड़े वैसे ही उनके सामने एक देवी प्रकट हुई। देवी ने राजा से कहा मैं षष्ठी देवी हूँ और मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूँ। देवी ने राजा से कहा की अगर तुम सच्चे मन से मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हारी सभी मनोकामनमायें पूरी करूंगी और तुम्हे पुत्र रत्न दूंगी।राजा ने देवी के कहे अनुसार उनकी पूजा की। राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पुरे विधि विधान के साथ देवी षष्ठी की पूजा की और उसके फलस्वरूप उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ पर्व मनाया जाने लगा।
किस किस ने किया इस व्रत को
देव माता अदिति ने की थी छठ पूजा। एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तो द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुई और पांडवों को उनका राजपाट और वैभव वापस मिल गया।
वहीं एक मान्यता के अनुसार, छठ पर्व पर अर्घ्य देने की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव को जल का अर्घ्य देकर यह परंपरा शुरू की। आज भी छठ में अर्घ्य की यही पद्धति प्रचलित है।
एक मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की और सप्तमी को सूर्योदय के समय सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
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