
अब गंगा घाट पर भी अतिक्रमण, खत्म हो रहा है घाट दर्शन
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 18 dec
– संदीप त्रिपाठी
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– नौका से अस्सी से राजघाट तक घाट दर्शन हुए दुर्गम
– गंगा पर आश्रितजनों की रोजी-रोटी पर कुठाराघात करने की तैयारी
– मीरघाट से मणिकर्णिका घाट का रास्ता बंद
– भविष्य में गंगा स्नान पर भी लग जाएगा ग्रहण
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अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के महामंत्री, श्री काशी तीर्थ पुरोहित सभा के वरिष्ठ सचिव, केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के पूर्व उपाध्यक्ष पं. कन्हैया त्रिपाठी ने वर्तमान में घाटों एवं गंगा में हो रहे अतिक्रमण पर गहरा रोष व्यक्त करते हुए कहा कि सम्पूर्ण विश्व एवं भारतवर्ष की सांस्कृतिक, धार्मिक, मोक्ष-मुक्ति रूपी नगरी काशी, जिसकी प्रथा-परम्परा, धार्मिक महत्व का एक अलग स्थान है।
आजकल श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का निर्माण चल रहा है। जिसके तहत प्राचीनतम तीन मुहल्लों को ध्वस्त करते हुए जलासेन घाट तक निर्माण कार्य किया जा रहा है। उसी के अंतर्गत ललिता घाट-जलासेन घाट एवं अपुष्ट खबरों के अनुसार मणिकर्णिका घाट तक गंगा में बालू की बोरियों से घाट किनारे से 20-25 मीटर आगे या उससे भी अधिक गंगा के जल को घाटों से दूर कर बड़े प्लेटफार्म का निर्माण किया जा रहा है। वर्तमान में ललिता घाट-जलासेन घाट तक के स्नान घाट, फर्श, सीढ़ियां और गंगाजल मिट्टी से पाट दिया गया है। जिससे ललिता घाट एवं जलासेन घाट पर स्नानादि बंद हो चुके हैं। निर्माण कार्य के अंतर्गत काशी की संस्कृति एवं महत्ता को कुंठित किया जा रहा है।
काशी तीर्थ नगरी है और तीर्थ का विकास तीर्थों-धरोहरों को अक्षुण व संरक्षित रखते हुए तीर्थ की मर्यादाओं का पालन करते हुए होना चाहिए न की पौराणिक मान्यताओं के तीर्थ स्थलों को समाप्त करके। यह तीर्थ और उसके तीर्थयात्रियों समेत हिंदूवादी और सनातनी समाज के मौलिक अधिकारों का हनन है। मान्यताओं, परम्पराओं, जीवटता, प्रमाण और अस्तित्व को नेस्तनाबूत कर और धर्म के सीने पर पांव तले कुचलकर ऐसे खोखले और तानाशाही विकास की संकल्पना शायद ही किसी ने की होगी। जबकि नीति संगत, धर्म संगत और न्याय संगत व संवैधानिक तर्क से परिपूर्ण इतिहास के पन्ने ऐसे अनेक उदाहरणों से पटे पड़े हैं, जो धर्म, धार्मिकता और धर्म संस्कार के संरक्षण की गाथा कहते हैं। जिसमें यह साफ वर्णित है कि धार्मिक स्थलों के अतिक्रमण, विस्तार, सुंदरीकरण और विकास, धर्म, धार्मिकता और संस्कार के संरक्षकों, धर्म गुरुओं, विद्वत समाज, स्थानीय नागरिकों और उस स्थल की ऐतिहासिक्ता, मान्यता और जीवंत किंवदंतियां बन चुके और तेजी से लुप्त हो रहे बूढ़-पुरनियों की सलाह, निर्देशन और मशवरे पर ही होना चाहिए। न की मनमाने और विध्वंसक तरीके से जिससे उस स्थल की पौराणिकता, प्राचीनता, मान्यता, ऐतिहासिक्ता ही खुद तानाशाही इतिहास के पन्नों में लुप्त हो जाए।
आज ललित घाट-जलासेन घाट पर स्नान तो दूर कदम रख पाना भी दूर की कौड़ी साबित हो चुका है। घाट से माँ गंगा को दूर कर दिया गया है। वहीं काशी खंडोक्त ललितादित्य, ललिता गौरी, काशी माता, गंगा माता, श्री हरि विष्णु, माता लक्ष्मी देवी आदि मंदिरों में देव विराजित हैं। इनका दर्शन भी कॉरिडोर निर्माण ने दुर्लभ कर दिया है। घाट से घाट जाने वाले रास्तों को बंद कर दिया गया है। गंगा में यंत्रों का जाल बिछाकर अतिक्रमित कर दिया गया है, जिससे घाट दर्शन कराने वाले नाविकों को मीरघाट से उस पार होकर मणिकर्णिका घाट जाकर फिर आगे के घाटों के किनारों से यात्रियों को घाट दर्शन कराने पर विवश होना पड़ रहा है। गंगा में जेटी ने किनारों का अतिक्रमण किया, तो अब क्रूज के द्वारा गरीब नाविकों की रोजी-रोटी पर कुठाराघात करने की तैयारी है। इस संदर्भ में जिम्मेदारों के मुख से रटा-रटाया बयान देते हुए कहा जाता है कि यह आदरणीय प्रधानमंत्री जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है।
यह बहुधा ठीक भी है लेकिन प्रोजेक्ट बनाने वालों को काशी की संस्कृति एवं मर्यादाओं का भी ध्यान रखना चाहिए। काशी एवं काशी के घाटों की छटा, सौंदर्यता, महत्ता काफी अनुपम व अतुलनीय है। इसे विकास के नाम पर विनष्ट नहीं बल्कि संरक्षित किया जाए।
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