महिलाओं का खतना एक बहुत ही गंभीर विषय है जिसे लेकर आए दिन चर्चा होती रहती है। वो महिलाएं जो इससे होकर गुजरी हैं उन्हें इसका दर्द जिंदगी भर झेलना पड़ता है। ये प्रथा क्रूर ही नहीं आसामाजिक भी है, लेकिन गम की बात ये है कि इस प्रथा के विरोध में ज्यादातर आवाज नहीं उठती हैं।
क्या पुरुषों और महिलाओं का खतना एक बराबर होता है ?
जो लोग ये समझते हैं कि ये पुरुषों के खतने की तरह ही होता है उन्हें मैं बता दूं कि ये उससे 100 गुना ज्यादा भयावह और खतरनाक होता है। इससे महिलाओं की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि इसके कारण तो उन्हें कई बीमारियां हो जाती हैं।
पुरुषों का खतना जिस तरह से होता है उससे उन्हें कई तरह के इन्फेक्शन से बचाया जा सकता है। उनके जेनिटल एरिया की स्किन के ऊपरी हिस्से को निकाला जाता है, लेकिन महिलाओं के साथ ऐसा नहीं है। महिलाओं का खतना जिसे धार्मिक भाषा में खफ्ज़ (Khafz) कहा जाता है वो धार्मिक किताब दैम-उल-इस्लाम (Daim ul Islam) पर आधारित है। इसमें क्लिटोरिस का ऊपरी हिस्सा हटा दिया जाता है। कई मामलों में तो पूरी की पूरी आउटर वेजाइना को ही हटा दिया जाता है।
इसे ना तो मेडिकल सुपरविजन के अंतर्गत किया जाता है और ना ही इसके बाद कोई सुविधा दी जाती है। मेल म्यूटिलेशन में कुछ हेल्थ बेनेफिट्स तो होते हैं, लेकिन फीमेल म्यूटिलेशन से तो सिर्फ नुकसान ही होता है, लेकिन नुकसान तो महिलाओं का हो रहा है इसलिए नियम बनाने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
आखिर कैसे किया जाता है महिलाओं का खतना?
सबसे बड़े दुख की बात तो ये है कि जब किसी लड़की के साथ जेनिटल म्यूटिलेशन होता है उसे कई तरह के हेल्थ रिस्क भी झेलने होते हैं। सबसे पहले तो मैं आपको बता दूं कि इस तरह के प्रोसेस को अंजाम देने वाली कोई मिड वाइफ या फिर नॉन-मेडिकल नर्स करती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने FGM (फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन) को नॉन-मेडिकल कहकर डिस्क्राइब किया है। यहां महिलाओं के जेनिटल्स को अलग-अलग तरह से काटा जाता है। इसे करने का कोई भी मेडिकल कारण नहीं है।
FGM अधिकतर चाकू, कैंची, स्केलपल, कांच के टुकड़ों या रेजर ब्लेड से किया जाता है। महिलाओं का खतना चार तरह से किया जाता है।
1. क्लिटोरिडेक्टोमी (clitoridectomy)
इस प्रोसेस में क्लिटोरिस के कुछ हिस्से या पूरी की पूरी क्लिटोरिस को ही निकाल दिया जाता है।
2. छंटाई (excision)
इस प्रोसेस में ना सिर्फ क्लिटोरिस को अलग किया जाता है बल्कि इनर लीबिया (वेजाइना के आस-पास मौजूद लिप्स जिसे फोरस्किन भी कहते हैं) को भी हटा दिया जाता है। इस प्रोसेस में अंदरूनी लीबिया को ही हटाया जाता है। बाहरी वेजाइनल लिप्स को छेड़ा नहीं जाता।
3. इनफिब्यूलेषन (infibulation)
इस प्रोसेस में वेजाइनल ओपनिंग को छोटा किया जाता है। एक सील बनाई जाती है जिसके लिए स्किन लीबिया को काटकर ही निकाली जाती है। यहां वेजाइनल ओपनिंग में टांके लगाए जाते हैं जिससे बेहद दर्द होता है। इसका एक तरीका ये भी होता है कि पूरा का पूरा एक्सटर्नल जेनेटीलिया ही हटा दिया जाए और वेजाइनल ओपनिंग को सिल दिया जाए।
4. चोटिल करना (Pricking, Piercing)
इस प्रोसेस में वेजाइनल ओपनिंग या फिर क्लिटोरिस को या तो काटा जाता है या फिर उसमें छेद किया जाता है। कुछ गंभीर मामलों में तो इस हिस्से को जलाया भी जाता है। कुछ जगहों पर इसे छील दिया जाता है।
खतना से होने वाली मेडिकल समस्याएं
खतना होने के बाद लड़कियों को यूरीन पास करने में भी जिंदगी भर तकलीफ होती है।
जिन महिलाओं के साथ इनफिब्यूलेषन हुआ होता है उन्हें बच्चा पैदा करने के लिए भी सर्जिकली पहले उस स्किन को वेजाइना से हटवाना पड़ता है।
खतना होने के बाद वेजाइना में ब्लड क्लॉट जमने की दिक्कत भी सामने आती है।
ऐसी महिलाओं को कई तरह के गायनेकोलॉजिकल इशूज होते हैं।
कब किया जाता है खतना?
महिलाओं का खतना बचपन में ही किया जाता है। 2-3 साल से लेकर 15 साल की उम्र तक ये कर दिया जाता है। इसे सेक्सुअल इच्छाओं को रोकने का एक तरीका माना जाता है। प्यूबर्टी के शुरू होने से पहले ही इसे करना सही समझा जाता है।
ये धार्मिक महत्व रखता है, लेकिन क्या वाकई इसकी जरूरत है? UNICEF की रिपोर्ट मानती है कि दुनिया भर में 2 करोड़ से ज्यादा लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें किसी ना किसी तरह का खतना झेलना पड़ा है। हालांकि, ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के खिलाफ माना जाता है।
ये सिर्फ फिजिकल वायलेंस नहीं करता। इसके कारण लड़कियों को जिंदगी भर का साइकोलॉजिकल ट्रॉमा भी हो जाता है।
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