राष्ट्रीय मौसम सेवा के अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान केंद्र (SWPC) और नासा (NASA) ने सौर तूफान को लेकर अलर्ट जारी किया है, जो तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा है। नासा के अनुसार, आज यानी 4 सितंबर को पृथ्वी पर सौर तूफान G2-श्रेणी आने वाला है।
इस तूफान के आने से पहले कोरोनल मास इजेक्शन CME क्लाउड के प्रभाव के कारण दुनिया के कई हिस्सों में लोगों को शॉर्टवेब में रेडियो ब्लैकआउट का सामना भी करना पड़ सकता है। इसरो ने अपने सोलर मिशन आदित्य एल1 के जरिए अंतरिक्ष में आने वाले इस तरह के तूफान का अध्ययन करेगा।
आइए इससे पहले हम जानने कि कोशिश करेंगे कि सौर तूफान यानी Solar Storm क्या होते हैं? और पृथ्वी को इससे क्या नुकसान हो सकता हैं?
क्या होते हैं सौर तूफान?
सोलर स्टॉर्म या सौर तूफान को जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म भी कहा जाता है। ये सूर्य से निकलने वाला रेडिएशन होता है, जो पूरे सौर मंडल को प्रभावित कर सकता है। पृथ्वी पर जीवन के लिए सूर्य बहुत जरूरी है। सूर्य की बाहरी परत को कोरोना कहते हैं। इसी कोरोना से बचते हुए इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन समेत कई चीजें बाहर निकल जाती हैं। ये अंतरिक्ष में जाकर बिखर जाती हैं। इसके अलावा सूरज की बाहरी लेयर से कोरोना से निकलने वाली गैसें और मैग्नेटिक फील्ड अचानक से अनियंत्रित होने लगती हैं, इसे कोरोनल मास इजेक्शन (CME) कहते हैं।
इससे पहले 1859 में भी सौर तूफान आया था। तब अमेरिका और यूरोप में टेलीग्राफ नेटवर्क तबाह हो गया था। इतनी स्पीड से आते हैं सोलर स्टॉर्म यूनाइटेड स्टेट्स स्पेस एजेंसी का कहना है, एक बड़े कोरोनल मास इजेक्शन के कारण होने वाले विस्फोट में अरबों टन पदार्थ होते हैं. यह तब मुसीबत बन जाते हैं जब ये पृथ्वी की ओर आने लगते हैं. इनकी गंभीरता के आधार पर ये पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र या मैग्नेटोस्फीयर को प्रभावित कर सकते हैं। तेज कोरोनल मास इजेक्शन 3,000 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से यात्रा करते हुए, तीव्र 15 से 18 घंटों में पृथ्वी से टकरा सकते हैं. जबकि एक धीमा कोरोनल मास इजेक्शन 250 किमी/सेकेंड की गति से पृथ्वी तक आने में कई दिन लग सकते हैं।
सौर तूफान से खतरा –
सौर तूफान को उनके प्रभाव के आधार पर वैज्ञानिकों ने G1 से लेकर G5 तक कुल 5 श्रेणियों में बांटा है। – G1-श्रेणी का सौर तूफान काफी हल्का होता है, लेकिन G5-श्रेणी का सौर तूफान काफी शक्तिशाली होता है। – सौर तूफान सैटेलाइटों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं, मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट सेवाओं को बाधित कर सकते हैं। – अत्यधिक शक्तिशाली होने पर इससे पावर ग्रिड और पृथ्वी आधारित संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक्स को भी नुकसान पहुंच सकता है।
आदित्य एल 1 करेगा अध्ययन
धरती पर सौर तूफान का असर 1859 में देखा गया था। इसे कैरिंगटन घटना के नाम से भी जाना गया। साल 1989 में ये घटना फिर हुई थी। तब कनाडा के क्यूबेक शहर को इसने बुरी तरह प्रभावित किया था। वहां इसकी वजह से 12 घंटे के लिए बिजली चली गई थी। जिसके चलते लोगों को काफी दिक्कतें झेलनी पड़ी थीं।
इसरो के मुताबिक, आदित्य एल 1 के जरिए कोरोना के गर्म होने का तरीका, मैग्नेटिक फील्ड, तापमान और कोरोनल मास इजेक्शन से जुड़ी कई बातों समझा जाएगा, जो इन सोलर स्टॉर्म यानी सौर तूफान के बारे में गहराई से अध्ययन करेगा।
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