इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 29 nov
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– सुरक्षा के मद्देनजर मास्क और थर्मल स्केनिंग के बाद भक्तों को दिया प्रवेश – covid 19 के मद्देनजर श्रद्धालुओं को रखा गया सुरक्षा चक्र में – 100 किलो विदेशी फूल संग 500 किलो फूल भव्य सजावट _____________________________________
कार्तिक पूर्णिमा के दिन आयोजित होने वाला देव दीपावली पर्व पूरे दुनिया के लिए अद्भुत एवं अलौकिक है । 30 नवम्बर कार्तिक पूर्णिमा को काशी के जान्हवी के तट पर मनाए जाने वाले विश्व विख्यात देव दीपावली पर्व को पूरी भव्यता, आकर्षणता एवं अलौकिकता के साथ मनाया गया। वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति द्वारा भव्य महाआरती सम्पन्न हुई।
भव्य आयोजन की शुरुआत वैदिक परम्पराओं के अनुसार मंगला चरण के साथ शास्त्रोक्त विधि से पूजन के तदुपरांत 51 लीटर गाय के दूध से माँ गंगा के दुग्धाभिषेक से हुआ। अभिषेक के बाद दशाश्वमेध घाट के पवित्र सीढ़ियों और मढी पर 21 ब्राम्हणों द्वारा गंगा महाआरती किया गया। ब्राह्मणों के साथ रिद्धि और सिद्धि ( 42 ) के रूप में चवर डुलाया। घाट पर माँ गंगा के अष्टधातु की 108 किलो की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार हुआ । कलकत्ता से 100 किलो विदेशी फूल संग देशी फूल का भी समावेश रहेगा। इसी क्रम में केदार घाट के सीढ़ीओ पर तीन आरती सम्पन होगी । इसी दिन राज्य पुलिस के शहीद हुए जवानों की याद में अश्विन पूर्णिमा से जल रही आकाशदीप का समापन दीपदान संग किया गया।
आयोजन में मुख्य रूप से सेन्ट्रल बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक अनिल कुमार यूको बैंक के अंचल प्रमुख घनश्याम परमार दिल्ली से अरविन्द सिंह ,संस्था के संस्थापक किशोरी रमण दुबे के साथ दिनेश शंकर दुबे गंगेश्वर धर दुबे,कन्हैया त्रिपाठी, शांतिलाल जैन रामबोध सिंह , संजय गुप्ता और संकठा प्रसाद आदि लोग शामिल रहे। संचालन राजेश शुक्ला ने किया।
देव दीपावली का शुरुआत – देव दीपावली का उल्लेख निर्णय सिन्धु एवं स्मृति कौस्तुभी में है। काशी में इसकी शुरुआत पुरातन काल से मानी जाती है। हालांकि देव दीपावली के विह्ंगम दृश्य की पृष्ठभूमि में पूर्व काशी नरेश स्वर्गीय डा. विभूति नारायण सिंह की भूमिका अहम है जो 1986 में पंचगंगा पर हजारा दीप जलाई गयी । काशी की संस्कृति में चार लक्खा मेले में रथयात्रा मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया और तुलसी घाट की नागनथैया के बाद अब कोटि मेले के रूप देव दीपावली जुड़ गया। वर्तमान स्वरूप का श्रेय गंगोत्री सेवा समिति ( दशाश्वमेध घाट ) के संस्थापक अध्यक्ष पं. किशोरी रमण दूबे (बाबू महाराज) को जाता है जिन्होंने प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर सबसे पहले आरती की शुरुआत सन 1991 से हुयी थी । उस वक्त की आरती चौकी पर मिट्टी की धुनोची में कपूर रख कर होता था साथ ही ये आरती ख़ास अवसरों पर ही हुआ करती थी । सन 14 नवम्बर 1997 से नित्य आरती का सिलसिला शुरू हुआ । जो आज भी जारी है।
मान्यताएं और कथाएं – देव दीपावली के सन्दर्भ में दो पौराणिक मान्यताएं एवं कथाएं प्रचलित हैं। काशी के प्रथम शासक “दिवोदास” द्वारा अपने राज्य बनारस में देवी -देवताओं का प्रवेश बंद कर दिया गया। छिपे रूप में देवगण कार्तिक मास पंचगंगा घाट पर पवित्र गंगा में स्नान को आते रहे। कालान्तर में राजा को प्रभावित कर यह प्रतिबंध हटा लिया गया। इस विजय को हर्षोल्लास से मनाने के लिए समस्त देवी -देवता बनारस में दीप मालाओं से सुसज्जित विजय दिवस मनाने एवं भगवान शिव की महाआरती के लिए कार्तिक पूर्णिमा में पधारे थे। तभी से देव दीपावली मनायी जाती है। दूसरी कथा के अनुसार “त्रिपुर” नामक दैत्य पर विजय के पश्चात देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ शंकर की महाआरती और नगर को दीपमालाओं से सुसज्जित कर विजय दिवस मनाया था।
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https://youtu.be/LVBNS49-pjk
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@ बनारस – पढ़िए, बनारस की Top News 28 November 2020 का