28 मई, 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नए संसद भवन का विधिवत उद्घाटन करेंगे। 29 मई, 2023 से मोदी सरकार के 9वें वर्ष का प्रारंभ होगा जो अगले एक वर्ष तक 2024 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा सेट करेगा। सेंट्रल विस्टा परियोजना के अंतर्गत हो रहे अनेक निर्माण में नया संसद भवन भी शामिल है। किन्तु जैसा कि राजनीति में होता है, सत्ता पक्ष के हर कार्य का विरोध करो, ठीक ऐसा ही नए संसद भवन के निर्माण में भी विपक्ष द्वारा विरोध का झंडा बुलंद किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय से लेकर विभिन्न मंत्रालयों तक इसे रोकने के प्रयास हुए हैं। कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी अपव्यय के नाम पर, विपक्ष ने प्रारंभ से ही इसे मुद्दा बनाते हुए इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का निजी राजभवन तक बता दिया।
अब जबकि इसके उद्घाटन की संभावित तारीख आ गई है तो अब विरोध उद्घाटन करने और सावरकर जयंती पर आ गया है। किसी भी राष्ट्र की धरोहर उसकी संस्कृति, साहित्य, संगीत, कला, वास्तुकला होती है। आखिर कोई राष्ट्र औपनिवेशिक विरासत को क्यों सहेज कर रखे जबकि वह स्वयं सांस्कृतिक रूप से विश्वगुरु रहा हो। जैसे राजपथ कर्तव्य पथ होकर लोकतंत्र को सम्मानित कर गया वैसे ही नया संसद भवन विश्व में भारत के संकल्प और लक्ष्य को प्रदर्शित करेगा। इसके बनने पर राजनीति होना स्वयं पर अविश्वास होने जैसा है।
150 वर्षों का अनुमानित सेवाकाल
नए संसद भवन को 150 वर्षों तक की जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से बनाया गया है। दरअसल, वर्तमान संसद भवन औपनिवेशिक युग का निर्माण है जो 1921 से प्रारंभ होकर 1927 में बना। लगभग 100 साल पुराना भवन भले ही हेरिटेज ग्रेड-1 भवन हो किन्तु स्थान की कमी इसमें हमेशा से आती रही है। यही कारण है कि 1956 में इसमें दो मंजिलों को जोड़ा गया। वर्तमान में इसके सेंट्रल हॉल में 440 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है और जब संसद के संयुक्त सत्र होते हैं तो सीटों की समस्या बढ़ जाती है। इसके अलावा आवाजाही के सीमित द्वार होने के कारण संसद की सुरक्षा हमेशा दांव पर लगी होती है।
13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले को कौन भूल सकता है जिसमें 14 लोगों की जान चली गई थी और लोकतंत्र का मंदिर गोलियों की बौछार से छलनी हो गया था। 2006 में देश की 2,500 वर्ष की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत को दिखाने के लिए इसी भवन में संसद संग्रहालय जोड़ा गया जिसमें आगंतुकों की संख्या कई गुना बढ़ गई है और अब यह भी छोटा लगने लगा है। इसके अलावा नए संसद भवन का निर्माण समय की मांग भी है।
वर्तमान में 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या 545 है किन्तु 2026 के बाद इसमें बढ़ोतरी होने की संभावना है क्योंकि सीटों की कुल संख्या पर रोक केवल 2026 तक है। यदि ऐसा होता है तो जनसंख्या अनुपात के आधार पर देश में लगभग 800 संसदीय क्षेत्र होंगे जिससे सांसदों की संख्या भी उतनी ही होगी। ऐसे में पुराना संसद भवन अपने आप अनुपयोगी हो जाएगा क्योंकि इतने सांसदों के बैठने का प्रावधान उसमें संभव नहीं है।
ऐसी है नए संसद भवन की संरचना
