तिथि विशेष – संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी  – कैसे करें गणेश को प्रसन्न

तिथि विशेष – संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी – कैसे करें गणेश को प्रसन्न

– विमल जैन

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रथम पूज्य  देव भगवान श्रीगणेशजी को सर्वोपरि माना जाता है। हर शुभकार्यों के प्रारम्भ में श्री गणेशजी की पूजा-अर्चना सर्वप्रथम करने का विधान है। सुख-समृद्धि के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धाॢमक मान्यता चली आ रही है। यह व्रत महिला एवं पुरुष के लिए समान रूप से फलदायी है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार श्रावण कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि बुधवार, 8 जुलाई को प्रात: 9 बजकर 19 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन गुरुवार, 9 जुलाई को प्रात: 10 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय रात्रि 09 बजकर &2 मिनट पर होगा। फलस्वरूप संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत बुधवार, 8 जुलाई को रखा जाएगा। बुधवार के दिन श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत अत्यन्त फलदायी होता है। रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात् चन्द्रमा को अघ्र्य देकर उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी।

ऐसे करें श्रीगणेशजी को प्रसन्न—

विमल जैन के अनुसार संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए। प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में स्नान ध्यान के पश्चात् व्रतकर्ता को अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुन: स्नान करके श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को मोदक एवं दूर्वा अति प्रिय है, इसलिए दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अॢपत करने चाहिए।

किस पाठ से होती है मनोरथ की पूर्ण —

विमल जैन के मुताबिक श्रीगणेशजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश संकटनाशन, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित मंत्र-स्तोत्र आदि का पाठ जो भी सम्भव हो, अवश्य किया जाना चाहिए। ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रात:काल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोरथ की पूर्ण  होती है और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली में ग्रहों की दशा के अनुसार प्रतिकूल फल मिल रहा हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सभी विघ्नों के विनाशक प्रथम पूज्य देव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। जिन्हें जीवन में संकटों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन विधि-विधानपूर्वक श्रीगणेश जी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली एवं सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है साथ ही सर्वसंकटों का निवारण भी होता है।

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