नागपंचमी – कालसर्प दोष के निवारण का है विशेष दिन
शिवा चैनल / इन्नोवेस्ट डेस्क / 24 जुलाई
– नाग देवता की पूजा से मिलती है सुख-समृद्धि, खुशहाली
– नाग देवता की पूजा से मिलता है संतान सुख, होती है वंश वृद्धि
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में श्रावण मास के विशेष तिथियों की खास महिमा है। श्रावण मास का विशेष पर्व है नागपंचमी, जो कि श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विधि-विधानपूर्वक मनाने की पौराणिक परम्परा है। इस दिन भगवान् शिव के दरबार की पूजा-आराधना के साथ ही नागदेवता की भी पूजा-अर्चना श्रद्धा, आस्था और भक्तिभाव के साथ करने की धाॢमक मान्यता है। पंचमी तिथि के स्वामी नागदेवता माने गए हैं, फलस्वरूप इस तिथि के दिन नागदेवता के पूजन की परम्परा चली आ रही है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस वर्ष नागपंचमी का पावन पर्व शनिवार, 25 जुलाई को मनाया जायेगा। श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि शुक्रवार, 24 जुलाई को अपराह्नï 2 बजकर 35 पर लगेगी जो कि शनिवार, 25 जुलाई को दिन में 12 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। गरुड़पुराण के अनुसार अपने धर्म परम्परा के मुताबिक नागपंचमी पर घर परिवार में लोग नाग देवता की पूजा के लिए प्रवेश द्वार के दोनों ओर नाग देवता का चित्र चिपका कर या लाल चन्दन, काले रंग अथवा गोबर से नाग देवता बनाकर विधि-विधानपूर्वक दूध, लावा अॢपत करके धूप-दीप से पूजन करते हैं, जिससे परिवार में सर्पदंश का भय नहीं रहता। नागलोक की देवी माँ मनसा देवी हैं। आज के दिन इनकी भी पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। नि:सन्तान को सन्तान की प्राप्ति बतलाई गई है, इससे वंशवृद्धि भी होती है। नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने पर सुख-समृद्धि बढ़ती है, साथ ही खुशहाली भी मिलती है।
रुद्र व नागलोक के नाम पर कालसर्पयोग के 12 नाम बतलाए गए हैं—
1. अनन्त, 2. पुलित, 3. वासुकि, 4. शंखपाल, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. तक्षक, 8. कर्कोटक, 9. शंखचूड़, 10. घातक, 11. विषधर और 12. शेषनाग। इन द्वादश योग में कर्कोटक, शंखचूड़, घातक व विषधर योग विशेष प्रभावी माने जाते हैं।
कुण्डली में उपस्थित कालसर्पयोग
ज्योतिष के अनुसार कुण्डली में उपस्थित कालसर्पयोग जनमानस के पटल पर छाया हुआ है। कालसर्प दोष का निवारण नाग पंचमी के दिन विशेष फलदायी माना गया है। व्यक्ति कालसर्प दोष का नाम सुनते ही मानसिक तौर पर भयभीत हो जाता है। जन्मकुण्डली में सात ग्रह—सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र व शनिग्रह जब राहु-केतु के मध्य स्थित हो जाते हैं, तो जन्मकुण्डली में पूर्ण कालसर्पयोग बनता है, जबकि ग्रहों के अंश के अनुसार यदि कोई एक ग्रह राहु-केतु की परिधि से बाहर हो तो आंशिक कालसर्पयोग बनता है। राहु का नक्षत्र भरणी है, इसका देवता काल माना गया है। जबकि केतु का नक्षत्र आश्लेषा है, इसका देवता सर्प माना गया है।
कालसर्प योग जहाँ विभिन्न प्रकार के लाभ का अवसर प्रदान करता है, वहीं पर ग्रहदशा के अनुसार नाना प्रकार की परेशानियों से गुजरना पड़ता है जबकि शुभ ग्रहों की महादशा में व्यक्ति बुलंदियों तक पहुँचता है। अशुभ ग्रहों की महादशा में अथक प्रयास के बावजूद उसके सपने चकनाचूर हो जाते हैं। जन्मकुण्डली के अनुसार कालसर्पयोग स्पष्ट होने पर उसकी शान्ति तत्काल योग्य विद्वान से करवानी चाहिए। जिस जातक की कुण्डली में कालसर्पयोग हो, उन्हें किसी भी दशा में नाग को मारना या प्रताडि़त नहीं करना चाहिए।
ज्योतिषविद् विमल जैन के मुताबिक कालसर्पयोग का निवारण भगवान् शिव के प्रतिष्ठित मन्दिर में विधि-विधान के अनुसार योग्य विद्वान् से करवाना विशेष लाभदायी रहता है। कालसर्पयोग के निवारण का सामान्य उपाय है, चाँदी या तांबे के बने नाग-नागिन के जोड़े को शिवङ्क्षलग पर चढ़ाकर पूजा करने के उपरान्त नाग-नागिन के जोड़े को बहते हुए शुद्ध जल, नदी अथवा गंगाजी में प्रवाहित कर देना चाहिए। नित्य प्रतिदिन श्री नाग स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। नाग पंचमी के दिन व्रत रखना चाहिए। इस दिन गरीबों व असहायों को यथाशक्ति भोजन अन्न द्रव्य आदि देना चाहिए, साथ ही काले कुत्ते को आटा व गुड़ मिश्रित रोटी खिलानी चाहिए। स्वर्ण, रजत या पंचधातु से निॢमत सर्पाकार अंगूठी दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करनी चाहिए। माता-पिता, गुरु एवं श्रेष्ठजनों का आशीर्वाद लेना चाहिए। नागपंचमी के दिन सपेरों से नाग-नागिन के जोड़े को खरीदकर उन्हें आजाद करवाना चाहिए।