
357 साल पुरानी परंपरा – तिलकोत्सव बाबा विश्वनाथ का
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 16 feb
लोक परम्परा और मान्यताओं का अपना ही मजा है अब चाहे गाजी मियां हो या लाट भैरव या फिर काशी के राजा बाबा विश्वनाथ ही क्यों न हो …..सभी को लौकिक दुनिया से जोड़ने और अपने को समझने का एक तरीक़ा है। पुराधिपति विश्वनाथ को इस दुनिया के परम्परायों की क्या दरकार … लेकिन परलोक से इस लोक तक के तमाम भेद को आसान करने लिए भगवान का भी शादी रचाई जाती है साफ़ है कि शादी के अनेक चरणों में तिलक होना तय है लिहाजा आज से लगभग 357 साल पुरानी व्यवस्थाओं के तहत बाबा विश्वनाथ के आंगन में शुभ मुहूर्त में तिलकोत्सव का आयोजन सम्पन हुआ ।
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इस परंपरा में काशी की जनता ही बराती और घराती की भूमिका में होते है। तिलकोत्सव की शुरुआत टेढ़ीनीम स्थित विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत आवास पर सूर्योदय के पूर्व बाबा विश्वनाथ की पंचबदन रजत मूर्ति की मंगला आरती से हुआ। फिर दिन के दूसरे प्रहर में चारों वेदों की ऋचाओं के पाठ के साथ बाबा का दुग्धाभिषेक, फलाहार का भोग के बाद पांच फलों के रस से पूर्वाह्न तक रुद्राभिषेक और स्नान कराया गया। मध्याह्न काल में भोग अर्पण संग आरती उतारी गई।महिलाओं ने मंगल गीत गायी। शाम होने के साथ अड़भंगी के तिलकोत्सव की शहनाई गूंजी और डमरू दल की निनाद भी गूंजा साथ ही साथ गूंजा हर हर महादेव का घोष । फिर बारी आयी बाबा का तिलक चढ़ने का ,खादी के परिधान में बाबा विश्वनाथ लकदक होकर रजत पालकी में विराजे हुए थे भव्य झांकी लगायी गयी थी जिसे संजीव रत्न मिश्र ने किया था । पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने आगे बढ़ कर इस बार भी तिलकोत्सव की रस्म पूर्ण किया । बनारसियों का ये रंग अब होली तक चलेगी। अब रंगभरी एकादशी हो या फिर रंगों से सराबोर होली।
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