पुराने संसद भवन की तुलना में नए संसद भवन की कुल बैठक क्षमता 150 प्रतिशत से अधिक है। नए संसद भवन में सेंट्रल हाल नहीं है। राष्ट्रीय पक्षी मयूर की थीम पर 3015 वर्ग मीटर एरिया में बने लोकसभा चैंबर में 543 सीटों के स्थान पर 888 सीटें हैं। जबकि कमल के फूल की थीम पर राज्यसभा चैंबर 3220 वर्ग मीटर एरिया में बना है जिसमें 245 के स्थान पर 384 सीटें हैं। नए संसद भवन परिसर में कुल मिलाकर 120 कार्यालय हैं जिसमें विभिन्न कमेटी कक्ष, मिनिस्ट्री ऑफ पार्लियामेंट्री अफेयर्स के कार्यालय, लोकसभा सचिवालय, राज्यसभा सचिवालय, प्रधानमंत्री कार्यालय आदि प्रमुख हैं।
पुराने संसद भवन के ठीक सामने बने नये संसद भवन में सांसदों के लिए पुस्तकालय, बैठक कक्ष, भोजन कक्ष इत्यादि भी हैं। यदि संसद का संयुक्त सत्र होता है तो लोकसभा का विस्तार करके वहां एक साथ 1272 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की जा सकेगी। लोकसभा और राज्यसभा के कक्ष उच्च गुणवत्ता वाले ऑडियो-वीडियो उपकरणों से लैस हैं। साथ ही, हर डेस्क इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से सुसज्जित है। सांसदों के कार्यालय भी आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस हैं। आधुनिक तकनीक की पार्किंग सुविधा इसकी खास पहचान है।
नए संसद भवन की 4 मंजिला इमारत में 6 रास्तों से प्रवेश होगा जिसमें प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के लिए अलग रास्ता, लोकसभा अध्यक्ष के लिए अलग, राज्यसभा सभापति के लिए अलग, सांसदों के प्रवेश के लिए अलग तथा आम जनता के लिए अलग होगा। इससे सुरक्षा व्यवस्था भी पुख्ता होगी। पर्यावरण के अनुकूल निर्मित नए संसद भवन से ऊर्जा का अपव्यय भी रोका जा सकेगा। त्रिभुजाकार आकार में बन रहा नया संसद भवन भूकंपरोधी सिस्टम के अनुसार सुरक्षा पुख्ता करने वाला है। संसद भवन की नई इमारत में भव्य संविधान कक्ष में भारत की लोकतांत्रिक विरासत को दर्शाया जाएगा। साथ ही, यहां भारत के संविधान की मूल प्रति भी रखी जाएगी।
नए संसद भवन के शिल्पी
नए संसद भवन के वास्तुकार 61 वर्षीय बिमल पटेल और उनकी अहमदाबाद स्थित कंपनी एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने तमाम विरोधों और झंझावातों से पार पाते हुए इसका जो स्वरूप निखारा है वह भारतीयता की अनभूति कराता है। पद्मश्री से सम्मानित बिमल पटेल का नरेंद्र मोदी के साथ दो दशकों से अधिक का साथ है इसलिए विपक्ष ने उन्हें “मोदी का वास्तुकार” टैग भी दिया है। हालांकि इन सबसे विचलित न होते हुए बिमल पटेल और उनकी टीम ने कोरोना महामारी के कारण अवरोधित कार्य को भी समय से पूरा किया जिससे विपक्षी भी उनके काम के क़ायल हो चुके हैं।
वर्तमान में बिमल पटेल सेंटर फॉर एन्वायरनमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष हैं तथा एचसीपी डिजाइन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड का नेतृत्व करते हैं जो आर्किटेक्चर, प्लानिंग और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट फर्म है। इससे पूर्व बिमल पटेल गुजरात उच्च न्यायालय, आगा खान अकादमी हैदराबाद, उद्यमिता विकास संस्थान, आईआईएम अहमदाबाद, साबरमती रिवरफ्रंट जैसी बड़ी परियोजनाओं को मूर्त रूप देखकर अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलवा चुके हैं।
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