संत रविदास ….कठौती में गंगा
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 27 feb
माघ शुक्ल पूर्णिमा की तिथि अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार गुरु रविदास की 644 वाँ जन्म वर्षगाँठ 27 फरवरी 2021 को है इसलिए आज गुरु रविदास जी का 644 वाँ जन्म वर्षगाँठ मनाया जा रहा है। इनका जन्म बनारस के सिरगोवर्धन क्षेत्र में हुआ था जहां आज भव्य मंदिर है । भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है जिनमें कबीर, रैदास, सूर, तुलसी रहे हैं जिन्होंने भगवान के सगुण और निर्गुण रूप को हर व्यक्ति तक पंहुचाया। यही वह दौर था जब इन संत कवियों ने मानवीय मूल्यों का जन जन में भक्ति के रूप में संचार किया। इन्हीं में से एक थे संत रविदास। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं।
काशी की पवित्र भूमि
वैसे तो संत रविदास के जन्म की प्रामाणिक तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं लेकिन अधिकतर विद्वान सन् 1398 में माघ शुक्ल पूर्णिमा को उनकी जन्म तिथि मानते हैं। कुछ विद्वान इस तिथि को सन् 1388 की तिथि बताते हैं। वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। संत कुलभूषण कवि संत शिरोमणि रविदास (रैदास) का जन्म काशी में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी तथा पिता का नाम संतोख दास था। चर्मकार कुल से होने के कारण जूते बनाने का अपना पैतृक व्यवसाय उन्होंने ह्रदय से अपनाया था। वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।उस दौर के संतों की खास बात यही थी कि वे घर बार और सामाजिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़े बिना ही सहज भक्ति की और अग्रसर हुए और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए ही भक्ति का मार्ग अपनाया।
….कठौती में गंगा
संत रविदास की अपने काम के प्रति प्रतिबद्धता इस उदाहरण से समझी जा सकती है एक बार की बात है कि रविदास अपने काम में लीन थे कि उनसे किसी ने गंगा स्नान के लिये साथ चलने का आग्रह किया। संत जी ने कहा कि मुझे किसी को जूते बनाकर देने हैं यदि आपके साथ चला तो समय पर काम पूरा नहीं होगा और मेरा वचन झूठा पड़ जायेगा। और फिर मन सच्चा हो तो कठौती में भी गंगा होती है आप ही जायें मुझे फुर्सत नहीं। अगर मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। माना जाता है कि इस प्रकार के उनके व्यवहार के बाद से ही यह कहावत प्रचलित हो गई कि- ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’
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रूढ़िवादी का विरोध
संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने का प्रयास भी किया। सही मायनों में देखा जाये तो मानवतावादी मूल्यों की नींव संत रविदास ने रखी। वे समाज में फैली जातिगत ऊंच-नीच के धुर विरोधी थे और कहते थे कि सभी एक ईश्वर की संतान हैं जन्म से कोई भी जात लेकर पैदा नहीं होता। इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी करते हैं जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो और नाम दिया था बेगमपुरा, जहाँ कोई गम न हो।
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,जाकी अंग-अंग बास समानी।प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,जैसे चितवत चंद चकोरा। प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा। प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,ऐसी भक्ति करै रैदासा।
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