
जानिये क्या है वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1960 और 1972
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 7 feb
जारी है वध के लिए गोवंश को ले जाने का सिलसिला , 35गोवंश बरामद
कानून में चूक का फायदा आज भी कसाइयों के लिए वरदान साबित हो रहा है ,तमाम सख्ती के बाद भी गोवंश की हत्या जारी है चाहे कानून के नियम की बात कर ले या फिर मुख्यमंत्री के कड़े आदेश के बाद हरकत में रहने वाले पुलिस के डंडे की , मामला रुकता नजर नहीं आ रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि रुक रुक कर आने वाली खबरें न चाहते हुए भी कुछ कह ही जाती है। हालिया बीते शनिवार का है जब लंका पुलिस ने कंटेनर से वध के लिए ले जाए जा रहे 35 जीवित व एक मृत बरामद किया है। ये गोवंश प्रयागराज से बंगाल के रास्ते आगे जा रहा था । गोवंश से भरा इस कन्टेनर को पुलिस द्वारा गोकुलढाबा से 200 मीटर आगे पकड गिरफ्त आया लेकिन हर बार की कहानी की तरह फिर वही हुआ और कन्टेनर का चालक फरार हो गया जबकि खलासी बांदा के बिसण्डा जिला के कोदही थाना का निवासी मनोज कुमार पुत्र बाबादीन पकडा गया ।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972
भारत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत हाथी, ऊंट, घोड़े इत्यादि की बलि नहीं दी जा सकती तथा बैल और सांड गोवंश संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अलग अलग राज्यो में संरक्षित कर दिए गए हैं। अब केवल कुछ चुने हुए पशु रह गए हैं, जिनकी बलि दी जाती है, जैसे बकरा, भैंस, भेड़ और मुर्गा। धारा 429 स्पष्ट रूप से हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भैंस, सांड गाय, बैल इनका नाम लेकर उल्लेख करती है। इस धारा में पशु को संपत्ति बताया गया है। इसका अर्थ यह है कि यदि मालिक संपत्ति का उपभोग करता है तो वह पशु को विकलांग भी कर सकता है उसका वध भी कर सकता है या फिर उसे विष भी दे सकता है परंतु हाथी ऊंट घोड़े खच्चर इन्हें वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण दिया गया है, गाय बैल को गोवंश संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है तथा भैंस बकरी भेड़ को यहां संरक्षण प्राप्त नहीं है परंतु यह भी पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित होते होते है। सलास्टर हाउस रूल्स 2001 के अंतर्गत ही इन पशुओं का वध किया जा सकता है।
ये है पशु निवारण अधिनियम 1960
पशु क्रूरता से निपटने के उद्देश्य से पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 का निर्माण भारत की संसद द्वारा किया गया है। इस अधिनियम के माध्यम से पशुओं के प्रति होने वाली क्रूरता को रोकने के संपूर्ण प्रयास किए गए हैं। अधिनियम की धारा 11 में पशुओं के प्रति क्रूरता के व्यवहार का उल्लेख है जो साधारण शब्दों में निम्न है-
1) किसी पशु को पीटना, ठोकर मारना, बहुत ज्यादा सवारी लगाना, बहुत अधिक बोझ लाद देना उसे यातना देना या फिर उसके साथ में कोई भी ऐसा व्यवहार करना जिससे उसे अनावश्यक पीड़ा हो।
2) कोई पशु अपनी उम्र, कोई अंग के शिथिल हो जाने, कोई घाव, किसी फोड़े के कारण कोई कार्य कर पाने में असमर्थ है, उस पशु को फिर भी उस कार्य में लगाया जाए।
3) किसी भी पशु को कोई भी नुकसान पहुंचाने वाली दवाई या फिर क्षति कारक पदार्थ जानबूझकर देगा या खिलाएगा या खिलवाएगा।
4) किसी पशु या पशुओं को कोई ऐसी रीति से किसी गाड़ी मोटर यान में लेकर जाना जिस रीति से ले जाने में पशु को यातना पहुंचे।
5) किसी पशु को किसी ऐसे पिंजरे में रखना जिसकी लंबाई चौड़ाई छोटी हो और पशु को यातना पहुंचे।
6) किसी पशु को अनुचित या छोटी रस्सी या जंजीर से बांध के रखना या फिर कोई भारी वस्तु से बांध के रखना।
7) पशु का मालिक होने के बाद भी पशु को खाना पानी नहीं देना।
8) बिना कोई उचित कारण किसी पशु को ऐसी जगह छोड़ देना जहां पर उसको दाना पानी खाना नहीं मिले और वह भूखा मर जाए।
9) कोई विकलांग, भूखा, बीमार और प्यासा ऐसा पशु बिक्री के लिए बाजार में रखना।
10) दो पशुओं को आपस में लड़ा कर लड़ाई का मनोरंजन लेना। 11) गोली चला कर निशाना लगाकर पशुओं को मारना।
यह सभी बातें क्रूरता की श्रेणी में रखी गयी हैं और इन्हें अपराध बनाया गया है और इस अपराध के लिए यदि प्रथम बार यह अपराध किया जाता है तो कम से कम ₹25000 का जुर्माना है और जो ₹100000 तक का हो सकता है। दूसरी बार फिर या अपराध किया जाता है तो इसमें तीन महीने तक की सजा का प्रावधान रखा गया है।
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