
सहभागी शिक्षण केंद्र ने चलाया प्रधानपतियों के खिलाफ मुहिम
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 26 मार्च
सहभागी शिक्षण केंद्र द्वारा शुक्रवार को वाराणसी में “प्रधान-पति मुक्त पंचायत अभियान” की शुरुआत एक परिचर्चा से किया गया। इस परिचर्चा में महिला प्रधान वाले पंचायतों में प्रधान पति जैसी गैर संविधानिक व्यवस्था जो महिलाओं के संविधानिक अधिकारों के विपरीत है । जिसके लिए सभी को आवाज बनने की आवश्यकता है ।
सच ये है
उत्तर प्रदेश में महिलाओं को 33% आरक्षण दिया गया है और 40% तक सीटें महिलायें जीत कर आ रही हैं परंतु हैरानी की बात है कि केवल 2% से 4% महिला प्रधान ही वास्तविक रूप से निर्णय लेने जैसा कार्य करती हैं , 97% क्षेत्रों में प्रधान पतियों का ही वर्चस्व है चाहे वे पति हों , पुत्र हों या रिश्तेदार, सत्ता में महिला को छोड़ कर सब कोई है । आज भी महिलाओं की क्षमताओं को लेकर उनपर संदेह किया जाता है यह कह कर की वे पढ़ी लिखी नहीं है, या घर का काम करती हैं, या महिला घर से बाहर नहीं निकल सकती। लोकतंत्र में जनता जिसे चुनती है यह उसी का दायित्व है की जनता का प्रतिनिधित्व करे ।
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किसने क्या कहा
कार्यक्रम के प्रारंभ में सहभागी शिक्षण केंद्र से क्षेत्रीय अभियान संचालक सुधीर सिंह ने सभी सदस्यों को स्वागत करते हुए कहा कि दशकों में पंचायत व्यवस्थाओं में कई सुधार हुए हैं, और बहुत से कार्य अभी होने शेष हैं जिसमे से एक कुप्रथा जो हमे अत्यंत पीड़ा देती हैं वह है महिला प्रधान वाले पंचायतों में प्रधान पति जैसी गैर संविधानिक व्यवस्था जो महिलाओं के सांविधानिक अधिकारों के विपरीत है । इस कुप्रथा के विरुद्ध एक कदम बढ़ाने की दिशा में सहभागी शिक्षण केंद्र अपने सहयोगी संस्थाओं के साथ मिलकर आगामी पंचायत चुनाव से ठीक पहले जन जागरूकता हेतु आगे आया हैं । सहभागी शिक्षण केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी कुशल कुमार मौर्य ने कहा एक प्रधान गाँव के विकास को गति देता है, जन समुदाय के समस्याओं का समाधान करता है और आधारभूत जरूरतों को जन जन तक पहुचाते है, संस्था अभियान के तहत जन समुदाय को जागरूक करेगा कि योग्य महिला उमीदवार चुनें और महिला प्रधान को ही प्रधान मानें ।
डॉ निमिष गुप्ता, प्रोफेसर, सामाजिक कार्य विभाग, काशी विद्यापीठ, ने इस अभियान के महत्व को बताया और इस प्रयास की सराहना की।
डॉ अलका गुप्ता, विभागाध्यक्ष, राजनैतिक शास्त्र विभाग, उ.प्र. कॉलेज, ने महिलाओं के राजनैतिक भागीदारी का महत्व बताते हुए कहा कि आधी आबादी का प्रतिनिधित्व महिला के द्वारा होना आवश्यक है जिससे महिलाओं की समस्या, स्वस्थ एवं सुरक्षा को लेकर पंचायतें योजना बना सकें और कार्य कर सकें । कार्यक्रम को सराहते हुए एडीपीआरओ ने अपने अनुभव साझा किए जिसमे उन्होंने प्रधान-पतियों के कारण महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रयासों पर पड़े कुप्रभाव को बताया, उन्होंने कहा की केवल बेटी-पढ़ाओ ही नहीं बल्कि बेटियों की माओं को भी सम्मान मिलना अनिवार्य है क्योंकि घर, गाँव में ही बच्चों का मनोभाव इस स्तिथियों को देख कर बनता है । उन्होंने समाज में बदलाव की कड़ी में इस अभियान का महत्वपूर्ण योगदान बताया । ईसके अलावा सहभागी शिक्षण केंद्र के ग्रामीण कार्य क्षेत्र से आईं महिला प्रधान और जागरूक महिलाओं ने अपनी बात रखी ।
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ये कार्य करती है सहभागी शिक्षण केंद्र
सहभागी शिक्षण केंद्र सन 1990 से ग्राम विकास के क्षेत्र में कार्यरत है । 73 वे संविधान संशोधन 1993 से पंचायाओं के सशक्तिकरण और महिलाओ की हर क्षेत्र में सहभागिता के मुद्दों पर बल देता आ रहा है । इस क्रम में महिलाओं का लोकतंत्र में वास्तविक सहभागिता, प्रतिनिधित्व और प्रभुत्व को साकार करने हेतु प्रधान-पति जैसे सामाजिक व राजनैतिक कुप्रथा को निषेध करने के संकल्प से प्रधान-पति मुक्त पंचायत अभियान की सहायक संस्थाओं के साथ मिलकर अगुवाई कर रहा है ।
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